Friday, April 11, 2025

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी…. जानिए वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का पूरा इतिहास और कैसे हुई उनकी मौत

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी…. जानिए वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का पूरा इतिहास;और कैसे हुई उनकी मौत

Digital News Guru Historical Desk: झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थी। रानी लक्ष्मीबाई भारत के पहले स्वतंत्र संग्राम के समय में बहादुर वीरांगना थीं। झांसी की रानी ने आखिरी दम तक अंग्रेजों के साथ लड़ाई की थी। इनकी वीरता की कहानियां आज भी प्रचलित हैं, मरने के बाद भी झांसी की रानी अंग्रेजों के हाथ में नहीं आई थीं।

रानी लक्ष्मीबाई अपनी मातृभूमि के लिए जान न्यौछावर करने तक तैयार थी।’ मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ इनका यह वाक्य बचपन से लेकर अभी तक हमारे साथ है। यहाँ झांसी रानी की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय 

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर सन् 1828 को वाराणसी भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था तथा इनकी माता का नाम भागीरथी सप्रे था । रानी लक्ष्मीबाई के माता पिता ने इनका नाम मणिकर्णिका रखा था। लेकिन शादी के बाद उनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया था। इनके बचपन का नाम मनु भी था।

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन

रानी लक्ष्मी बाई का असली नाम मणिकर्णिका था, बचपन में उन्हें प्यार से सभी लोग मनु कह कर बुलाते थे। इनके पिता मोरोपंत तांबे मराठा बाजीराव की सेवा में थे और उनकी माता एक विदुषी महिला थी। छोटी उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी माता का देहांत हो जाने के कारण इनके पिता ने ही इनका पालन पोषण किया था, बचपन से ही उनके पिताजी ने रानी लक्ष्मीबाई को हाथियों और घोड़ों की सवारी और हथियारों का उपयोग करना सिखाया करते था। नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ रानी लक्ष्मीबाई पली-बढ़ी थी।

झांसी का बुलंद किला

झांसी किले की नींव आज से करीब कई 100 वर्ष पहले 1602 में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव के द्वारा रखी गई थी। ओरछा (मध्यप्रदेश में एक कस्बा) जो कि झांसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बंगरा पहाड़ी पर 15 एकड़ में फैले इस विशालकाय किले को पूरी तरह तैयार होने में 11 सालों का समय लग गया था और यह सन् 1613 में बनकर तैयार हुआ था। यही कारण है कि इस किले की पूरे संसार में इतनी चर्चा होती रहती है। पहले झांसी ओरछा नरेश के राज्य में आती थी जो बाद में मराठा पेशवाओं के आधीन हुआ करती थी।

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के महाराज राजा गंगाधर राव के साथ हो गया था। विवाह के बाद मणिकर्णिका का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई रख दिया गया था। फिर वह झांसी की रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई थी। सन् 1851 में उनके बेटे का जन्म तो हुआ था, परंतु 4 महीनों के बादउसकी मृत्यु हो गई थी। कुछ समय बाद झांसी के महाराजा ने दत्तक ( आनंद राव) को ही अपना पुत्र समझ कर उसको अपना लिया था।

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम

महल और मंदिर के बीच जाते समय रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर जाती थीं या फिर कभी कभी पालकी द्वारा भी जाती थीं। सारंगी ,पवन और बादल उनके घोड़े में शामिल थे। 1858 में इतिहासकारों के अनुसार यह माना गया है कि किले की तरफ भागते समय रानी लक्ष्मीबाई बादल पर सवार थी।

रानी लक्ष्मी बाई के पति की मृत्यु

2 साल बाद ही सन 1853 में बीमारी के चलते हुएउनके पति की मृत्यु हो गई थी।बेटे और पति की मृत्यु के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई ने जरा सी भी हिम्मत नहीं हारी थी। जब रानी लक्ष्मीबाई के पति की मृत्यु हुई थी तब रानी लक्ष्मीबाई की उम्र केवल 25 साल ही थी।

रानी लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी बनना

जब महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई थी तब ब्रिटिश लोगों ने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में उसे स्वीकार नहीं करा था। उस समय एक गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ।था जो कि बहुत ही शातिर इंसान था , जिसकी नजर झांसी के महल के ऊपर थी। वो झांसी के किले के ऊपर कब्जा करना चाहता था क्योंकि उसको लगता था झांसी का कोई वारिश नहीं हुआ है। परंतु झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इसके पूरे खिलाफ हो गयी थी, वह किसी भी हाल में किला किसी को भी नहीं देना चाहती थी। रानी को बाहर निकालने के लिए ,उन्हे 60000 वार्षिक पेंशन भी देने का वादा कर दिया गया था ।

झांसी की रानी की मौत कैसे हुई?

18 जून सन् 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गयी थी । रानी लक्ष्मीबाई को लड़ाई करते समय ज्यादा चोट तो नहीं लगी थी परंतु उनका काफी खून बह गया था। जब वह घोड़े पर सवार होकर गॉड रही थी तब एक बीच में एक नाला पड़ा,रानी लक्ष्मीबाई को लगा अगर यह नाला पार कर लिया तो कोई उसे पकड़ नहीं कर पाएगा। परंतु जब वह नाले के पास पहुंची तब उनके घोड़े ने आगे जाने से मना कर दिया था।

तभी अचानक पीछे से रानी लक्ष्मीबाई के कमर पर तेजी से राइफल की गोली आकर लगी, जिसके कारण काफी ज्यादा खून निकलने लगा था। खून को रोकने के लिए जैसे ही उन्होंने अपनी कमर पर हाथ लगाया तभी अचानक उनकी हाथ से तलवार छूट के नीचे जा गिरी थी।फिर वापिस अचानक से एक अंग्रेजी सैनिक ने उनके सिर पर तेजी से वार कर दिया था जिसके कारण उनका सर फूट गया था। फिर वह घोड़े पर से नीचे गिर पड़ीं थी।

कुछ समय बाद एक सैनिक रानी लक्ष्मी बाई को पास वाले मंदिर में लेकर चले गया। अभी तक थोड़ी-थोड़ी उनकी सांसें चल रही थीं। उन्होंने मंदिर के पुजारी से कहा कि मैं अपने पुत्र दामोदर को आपके पास देखने के लिए छोड़ रही हूं ‌। यह बोलने के बाद उनकी सांसे बंद हो गईं थी। फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया। ब्रिटिश जनरल हयूरोज ने रानी लक्ष्मीबाई की बहुत सारी तारीफ में कहा था कि वह बहुत चतुर, ताकतवर और वीर योद्धा थीं।


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