Saturday, November 23, 2024

GSVM Hospital Kanpur: प्री-मैच्योर बच्चों की आंखों की दिक्कतो का अब लगेगा पता ; कानपुर के जीएसवीएम हॉस्पिटल में शुरू हुई स्क्रीनिंग :

DIGITAL NEWS GURU UTTAR PRADESH DESK :-

GSVM Hospital Kanpur: प्री-मैच्योर बच्चों की आंखों की दिक्कतो का अब लगेगा पता ; कानपुर के जीएसवीएम हॉस्पिटल में शुरू हुई स्क्रीनिंग :

GSVM Hospital Kanpur:  जीएसवीएम मेडिकल (GSVM Hospital) कॉलेज में अब प्री-मैच्योर बच्चों को आंखों में होने वाली परेशानियों से छुटकारा मिल सकेगा। इससे बचने हेतु अस्पताल में शिशुओं की स्क्रीनिंग शुरू हो गई है, जिन बच्चों में रेटिनोपैथी की दिक्कत होती थी उनको समय रहते इलाज मिलेगा। इसके लिए हैलट अस्पताल में आरओपी ग्रीन लेजर विधि से बच्चों का ऑपरेशन किया जा रहा है। अभी तक इस इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली, मुंबई जैसे शहर जाना पड़ता था, लेकिन अब इसका इलाज कानपुर में ही संभव है। पहले नहीं पता चल पाती थी बीमारी-

Ganesh Shankar Vidyarthi Memorial Medical College - Wikipedia

मेडिकल कॉलेज (GSVM Hospital)  के वरिष्ठ नेत्र रोग सर्जन डॉ. परवेज खान के अनुसार, पहले इस बीमारी का पता नहीं लग पाता था। जिसके कारण बच्चे जन्म से ही अंधे हो जाते थे। क्योंकि इस बीमारी का इलाज बच्चे के पैदा होने से लेकर एक माह के भीतर ही करना होता है। यदि इससे ज्यादा का समय बीत गया तो फिर बच्चे की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाएगी। इसके लिए अब अस्पताल में स्क्रीनिंग शुरू हो गई है। इसके ऑपरेशन के लिए आरओपी ग्रीन लेजर मशीन भी आ गई है।

(GSVM Hospital) में हफ्ते में 15 से 20 बच्चे आ रहे –

हैलेट (GSVM Hospital) के डॉ. परवेज खान ने बताया ,कि पहले स्क्रीनिंग की सुविधा नहीं थी तथा यहां पर कई सालों से यह ऑपरेशन भी नहीं हो रहे थे। इसके चलते ज्यादा मरीज निकल कर सामने नहीं आते थे, लेकिन बच्चों वाला NICU अच्छा हुआ है और सुविधाएं बढ़ी है, तब से बाल रोग विभाग और नेत्र रोग विभाग ने मिलकर स्क्रीनिंग का प्रोग्राम शुरू किया है।

Ganesh Shankar Vidyarthi Memorial Medical College - Wikipedia

इसके चलते अब हर हफ्ते 15 से 20 मरीज निकल कर सामने आते है। उन्होंने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की आंखों की रोशनी जाने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसे बच्चों की आंखों में रेटिनोपैथी जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में आंखों में जाने वाली खून की कोशिकाएं गर्भावस्था के दौरान धीरे-धीरे विकसित होती हैं, लेकिन समय से पहले जन्में बच्चों में ऐसा नहीं हो पाता है और बच्चों को कम दिखाई देता है। समय से जांच होने पर इस बीमारी का इलाज संभव है।

कानपुर में मई से सुपर स्पेशियलिटी इलाज की उम्मीद, GSVM मेडिकल कॉलेज में बन  रहा सात मंजिला ब्लॉक - super speciality hospital built in GSVM medical  college kanpur

लगातार आक्सीजन देने से रेटिना पर पड़ता असर-

उन्होंने बताया कि खानपान, रहन-सहन सही न होना, संक्रमण, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, हाई ग्रेड फीवर आदि हाई रिस्क में शामिल गर्भवती को प्री-मैच्योर डिलीवरी की संभावना अधिक रहती है। इस हिसाब से हैलेट के जच्चा-बच्चा अस्पताल में प्रतिदिन दो या चार प्री-मैच्योर डिलीवरी होती है, जिनमें से अधिकांश नवजातों का वजन डेढ़ किग्रा या बहुत ही कम होता है। सांस लेने में तकलीफ होने पर उनको आक्सीजन की आवश्यकता होती है। लगातार दस दिन से अधिक आक्सीजन देने रेटिना पर बुरा असर पड़ता है।

Five to eight cases are coming daily in the Department of Dermatology of  GSVM Medical College, more number of adolescent girls. Kanpur | गोरा होने  के चक्कर में उग रही है दाढ़ी-मूंछ:

दो प्रकार से होता है इलाज-

डॉक्टर्स ने बताया कि इसका इलाज दो प्रकार से किया जाता है। एक तो केवल इंजेक्शन लगाने से ही ठीक किया जा सकता है। यदि मर्ज को पहली या दूसरी स्टेज पर ही पकड़ लेते है तो, तीसरे या चौथे स्टेज पर बीमारी पहुंच गई तो इंजेक्शन के साथ-साथ लेजर विधि से ऑपरेशन किया जाता है।

अपनी तरफ से दे रहे 25 हजार का इंजेक्शन

डॉ. खान ने बताया, कि अगर किसी छोटे से छोटे प्राइवेट अस्पताल में ऑपरेशन कराते है, तो इसमें इंजेक्शन का खर्च ही 25 हजार रुपए का आता है। ऑपरेशन का खर्च अलग रहता है, लेकिन हैलट अस्पताल में जितने भी गरीब बच्चे आते है उन्हें यह इंजेक्शन मेरी तरफ से निशुल्क लगाया जाता है। इसकी कोई भी फीस किसी से नहीं लेते हैं।

यह भी पढ़ें: Nautapa 2024: आखिरकार क्या होता है ? यह नौतपा ; इसकी प्रचंड गर्मी से कैसे बचा जा सकता है :

आपका वोट

Sorry, there are no polls available at the moment.
Advertisements
Latest news
- Advertisement -

You cannot copy content of this page