George fernandes birth anniversary : संघर्ष की अनकही दास्तां से भरा था जॉर्ज फर्नांडिस का पूरा जीवन, पढ़ेंं क्या थी वो अनकही दास्तां
George fernandes birth anniversary: हमारे देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) का 88 साल की उम्र में ही निधन हो गया था आज यानी 3 जून को उनकी जयंती है। देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) का 88 साल की आज 3 जून को जयंती है। इस मौके पर हम अपने पाठकों को जॉर्ज के जीवन से जुड़ींं कुछ खास जानकारियों के बारे में बता रहे हैं। कैसा रहा जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) का जीवन, कैसे वो इतने बड़े नेता बने, कैसे उन्होंने बाकी नेताओं से अलग हटकर अपनी पहचान बनाई। पढ़ेंं और जानेंं कुछ अन्य दिलचस्प बातें
जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) का पूरा जीवन संघर्ष की अनकही दास्तां से भरा पड़ा है। 1974 में हुई रेलवे की सबसे बड़ी स्ट्राइक में जो नाम सबसे अधिक चर्चित था वह फर्नांडिस का ही था। 1967 से 2004 तक जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) 9 लोकसभा चुनाव जीते। वो उन चुनिंदा लोगों या नेताओं में शुमार थे जो इंदिरा गांधी के सबसे बड़े विरोधी थे। यही वजह थी कि वह इंदिरा गांधी की आंखों की किरकिरी भी थे।
आपातकाल के समय में जब पूरे देश में जेपी आंदोलन की लहर चरम पर थी उस वक्त जॉर्ज फर्नांडिस भी सरकार के खिलाफ चल रही मुहिम का हिस्सा थे। धीरे-धीरे नेताओं को सरकार जेल में ठूंस रही थी। कई नेता अंडरग्राउंड हो चुके थे। उस समय पर नेताओं की आवाज दबाने के लिए और उन्हें जेल में डालने के लिए बड़ौदा डायनामाइट केस का ही सहारा लिया गया था।
जॉर्ज (George fernandes) पर लगा था राजद्रोह का आरोप
दरअसल, इसके विरोध में उठे सभी नेताओं पर क्रिमिनल के केस लगाए जा रहे थे। तभी इसमें विपक्ष के भी कई नेता शामिल हो गए थे। इस विरोध मे जॉर्ज फर्नांडिस के साथ 24 और दूसरे नेता भी शामिल हो गए थे थे। इसके तहत ही उन पर आरोप लगाया गया था कि आपातकाल के खिलाफ जॉर्ज ने सरकारी संस्थानों और रेल ट्रैक को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्करी करी हुई थी। इसके साथ ही उनके खिलाफ सरकार को उखाड़ फेंकने को लेकर विद्रोह करने का भी आरोप लगाया गया था । साल 1976 में उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद भी किया गया था।
जॉर्ज (George fernandes) के दोस्त स्नेहलता की मौत
उनके अलावा विरेन जे शाह, जीजी पारिख, सीजीके रेड्डी, प्रभुदास पटवारी, देवी गुज्जर और फर्नांडिस की करीबी दोस्त स्नेहलता को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि स्नेहलता का नाम इस मामले में दायर फाइनल चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया था। स्नेहलता को बेहद खराब हालात में बेंगलौर की जेल में रखा गया था, जहां उन्हें काफी प्रताडि़त किया गया।
15 जनवरी 1977 को उन्हें पैरोल पर जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन इसके महज पांच दिन बाद ही उनकी मौत हो गई। जांच में पता चला कि उन्हें क्रॉनिक अस्थमा और फेंफड़ों में इंफेक्शन था। स्नेहलता को आपातकाल की पहला शहीद कहा जाता है।
सीबीआई कर रही थी जांच
जॉर्ज के बड़ौदा डायनामाइट केस की जांच पूरी तरह से सीबीआई के हाथों में दे दी गयी थी। जॉर्ज फर्नांडिस को बड़ौदा डायनामाइट केस के सिलसिले में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया तो जेएनयू के करीब दर्जन भर छात्रों ने नारे लगाए कि जेल का फाटक तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़ दो।
इस पूरे दौर में देश में राजनीतिक सरगरमी चरम पर थीं। वहीं दूसरी तरफ देश चुनाव की तरफ भी बढ़ रहा था। चुनाव घोषित हो चुके थे और कांग्रेस अपने विरोधियों को चुप कराने और चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। लेकिन नतीजा उसके खिलाफ रहा।
साल 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा
साल 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा था। पूरे चुनाव के दौरान वह एक बार भी अपने क्षेत्र में नहीं जा सके थे, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अप्रत्याशित तौर पर जीत हासिल की थी। वह यहां से करीब तीन लाख वोटों से जीते थे। चुनाव के दौरान उनकी हथकड़ी लगी हुई तस्वीर के जरिए प्रचार किया गया था। इंदिरा गांधी की हार के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो आपातकाल के दौरान दर्ज सभी मामलों को वापस ले लिया गया और सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया था।