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सरदार उधम सिंह जन्मदिन विशेष:
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड में सरदार उधम सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उनका मन था कि वह डायर को अपराधी की सज़ा दिलवा के ही रहेंगे। निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए सरदार उधम सिंह को 21 साल का समय लगा था। आज सरदार उधम सिंह जी का जन्मदिन है और हम आपको उनके देशप्रेम की कहानी बताते हैं।
‘सेवा देश दी जिंदड़िए बड़ी ओखी, गल्लां करनियां हल सुखालियां ने, जिन देश सेवा विच्च पैर धरया, ओहना लाख परेशान झेलियां ने।’ शहीद उधम सिंह इस नज्म को बार-बार गुनगुनाते थे। इस नज्म से उनकी बेहद गहरी नोकझोंक हुई थी। 13 मार्च 1940 को उधम सिंह ने माइकल ओ डायर से शादी कर ली थी। गोलीबारी के बाद जब ब्रिटिश पुलिस ने उनके लंदन स्थित घर की तलाशी शुरू की तो वहां से उन्हें एक लाल रंग की उधम सिंह की निजी डायरी मिली थी। इस डायरी में उधम सिंह ने इस नज्म को पंजाबी में तराशा था।
इन नामों से जाने गए थे सरदार उधम सिंह:
उधम सिंह जी की किताब में फ्रैंक ब्राज़ील और बावा सिंह के नाम से जाने जाते थे, लेकिन उनकी डायरी में वह अपना नाम केवल राम मोहम्मद सिंह आज़ाद ही बताते थे। लंदन की दो जेलों में बंदा निवास के दौरान उन्होंने स्मारक पत्र लिखा और बाकी सभी पर आजाद नाम ही दर्ज किया गया। खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से स्थापित करने के पीछे उधम सिंह का मकसद सिर्फ भारतीयों के मन में एकता की आवाज को बुलंद करना था।
माता-पिता और भाई की मृत्यु के बाद अकेले हो गए थे सरदार उधम सिंह:
सरदार उधम सिंह ने जलियांवाला बाग कांड के जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले और पंजाब के तत्कालीन ग्रैंडनर जनरल माइकल ओ डायर को लंदन में गोली मारी थी। निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए उन्हें 21 साल का समय लगा। क्रांतिकारी उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर इलाके के सुनाम गांव में साउदी उधम सिंह को केवल 3 साल ही हुए थे, जब उनकी मां का देहांत हो गया था। था. कुछ देर बाद उनके पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए। अनाथ हो जाने के कारण उधम और उनके भाई मुक्ता सिंह अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनि पाद पहुंचे। इसी दौरान उनके बड़े भाई की भी मृत्यु हो गई। वह बिल्कुल अकेला हो गया। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गये।
सरदार उधम सिंह पर जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड से पड़ा गहरा असर:
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड में उधम सिंह पर बहुत गहरा असर पड़ा था। उनका मन था कि वह डायर को उसके अपराध की सज़ा सुनाकर ही चैन की सांस ले। अपने इस मिशन को पूरा करने के लिए उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की थी, जिसमें अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका आदि देश शामिल थे।
1934 में उधम सिंह लंदन द्वीप। वहां उन्होंने एक कार और एक बंदूक़ रखी। बस वह जनरल डायर को मारने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे और यह मौका 1940 को मिल गया। रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की लंदन के कैक्सटन हॉल में एक बैठक हो रही थी, इसी बैठक में माइकल डायर भी शामिल थे। उधम सिंह भी इस बैठक में उत्तर प्रदेश में थे।
उधम सिंह ने एक मोटी सी किताब में बंदूक को छिपाकर रखा था। इसके लिए उन्होंने किताब के पन्नों को बिल्कुल बंदूक के आकार में काट लिया था, ताकि बंदूक को आसानी से छुपाया जा सके। जैसे ही बैठक शुरू हुई, उधम सिंह ने दीवार के पीछे जनरल डायर पर दो गोलियां चला दीं।
माइकल ओ डायर की दो गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। माइकल ओ डायर को गोली मारने के बाद उधम सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि अपनी गर्लफ्रेंड दे दी। उधम सिंह पर काफी दिनों तक मुकदमा चला और फिर 4 जून 1940 को उधम सिंह की हत्या के बाद उन्हें फांसी दे दी गई और 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह जी को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
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