Saturday, September 21, 2024

क्या था 1975 मे लगे आपातकाल और जयगढ़ के किले का खजाना गायब होने के बीच का कनेक्शन… पढे पूरी खबर

क्या था 1975 मे लगे आपातकाल और जयगढ़ के किले का खजाना गायब होने के बीच का कनेक्शन…पढे पूरी खबर

Digital News Guru Special Story: दोस्तों आज हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जयगढ़ किले के खजाने की, खजाना था राजा मानसिंह का।

वही मानसिंह जो राजा अकबर के बेहद अजीज थे, मानसिंह ने ही बीरबल की मौत का बदला भी लिया था वैसे तो राजा मानसिंह के अकबरी दरबार से जुड़े कई किस्से मशहूर है। पर जो सबसे दिलचस्प है वो है उनका जयगढ़ में छुपा खजाना जो कि रहस्यमय तरीके से गायब हुआ था। आइए जानते है पूरा किस्सा…

राजा मानसिंह के पास इतना खजाना कहां से आया

जिसने अकबर के नवरत्नों के बारे में सुना होगा, वह राजा मानसिंह के बारे में जरुर जानता होगा। वह अपनी बुद्धिमत्ता और सहनशीलता के कारण अकबर के दिल के काफी करीब थे। मानसिंह ने अकबर के लिए कई ऐतिहासिक जंगे जीती थी। मुगलों की आदत थी कि उन्होंने देश के जिस भी राज्य और रियासत पर हमला किया उसपर जीत हासिल की। उसे पूरी तरह से लूट लिया क्योंकि जीत में मानसिंह का श्रेय भी कम नहीं था इसलिए संपत्ति में भी उनका सामान अधिकार रहा उनके पिता राजा भगवान दास ने भी अकबर के लिए कई जंग जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मान सिंह पारिवारिक रूप से पहले से सक्षम थे। उनका जन्म 1540 में हुआ था और वह अंबर रियासत के राजा थे । मुगल बादशाह से दोस्ती के बाद उनका कद समस्त भारत में बढ़ गया। हल्दीघाटी के युद्ध में भी उन्होंने उन्होंने शानदार जीत हासिल की था। हालांकि मुगलों ने जब महाराणा प्रताप के राज्य को लौटाने की तैयारी की तो मानसिंह ने उनका विरोध किया। बादशाह अकबर से मानसिंह का दूसरा रिश्ता फूफा और भतीजे का था। साल 1594 में मानसिंह को बंगाल उड़ीसा और बिहार का शासक नियुक्त किया गया।

इस दौरान उन्होंने कई छोटी बड़ी रियासतों के राजाओं को हराकर उनकी संपत्ति को अपने नाम कर लिया। सालों तक मानसिंह ने अपने पराक्रम के बल पर काफी संपदा जमा कर ली थी। जिसे उन्होंने अपने आमेर के किले में गुप्त स्थान पर छिपा दिया था। उन्होंने अपने जीवन काल में जितने भी संपत्ति हासिल की थी उससे कई गुना संपत्ति एक बार में अफगानिस्तान से प्राप्त कर ली थी।

एक कहानी के अनुसार अकबर के आदेश पर मानसिंह काबुल गए थे, वहां की आवाम लुटेरे सरदारों से काफी परेशान थी। मानसिंह ने सरदारों से जंग कर उन्हें हरा दिया इसी दौरान में मानसिंह ने यूसुफजई काबिले के सरदार को मार कर बीरबल की हत्या का भी बदला लिया। कहां जाता है कि लुटेरों के पास कई टन सोना था जिसे मानसिंह अपने साथ ले आए। यह संपत्ति उन्होंने मुगलों को ना सौंप कर, आमेर के किले में छिपा दी थी। इस प्रकार मानसिंह के पास एक विशाल खजाने का अंबार लग गया।

जब सरकार को इस खजाने का पता लगा…

मानसिंह के खजाने के बारे में उसे दौर में तो कोई चर्चा नहीं हुई पर इसका जिक्र अरबी भाषा की पुरानी किताब अंबीरी के साथ किताबों में मिलता है, इसमें लिखा है मानसिंह ने अफगानिस्तान से इतनी संपत्ति लूटी थी। कि उससे कई रियासतों का पेट पल सकता था, किताब में कहां गया है कि जयगढ़ किले के नीचे पानी की साथ विशाल टंकियां बनी हुई है मानसिंह ने खजाना यहीं पर छुपाया था, बाती किताबें थी तो किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया। समय के साथ अफवाहें भी आती और जाती रही लेकिन यह बात आप पूर्ण संपत्ति की थी तो कितने दिन छिपती।

खजाने की चर्चा पहली बार 1976 में हुई, उस वक्त जयपुर राजघराने की प्रतिनिधि महारानी गायत्री देवी थी, गायत्री देवी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विरोधी थी, और वे स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनावों में तीन बार कांग्रेस के प्रतिनिधियों को हरा चुकी थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी और गायत्री देवी में काफी समय से मतभेद चल रहा था।

क्या था देश मे आपातकाल लागू करने का कारण?

1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी एक तरह से यह सरकार को अपनी मनमानी करने का मौका था। आपातकाल की आड़ में सरकार ने गायत्री देवी को जेल में बंद कर दिया। उन पर विदेशी मुद्रा उलझन कानून का आरोप लगाया गया।

इंदिरा गांधी के आदेश पर जयगढ़ किले मे आयकर अधिकारियों ने छापा मारा। इस काम में सेना और पुलिस की भी मदद ली गई। 3 महीने तक जयगढ़ के किले में खजाने की खोज जारी रही। हालांकि गायत्री देवी बार बार यही दावा करती रही कि किले में कोई संपत्ति नहीं है लेकिन सरकार ने संपत्ति के लिए किले को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया । खुदाई खत्म होने के बाद सरकार ने दावा किया कि महल में कोई खजाना नहीं है।

पाकिस्तान ने भी मांगा अपना हिस्सा

सोचने वाली बात यह है कि जयगढ़ किले से जयपुर की महारानी का क्या संबंध हो सकता है, तत्कालीन दस्तावेजों पर नजर डाली जाए तो पता लगता है की राजा जयसिंह द्वितीय ने सन 1726 में जयगढ़ किले का निर्माण करवाया था।

इस महल में बनाई गई सुरंग का दूसरा हिस्सा राजा मानसिंह के 1592 में बनवाए गए आमेर के किले में खुलता था यानी कि आमेर का किला और जयगढ़ का किला आपस में जुड़े हुए थे, इसलिए सरकार ने खुदाई तो जयगढ़ किले में कार्रवाई पर उसके रास्ते आमेर किले तक बनी सुरंग में दबे सोनी को तलाश रहे थे। भारत सरकार का यह खुफिया अभियान पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी ना छिप सका।

1976 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा, इसमें कहा गया कि आपके यहां खजाने की खोज का काम आगे बढ़ रहा है और मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप इस दौरान मिली संपत्ति के वाजिफ हिस्से पर पाकिस्तान के दावे का भी ख्याल रखेगी। जैसे ही यह पत्र भारत पहुंचा, तो खबरें मीडिया के हाथ लगी और यह मसला पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया।

खुदाई चल ही रही थी कि भारत से दुनिया भर के राजनेताओं ने खजाने के बारे में पूछताछ शुरू कर दी। आखिरकार 3 मठ बाद इंदिरा गांधी ने खजाना न मिलने की घोषणा की और पाकिस्तान को संदेश लिखा कि…”हमने अपने कानूनी सलाहकारों से कहा था कि वह आपके द्वारा पाकिस्तान की तरफ से किए गए दावे का ध्यान से अध्ययन करें उनका साफ-साफ कहना है कि इस दावे का कोई कानूनी आधार नहीं है वैसे यहां खजाने जैसा कुछ भी नहीं मिला।”

शक के घेरे में क्यों है सरकार ?

सरकार ने भले ही खजाना न मिलने की बात से इनकार कर दिया था l लेकिन यह बात लोगों के दिमाग से नहीं हट रही थी। कहां जाता है कि जिस दिन आयकर विभाग और सुना ने किले से खुदाई का काम बंद किया और अभियान खत्म होने की घोषणा हुई, उसके तुरंत एक दिन बाद अचानक बिना किसी कारण से दिल्ली जयपुर हाईवे आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया।

कहा जाता है कि सरकार को किले से काफी संपत्ति बरामद हुई थी और उसे ट्रको में भरकर दिल्ली भी लाया गया था। जोकि सरकार जनता को इसकी भनक भी नहीं लगने देना चाहती थी। हाईवे बंद होने की घटना पर कांग्रेस ने कभी कोई सफाई पेश नहीं की। राजघराने के कई सदस्य हैं जो सरकार के दावे पर विश्वास नहीं करते।

बताया जाता है कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद जयपुर राजघराने को किले से प्राप्त संपत्ति का कुछ हिस्सा लौटाया गया था। इंदिरा गांधी ने आपातकाल की आड़ में सच को छुपा लिया था अपनी साख बचाने के लिए प्रधानमंत्री ने कहा की किले में खजाना था ही नहीं। इतिहासकारों से कहलवाया गया कि किले में खजाना था लेकिन उसका इस्तेमाल रियासतों ने जयपुर और आसपास के विकास के लिए कर लिया था। इन सभी दावों के बीच सच का पता आज तक नहीं चल पाया।

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