Saturday, September 21, 2024

Swami Chinmayananda Saraswati birth anniversary : प्रेरणादायक प्रवचनों के ज्ञाता थे स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती !

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Swami Chinmayananda Saraswati birth anniversary : प्रेरणादायक प्रवचनों के ज्ञाता थे स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती !

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे। उनको सुनने के लिए काफ़ी भीड़ एकत्र हो जाती थी। स्वामी जी ने सैकड़ों संन्यासी और ब्रह्मचारी प्रशिक्षित किये, हज़ारों स्वाध्याय मंडल स्थापित किये, बहुत-से सामाजिक सेवा के कार्य भी उन्होंने प्रारम्भ करवाये थे। उपनिषद, गीता और आदि शंकराचार्य के 35 से अधिक ग्रंथों पर इन्होंने व्याख्यायें लिखीं। ‘

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) का जन्म और प्रारम्भिक  शिक्षा :

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) का जन्म 8 मई सन् 1916 को केरल के एर्नाकुलम, में हुआ था। इनके बचपन का नाम ‘बालकृष्ण मेनन’ हुआ करता था। इनके पिता न्याय विभाग में एक न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे। बालकृष्ण की प्रारम्भिक शिक्षा पाँच वर्ष की आयु में स्थानीय विद्यालय ‘श्रीराम वर्मा ब्यास स्कूल’ में हुई थी। इनकी मुख्य भाषा अंग्रेज़ी थी।

बालकृष्ण की बुद्धि काफी तीव्र थी और पढ़ने में वे काफी होशियार भी थे। उनकी गिनती आदर्श छात्रों में की जाती थी। आगे की शिक्षा के लिए बालकृष्ण मेनन ने ‘महाराजा कॉलेज’ में प्रवेश ले लिया था। वे कॉलेज में विज्ञान के छात्र हुआ करते थे। ।

बाद में उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने सन् 1940 में ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ में प्रवेश ले लिया था। यहाँ उन्होंने विधि और अंग्रेज़ी साहित्य का भी अध्ययन किया था । विविध रुचियों वाले बालकृष्ण मेनन विश्वविद्यालय स्तर पर अध्ययन के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी संलग्न रहा करते थे।

व्यावसायिक शुरुआत:

1942 में वे आज़ादी के राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए और इन्हें कई महीने जेल में रहना पड़ा था। स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के समाचार पत्र ‘नेशनल हेरॉल्ड’ में पत्रकार की नौकरी भी मिल गयी थी तथा उनको विभिन्न विषयों पर लिखने का मौका मिल गया था।

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) ने किया था दर्शनशास्त्र का अध्ययन:

स्वामी शिवानंद के लेखन से गहन रूप से प्रभावित होकर मेनन ने सांसारिकता का परित्याग कर दिया था इसके साथ ही वह साल 1949 में शिवानंद के आश्रम में भी शामिल हो गए थे । वहां इनका नामकरण “स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati)” कर दिया गया था ।,

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) के नाम का अर्थ था “पूर्ण चेतना के आनंद से परिपूर्ण व्यक्ति”। लगातार आठ वर्षो का समय उन्होंने अपने वेदांत गुरु स्वामी तपोवन के निर्देशक में प्राचीन दार्शनिक साहित्य और अभिलेखों के अध्ययन में बिता डाला था ।इस दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) को अनुभूति हुई थी कि उनके जीवन का उद्देश्य वेदांत के संदेश का प्रसार करना है और भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण को पूरी तरह से वापस लाना है।

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) ने काऋ थी “चिन्मय मिशन” की स्थापना:

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) ने  उसके बाद “चिन्मय मिशन” की भी स्थापना करी थी । जो अब दुनिया भर में वेदांत के ज्ञान के प्रसार में संलग्न हो चुकी है। इसके साथ ही यह संस्था कई सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों की गतिविधियों की भी पूरी तरह से देखरेख करती है। साल 1993 में शिकागों में विश्व धर्म संसद में स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) ने हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व भी किया था । एक शताब्दी पहले स्वामी विवेकानंद को यह सम्मान मिला हुआ था ।

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) का निधन :

कैलिफ़ोर्निया में सैन डियागो में दिल का दौरा पड़ने से स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती (Swami Chinmayananda Saraswati) ने महासमाधि प्राप्त कर ली थी और सांसारिक जीवन से मुक्ति प्राप्त कर ली थी ।YOU MAY ALSO READ :- Chalapati rao birth anniversary: सहायक अभिनेता के साथ एक खलनायक के रूप में भी काफी प्रशंसा हासिल करी चलपति राव ने !

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