Saturday, November 23, 2024

जानिए नवरात्र के इस अवसर पर की माता वैष्णो देवी किसकी पुत्री थी और किस उद्देश्य से माता ने पृथ्वी पर लिया अवतार !

DIGITAL NEWS GURU RELIGIOUS DESK:

जानिए नवरात्र के इस अवसर पर की माता वैष्णो देवी किसकी पुत्री थी और किस उद्देश्य से माता ने पृथ्वी पर लिया अवतार!

जम्मू कश्मीर की माता वैष्णो देवी के बारे में तो हर कोई परिचित है और यहां हमेशा हर मौसम में भक्तों का आवागमन बना रहता है तो आईए इस नवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपको माता वैष्णो देवी से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण तत्वों के बारे में बताते हैं…..

माता वैष्णो देवी देश के पवित्र धार्मिक स्थान में स्थित है, ये जम्मू में कटरा से लगभग 14 किमी की दूरी पर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है, वैष्णो देवी के शक्तिपीठ को सबसे दिव्य माना गया है। हालांकि माता के स्थल पर स्थिति सबसे पूरानी गुफा केवल कुछ महीनों के लिए ही खुलती है।

किसकी पुत्री थीं वैष्णों माता

माता वैष्णो देवी का जन्म दक्षिणी भारत में रत्नाकर के घर हुआ था।माता के जन्म से पहले उनके माता-पिता लंबे समय तक नि:संतान रहे।ऐसा भी बताया जाता है कि माता का जन्म होने से एक रात पहले उनके माता ने वचन लिया था, कि वो बालिका जो भी चाहे वे उसके मार्ग में नहीं आएंगी। बचपन में माता का नाम त्रिकुटा था। बाद में उनका जन्म भगवान विष्णु के वंश से हुआ, जिसके कारण उनका नाम वैष्णवी पड़ा गया।

श्री राम ने क्या दिया था वचन

त्रिकुटा ने 9 साल की उम्र में अपने पिता से तपस्या की अनुमति मांगी।वो समुद्र के किनारे तपस्या करना चाहती थीं। उन्होंने राम के रुप में भगवान विष्णु की पूरे मन से आराधना की।जब सीता की खोज में श्री राम समुद्र तट पर पहुंचे तो उनकी नजर तपस्या में लीन त्रिकुटा पर जा पड़ी। तब त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि आपको मैं पति के रुप में स्वीकार कर चुकी हूं।तो श्री राम ने कहा कि मैं इस अवतार में केवल सीता के प्रति प्रतिबंध हूं,कहा जाता है कि तभी श्री राम ने त्रिकुटा को वचन दिया कि वे कलियुग में फिर से प्रकट होकर अपने वचन को पूरा करेंगे।

मां वैष्णोदेवी मंदिर की कहानी और उनकी महिमा के बारे में माना जाता है, कि लगभग 700 वर्ष पहले मंदिर का निर्माण पंडित श्रीधर ने किया था। श्रीधर एक ब्राह्मण पुजारी थे। श्रीधर व उनकी पत्नी माता रानी के परम भक्त थे। एक बार श्रीधर को सपने में दिव्य के जरिए भंडारा करने का आदेश मिला। लेकिन श्रीधर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। जिसके कारण वह आयोजन की चिंता करने लगे और चिंता में पूरी रात जागे।

फिर उन्होंने सब किस्मत पर छोड़ दिया। सुबह होने पर लोग वहां प्रसाद ग्रहण करने के लिए आने लगे। जिसके बाद उन्होंने देखा कि वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या उनकी कुटिया में पधारी हैं और उनके साथ भंडारा तैयार किया ।गांव वालों ने इस प्रसाद को ग्रहण किया। इस प्रसाद को ग्रहण करने के पश्चात लोगों को संतुष्टि मिली लेकिन वहां मौजूद भैरवनाथ उस प्रसाद को ग्रहण करने नहीं गए।

उसने अपने जानवरों के लिए और खाने की मांग की। लेकिन वहां वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या ने श्रीधर की ओर से ऐसा करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद भैरवनाथ ये अपमान सह नहीं पाया और भैरव ने दिव्य कन्या को पकड़ने की कोशिश की। मगर वह इस कार्य में सफल रहा । तभी मैं कन्या वहां से गायब हो गई। इस घटना से श्रीधर को अत्यंत दुख हुआ।

श्रीधर ने अपनी माता वैष्णो रानी के दर्शन करने की लालसा जताई। जिसके बाद एक रात वैष्णो माता ने श्रीधर को सपने में दर्शन दिए और उन्हें त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा का रास्ता दिखाया, जिसमें उनका प्राचीन मंदिर है। बाद में ये मंदिर विश्वभर में माता वैष्णो देवी के नाम से जाना जाने लगा।

माता वैष्णो के बाद भैरव बाबा के दर्शन जरूरी

धार्मिक मान्यता के अनुसार,मां वैष्णो देवी के दरबार में आने वाले किसी भी श्रद्धालुओं की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती, जब तक कि भक्त भैरों घाटी जाकर मंदिर में भैरव बाबा के दर्शन न कर लें।


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