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“लाल सलाम” फिल्म का रिव्यू (Laal Salaam movie review):
“लाल सलाम” (Laal Salaam) फिल्म के रिलीज होते ही रजनीकांत छा चुके है. वैसे तो वह फिल्म में कैमियो रोल में नजर आए हैं, लेकिन लोग उन्हें इस छोटे से रोल में भी खूब पसंद कर रहे हैं. लोगों को रजनीकांत का ये अंदाज खूब पसंद आ रहा है.
9 फरवरी को सिनेमाघरों में”लाल सलाम” (Laal Salaam) फिल्म रिलीज हो चुकी है. ये तमिल भाषा की एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है, इस फिल्म को रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या रजनीकांत ने डायरेक्ट किया है. इस फिल्म में विष्णु विशाल, विक्रांत जैसे सितारे भी नजर आए हैं.
हालांकि, सबसे ज्यादा चर्चा रजनीकांत के रोल की हो रही है. रजनी कांत इस फिल्म में कैमियो रोल में नजर आए हैं. फिल्म में उनका रोल लगभग 30 मिनट का ही है. वहीं अपने इसी किरदार के जरिए वो लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छा चुके है.
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“लाल सलाम” (Laal Salaam) फिल्म का इंतज़ार काफी दिनों से लोगों को था. फिल्म का निर्देशन उनकी बेटी ऐश्वर्या रजनीकांत ने ही किया है, जो आठ साल बाद एक्शन में वापस आ रही है.
इससे भी बड़ी बात यह है कि वह अपने पिता रजनीकांत को निर्देशित कर रही हैं. लाल सलाम, फिल्म मे जिसमें विष्णु विशाल और विक्रांत हैं. एक ऐसी कहानी है जो क्रिकेट और धर्म के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है.
गांव के मोइदीन के राजनीतिकरण की कहानी है “लाल सलाम” (Laal Salaam) :
विष्णु विशाल और मोइदीन भाई के बेटे शम्सुद्दीन बचपन से ही एक दूसरे का कॉम्पटिशन रहे हैं और यह बात उनके पुरे गांव में क्रिकेट के मैदान तक भी फैली हुई है. मोइदीन भाई द्वारा शुरू की गई थ्री स्टार टीम, थिरु और शम्सू दोनों के साथ एक विजेता टीम भी है,
लेकिन थिरु की सफलता से ईर्ष्या करने वाले और गलत इरादों वाले लोगों ने उन्हें किसी तरह टीम से बाहर कर दिया. थिरु खुद एक प्रतिद्वंद्वी एमसीसी टीम बनाता है और दोनों टीमें गांव में विभिन्न धर्मों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इस तरह, गांव में मैच को ही भारत बनाम पाकिस्तान कहा जाने लगा, जो पहले शांतिपूर्ण सद्भाव में रह रहा था.
क्रिकेट और धर्म के इर्द-गिर्द घूमती है फिल्म “लाल सलाम” (Laal Salaam) की कहानी :
मोइदीन भाई अपने पुरे परिवार के साथ मुंबई में रहते हैं और एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी शम्सू को एक दिन भारत के लिए मैच खेलते देखना उनका एक सपना है. लेकिन गांव के एक मैच मे थिरु और शम्सू के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाता है और इनका सब कुछ बदल देता है. दो आदमियों का क्या होता है? क्या शम्सू आख़िरकार भारत के लिए खेल पाता है? क्या मोइदीन भाई लड़कों की प्रतिद्वंद्विता और गांव के हिंदू-मुस्लिम झगड़े को ख़त्म कर पाएंगे ?
हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों की है “लाल सलाम” (Laal Salaam) की कहानी:
लाल सलाम फिल्म का पहला भाग गांव और उसके लोगों और वहां रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों के इर्द-गिर्द ही घूमता है. यह थिरु और शम्सू के बीच के प्रतिद्वंद्विता भी स्थापित करता है. दूसरे भाग में वास्तव में गति
काफी बढ़ती है और हम देखते हैं कि रजनीकांत अपना पावर-पैक प्रदर्शन करना शुरू करते हैं.
रजनीकांत को स्क्रीन पर एक मुस्लिम नेता मोइदीन भाई का किरदार निभाते हुए देखना काफी दिलचस्प है. उनके द्वारा दिए गए कुछ डायलॉग उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं और आज के समय में ये सब काफी सार्थक हैं. वास्तव में ये सब रोंगटे खड़े कर देने वाले पल हैं.
रजनीकांत ने पिता की दोहरी भूमिका निभाई है :
फिल्म के एक सीन में मोइदीन भाई कहते हैं, कि भारत भारतीयों के लिए ही है और मैं एक भारतीय मुसलमान हूं और. मैं यहीं पैदा हुआ और यहीं ही मरूंगा. यह मेरा ही घर है, हमें जाति या धर्म की नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ इंसानियत की बात करनी चाहिए और इंसानियत सबसे ऊपर है.
जय हिन्द. सबसे ऊपर मानवता एक ऐसा पहलू है जिसके बारे में सुपरस्टार ने वास्तविक जीवन में भी काफी बात की है. इसके अलावा, रजनीकांत ने एक पिता की दोहरी भूमिका को काफी खूबसूरती से निभाया है, जिसकी अपने बेटे के लिए आकांक्षाएं हैं, और एक नेता, और वो मानता है कि धर्म या जाति के बावजूद सभी लोग एक ही हैं.
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