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राणा सांगा : 80 घाव खाकर भी राणा सांगा का धड़ लड़ता रहा रणभूमि में, मातृभूमि की रक्षार्थ हुए थे वीरगति को प्राप्त !
मेवाड़ के चित्तौड़ में जन्मे महाराणा संग्रामसिंह ऊर्फ राणा सांगा 12 अप्रैल 1482 को पैदा हुए थे और 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा कि मृत्यु हो गयी थी । राणा कुम्भा के पोत्र और राणा रायमल के पुत्र राणा सांगा अपने पिता के बाद सन् 1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बन गए थे इनका शासनकाल 1509 से 1527 तक रहा था राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी, बाबर, महमूद खिलजी इस्लामिक शासकों के साथ युद्ध लड़ककर अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ बलिदान दे दिया था। आओ जानते हैं राणा सांगा के बारे में अद्भुत तथ्य।
राणा सांगा ने राजपूतों को किया एकजुट:
राणा सांगा सिसोदिया राजवंश के सूर्यवंशी शासक थे। यह पहली बार ऐसा था जबकि उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ सभी राजपूतों को एकजुट कर लिया था। उन्होंने दिल्ली, गुजरात, मालवा के मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य कि बहादुरी से रक्षा की थी।
राणा सांगा के शरीर पर थे 80 घाव:
राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी, महमूद खिलजी और बाबार जैसों के खिलाफ अपने जीवन मे कई लड़ाइयां लड़ी थी। और राणा सांगा ने सभी को धूल भी चटाई थी। युद्ध लड़ते समय राणा सांगा के शरीर पर लगभग 80 घाव भी हो गए थे फिर भी वे लड़ते रहे थे ।
युद्ध लड़ते समय राणा सांगा कि एक आंख, एक हाथ और एक पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बावजूद वे लड़ने जाया करते थे । उनके घावों के कारण राणा सांगा को ‘मानवों का खंडहर’ भी कहा जाता था। खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा का एक हाथ भी कट गया था और एक पैर ने काम करना भी बंद कर दिया था।
राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया:
राणा सांगा ने सिकंदर लोदी के समय पर ही दिल्ली के कई इलाकों पर अपना अधिकार करना पूरी तरह से शुरू कर दिया था। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। खातोली (कोटा) नामक स्थान पर दोनों पक्षों के बीच काफी युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई।
कहते हैं कि इस युद्ध में ही राणा सांगा का बायां हाथ कट गया था और उनके घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़े भी हो गए थे। खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन की अध्यक्षता में महाराणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी जिसे भी पूरी तरह से पराजय का सामना ही करना पड़ा था।
खानवा का युद्ध:
राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच 1527 को भयानक युद्ध हो गया था। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हो रही थी । बाबर के पास 2 लाख मुगल सैनिक थे और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी ही सेना थी। बस फर्क यह था कि बाबार के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था और राणा के पास साहस एवं वीरता थी।
युद्ध में बाबर ने राणा के साथ लड़ रहे लोदी सेनापति को लालच दिया था जिसके चलते सांगा को धोखा देकर लोदी और उसकी पूरी सेना बाबर से जा कर मिल गयी थी। लड़ते हुए ही राणा सांगा की एक आंख में तीर जा कर लग गया था, लेकिन उन्होंने इसकी जरा सा भी परवाह नहीं करी थी और वह युद्ध में डटे रहे थे। इस युद्ध में उन्हें कुल 80 घाव भी आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उडा दिये थे। लोदी के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई को पूरी तरह से हार गई थी।
राणा सांगा का निधन:
खानवा के युद्ध में राणा सांगा बेहोश हो गए थे जहां से उनकी सेना उन्हे दूसरी जगह पर ले गई थी। वहां पर राणा को होश में आने के बाद फिर से राणा ने लड़ने की ठान ली थी। कहते हैं कि यह सुनकर जो सामंत लड़ाई नहीं को और नही होने देना चाहते थे । तभी उन सभी ने मिलकर राणा सांगा को जहर दे दिया था जिससे 30 जनवरी 1528 को उनकी मृत्यु हो गयी थी ।
राणा सांगा का विधि विधान से अन्तिम संर माण्डलगढ (भीलवाड़ा) में हुआ। इतिहासकारोंअनुसार उनके दाह संस्कार स्थल पर एक छतरी बनाई गई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि वे मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सेना पर तलवार से गरजे थे। युद्ध में महाराणा का सिग होने के बाद भी उनका धड़ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था ।YOU MAY ALSO READ :- Lal ji tandon birth anniversary: लालजी टंडन की यात्रा शून्य से शिखर तक की रही है, मायावती को मानते थे बहन !