DIGITAL NEWS GURU DELHI DESK:
Sarvepalli Radhakrishnan birth anniversary : हर साल शिक्षक दिवस के अवसर मे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को किया जाता है हमेशा याद, भारत के के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति भी रहे थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जब भी किसी देश में शिक्षक दिवस आता है, तो डॉक्टर सर्वपल्लीकृष्णन को विशेष रूप से याद किया जाता है। 20वीं सदी के प्रसिद्ध बौद्धों की गिनती। जल्द ही देश में शिक्षक दिवस आने वाला है। ऐसे में कई लोग हैं जो डॉक्टर सर्वपल्लीकृष्ण राधान की जीवनी पढ़ना चाहते हैं।
भारत के राष्ट्रपति और राष्ट्रपति के रूप में महत्वपूर्ण पद पर कायम रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन से ही बचपन से ही काफी महत्व दिया गया था। अगर इनका जन्म हुआ तो साल 1888 में तमिलनाडु की बात करें तो नाम के गांव में 5 सितंबर को राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था। यह एक पारिवारिक परिवार में पैदा हुए थे और बचपन में ज्यादातर समय अपने गांव और मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों के आसपास स्थापित हुए थे।
बचपन से ही पढ़ाई में काफी रुचि थी। यही कारण है कि हमेशा क्लास में बच्चों की सूची में इसे शामिल किया जाता है। स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही एब्सट्रैक्ट के महत्वपूर्ण अंशों को याद किया गया और इसके लिए विशेष योग्यता का सम्मान भी दिया गया।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा
कम उम्र में ही एंगल्स स्वामी और वीर सावरकर ने पढ़ना शुरू कर दिया था और उनके विचारों से वे काफी प्रभावित हुए थे। वर्ष 1902 में प्रथम डिवीजन के साथ स्ट्रेंथ लेवल की परीक्षा पास की गई थी, जिसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी प्राप्त हो गई थी।
इसके अलावा मद्रास में मौजूद क्रिश्चियन कॉलेज द्वारा भी विशेष योग्यता के लिए स्कॉलरशिप दी गई थी। वर्ष 1916 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की थी और मद्रास रेजिडेंसी कॉलेज में इसी विषय के नामांकित शिक्षक का पद हासिल किया था।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिवार
डॉक्टर सर्वपल्ली के आकर्षक का नाम सर्वपल्ली रामास्वामी था और उनकी माता जी का नाम श्रीमती सीता झा था। यह एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे और उनके मूर्तिपूजक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चार भाई और एक छोटी बहन थी। इस प्रकार से उनके परिवार में कुल 8 सदस्य थे। हालाँकि परिवार की कमाई बिल्कुल ही सीमित थी।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के समय में मद्रास में बहुत ही कम उम्र में ब्राह्मण परिवार में विवाह का चलन था और ऐसे में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी इससे बच नहीं सके। साल 1903 में महज 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी ‘सिवाकामू’ नाम की महिला के साथ हुई। इस समय पत्नी की उम्र सिर्फ 10 साल थी। उनकी पत्नी ने सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। इसके बावजूद तेलुंगगुवेज़ की अच्छी पांडुलिपियाँ थीं और उन्हें अंग्रेजी भाषा में भी लिखा जा सकता था और पढ़ा जा सकता था। साल 1908 में राधाकृष्णन को एक बेटी का जन्म हुआ।
भारत रत्न से किये गए थे सम्मानित
वर्ष 1952 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के प्रतिष्ठित सफल व्यक्ति बने और कुछ पूर्वजों के बाद ही 1962 में इलिनोइस से भारत के राष्ट्रपति भी चुने गए। हालाँकि इसी दौरान साल 1954 में देश को एक ऐसा पुरस्कार मिला, जिसे पाने की चाहत हर व्यक्ति को होती है।
वास्तव में हमारे भारत देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राबड़ी प्रसाद के द्वारा इस देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया था। एक और बड़ा पुरस्कार भी उदाहरणार्थ। इस पुरस्कार का नाम विश्व शांति पुरस्कार है। यह जर्मनी का बुक पब्लिकेशन पुरस्कार था।
रवींद्र नाथ टैगोर से मुलाकात
वर्ष 1918 में जुलाई माह में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन मैसूर की यात्रा पर थे। उनके सानिध्य में प्रसिद्ध कवि रशियन नाथ टैगोर जी से हुई। इस मुलाकात से डॉक्टर सर्वपल्ली को काफी खुशी हुई और उन्होंने अपने विचार को वर्ष 1918 में “रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन” नाम के पुरालेख से प्रकट किया, जिसे मैंक मिलन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसकी बात दो “द रिन ऑफ रिलिजन इन कंटेनपरेरी फिलासफी” नाम से एक किताब लिखी गई, जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी हद तक मिली।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की किताब
- रिलिजन की स्पिरिट
- महात्मा गांधी
- द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ
- द आइडियलिस्ट ऑफ़ लाइफ़
- रेलिजन एंड सोसाइटी
- ए क्लासिकबुक इन इंडियन फिलॉसफी
- हिंदू धर्म की फिलोसोफी
- पूर्वी रेलिज़न्स पश्चिमी थॉट
- लिविंग विथ ए पर्पस
- सत्य के लिए खोजी
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु
शिक्षा के लिए काम करते-करते आख़िरकार वह भी दिन आ गया, जब भगवान का बुलावा आया। साल 1975 में 17 अप्रैल को ही वह दिन थे जब लंबी बीमारी के बाद चेन्नई में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग 86 वर्ष के आसपास थी। खैर आज डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे बीच नहीं है, लेकिन इसके बावजूद एक आदर्श शिक्षक और सिद्धांत के तौर पर वह हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत माने जाते हैं।