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जानिए मां वैष्णो देवी के दरबार का महत्व और पौराणिक कथा , क्यों किया था माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध !
आप सभी ने सुना ही होगा कि जम्मू कश्मीर में मां वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए सौभाग्य और अवसर सिर्फ युवा लोग आते हैं, जिन्हे कटरा जम्मू कश्मीर में मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए बुलाया जाता है। और जिन्हे भी माँ वैष्णो देवी का दर्शन बहुत भाग्यशाली लगता है। तभी तो पूरे साल मां वैष्णो देवी के दरबार में भक्त हमेशा गुलज़ार रहते हैं। मंदिर में हर समय मां के जयकारे गूंजायमान यहीं रहते हैं।
ना किसी भूकंप का खतरा है ना भीषण गर्मी की लहर, ना भालू का डर हर मौसम में रहता है मां के दर्शन के लिए यहां भक्तों की कतार हमेशा बनी रहती है। राष्ट्रीय पर्व और पवित्र पर्व बस शुरू होने वाला है।
मां के इन पावन दिनों में इन दिनों मां देवी दुर्गा की 9 सैद्धांतिक (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री) की पूजा पाठ करने का विधान है। जम्मू की वैष्णो देवी माता भी साक्षात मां दुर्गा का ही रूप हैं।
त्रिकूट पर्वत पर पिंडी के रूप में मंदिर मां की पौराणिक कथा क्या है और भवन से जुड़ी हुई कुछ खास बातें हैं जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
माँ वैष्णो देवी की पौराणिक कथा:
जम्मू-कश्मीर में स्थित मां वैष्णो देवी सबसे अधिक पूजनीय देवी कटरा इलाके से 2 कि.मी. की दूरी पर हलाला गांव में स्थित मां वैष्णवी केमां वैष्णो देवी की पौराणिक कथा कटरा जम्मू-कश्मीर में स्थित मां वैष्णो देवी बौद्धों में सबसे पूजनीय देवी मानी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि कटरा इलाके से 2 कि.मी. उनके दर्शन के लिए हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम पूज्य भक्त श्रीधर थे।
वे निःसंतान होने के कारण काफी दुःखी हो रहे थे। एक दिन नवरात्रि में पूजन के लिए उन्होंने कुँवारी कन्याओं को बुलाया था। माँ वैष्णो कन्या वेस में स्वर्ग के बीच आ रही थी। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो मां वैष्णो देवी पर चली गईं जहां रुकी रही थीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का दर्शन दे के आइए।
‘ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की मन ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश दिया था। वहां से लौटकर आये समय गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ अन्य शिष्यों को भी भोजन कराया गया था। सभी गांव वासियों को भोजन की शिक्षा देने की इच्छा बहुत ही आश्चर्यजनक थी, वह कौन सी कन्या है, जो कि सभी लोगों को भोजन की इच्छा प्रकट कर रही है? सभी गांववासी भोजन के लिए एक साथ इक्ट्ठे हो गए, तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी लोगों को भोजन बनवाना शुरू कर दिया।
भोजन भोजनते – जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई, तो भैरवनाथ ने गोदाम बनाया, तब कन्या ने बेकार कर दिया। लाकन भैरवनाथ जिद पर अड़ा रहा। भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ने की चाहत रखी, तब माँ ने उसके कपाट को जान लिया। माँ के रूप में त्रिकुट पर्वत की ओर उड़ चला। इस दौरान माता ने नौ महीने तक तपस्या की और एक गुफा में प्रवेश किया। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।
इस गुफा का स्मारक बहुत ही महत्वपूर्ण है, चतुर्मुखी माता के भवन का। यहां 9 महीने बाद कन्या ने गुफा से बाहर देवी का रूप धारण किया था। माता ने भैरवनाथ को चेताया था वापस और जाने को कहा था। मगर जब भैरवनाथ नहीं माना तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप धारण कर लिया और भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का शीश कटकर उस भवन से 8 किमी की दूरी पर ट्राइकोटन पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा। तब से उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। और जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया था वह स्थान पवित्र गुफा’ या ‘भवन के नाम से प्रसिद्ध है।
वैष्णो देवी से जुड़ी कुछ खास बातें:
- वैष्णो देवी का मंदिर 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बारे में बात करें तो रास्ते में इस दौरान कई दिव्य स्थल भी मौजूद हैं जिनका अपना अलग-अलग धार्मिक महत्व है। इनमें बांगाण, अर्धकुंवारी, सांझी छत आदि शामिल हैं।
- वैष्णो देवी मंदिर में अर्धकुंवारी गुफा का बहुत ही महत्व है, लेकिन यहीं मां के भवन का भी महत्व है। कहते हैं इसी गुफा में मां के कन्या रूप में 9 महीने तक तपस्या करी थी। इस गुफा को गर्भगृह के नाम से भी जाना जाता है।
- जिस स्थान पर माता वैष्णो देवी पिंडियां, देवी काली, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी के रूप में गुफाओं में निवास करती हैं। वह स्थान ही ‘माता रानी का भवन’ कहलाया जाता है।
इस समय माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जिस मार्ग का उपयोग किया जा रहा है, वह माता की गुफा में प्रवेश का प्राकृतिक मार्ग नहीं है। लेकिन भक्तों की भारी भीड़ को देखकर इस प्राकृतिक गुफा का निर्माण किया गया है। जब वैष्णो देवी के मंदिर में भक्तों की संख्या दस हजार से भी कम होती है, तब भी प्राचीन गुफा का द्वार खोला जा सकता है।
लेकिन ये भी कहा जाता है कि ये सौभाग्य है कि बेहद ही कम भक्त इसके दर्शन करते हैं, तब भी प्राचीन गुफाओं का द्वार खोला जाता है और सभी भक्त प्राचीन मार्ग से माता के दरबार तक पहुंच सकते हैं। लेकिन कहा जाता है ये भी कहा जाता है कि ये बेहद ही कम सहकर्मी मिलते हैं।YOU MAY ASLO READ :- 9 अप्रैल से होगी चैत्र नवरात्रि का आरंभ , घोड़े पर सवार होकर आएगी मां दुर्गा !