सांसे थमने के बावजूद भी अपनी शायरियो की दम पर अभी भी हज़ारों दिलों पर राज करेगे मुनव्वर राणा !
Digital News Guru Entertainment Desk: “…तो अब इस गांव से रिश्ता हमारा खत्म होता है, फिर आंखे खोली जाए कि सपना खत्म होता है।” मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राणा की यह लाइन आज सच साबित हो गई , राणा 71 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए।
मशहूर शायर अब हमारे बीच नहीं होंगे लेकिन उनकी कहानी, उनकी शायरियां हमारे दिल में और हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे। संस्कृतिक मंचों पर उनका नाम लेकर लोग मां का बखान करते रहेंगे, क्योंकि उन्होंने मां के लिए जो प्यार और ममता दिखाई है और अपनी लिखी है, वह आज अमर हो गई।
आज हम मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राणा की कहानी जानेंगे। उनके जीवन के कुछ किस्से जानेंगे। उनकी शायरियों को पढ़ते हुए मां के प्रेम को महसूस करेंगे। आखिर मेंउनसे जुड़े उन विवादों को जानेंगे जो लंबे वक्त तक सुर्खियों में रहे।
सबसे पहले उनकी कहानी…
मुनव्वर के पिता ने पाकिस्तान के बजाय हिन्दुस्तान में रहना चुना
मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवम्बर 1952 को रायबरेली के किला बाजार में हुआ था। उनके पिता अनवर राणा और मां आयशा खातून के पास विकल्प था कि वह बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चली जाएं। परिवार के तमाम लोग चले भी गए। लेकिन अनवर नहीं गए। वह कोलकाता में में ट्रक चलाते थे, मुनव्वर जब पैदा हुए तो पूरे परिवार को ही कलकत्ता बुला लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए मुनव्वर की पढ़ाई लिखाई बहुत अच्छी नहीं हो पाई। 12वीं के बाद मुनव्वर ने बीकॉम में एडमिशन ले लिया।
1970 के आसपास बंगाल में जमींदारों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने जमींदारों के खिलाफ हथियार उठा लिया। चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल जैसे कम्युनिस्ट नेताओं का ऐसा प्रभाव था कि नए उम्र के लड़के उनके साथ जुड़ते चले गए। मुनव्वर भी जुड़ गए। पिता को यह पसंद नहीं था। उन्होंने रोका लेकिन मुनव्वर नहीं माने। पिता ने कहा, मुनव्वर अगर तुम उन लोगों का साथ नहीं छोड़े तो मैं तुम्हें घर से निकाल दूंगा, मुनव्वर पर इसका असर नहीं पड़ा। आखिरकार पिता ने उन्हें घर से निकाल ही दिया।
• आंदोलन के चक्कर में मुनव्वर दो साल तक भटकते रहे। उन्हें एहसास हुआ कि घर से निकलने का फैसला गलत था। घर वापस गए, मां ने गले लगा लिया। इसके बाद मुनव्वर की अलग कहानी शुरू होती है। मंचों पर सिर्फ मुनव्वर ही नजर आने लगे मुनव्वर राणा को शायरियां पढ़ने का बहुत शौक था।
उन्होंने मिर्जा गालिब से लेकर मीर अनीस, फैज अहमद फैज, बशीर बद्र को जमकर पढ़ा। इसके बाद लिखना शुरू किया तो साथ मिला लखनऊ के बड़े शायर उस्ताद वाली आसी का। उन्होंने मुनव्वर की शायरियों को तराशा और मंच पर खड़ा किया। मुनव्वर खुद मानते हैं कि उनकी जिंदगी में जो परिवर्तन आए वह वली आसी की वजह से ही आए। इसके अलावा मुनव्वर कैफी आजमी के बड़े प्रशंसक थे, उनका असर इनकी शायरियों पर नजर आता है।
- बरबाद कर दिया परदेश ने मगर, मां कहती है बेटा मजे में है
मुनव्वर अपनी मां आयशा खातून को सबसे ज्यादा प्यार करते थे। इसलिए वह मां पर ही सबसे ज्यादा लिखते।
मुशायरे में जाते तो लोग उनसे मां की शायरी पढ़ने को बोलते। उनकी पहली लाइन होती थी, “चलती फिरती हुई आंखो से अजां देखी है, मैने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है।” इसके बाद खूब तालियां बजती। तालियों का शोर कम होता तो मुनव्वर शायरियां पढ़ते, खाने की चीजें मां ने जो भेजी है गांव से, बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही। इस लाइन के बाद बड़े शहरों में रहने वाले लोग भाव से भर जाते थे।
मेरे हिस्से में मां आईं
मुनव्वर राणा ने परिवार के सबसे छोटे बेटे और मां को लेकर एक शायरी लिखी जो आज भी बहुत चर्चित है। वह थी- “किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई।” यह वो शायरी थी जिसपर आज भी सबसे ज्यादा रील बनती है। मुनव्वर राणा चर्चित हुए तो रायबरेली में उन्हें 1993 में पहली बार रईस अमरोहवी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद तो पुरस्कारों की झड़ी लग गई।
कुमार विश्वास निराश हुए तो मुनव्वर ने उत्साह बढ़ाया
मुनव्वर राणा ने कुमार विश्वास, राहत इंदौरी जैसे कई बड़े कवियों के साथ देश-विदेश में मंच साझा किया। एक मंच पर कुमार विश्वास हिन्दी शायरियों को लेकर निराश हो जाते हैं तब मुनव्वर उनसे कहते हैं, मायूस नहीं होना चाहिए कुमार, नौशाद का एक शेर है- अदब के नाम पर महफिल में चर्बी बेचने वालों, अभी वो लोग जिंदा हैं जो घी पहचान लेते हैं।
मौजूदा वक्त में प्रेम की बात चल रही थी, कुमार विश्वास ने मुनव्वर को लेकर शेर पढ़ा- ऐ जाने गजल तेरे मेरे प्यार की खुशबू, डरता हूं कि कहीं रायबरेली न चली जाए। इसके जवाब में मुनव्वर कहते हैं- तू बेवफा है तो ले दूसरी खबर सुन ले, इंतजार तो मेरा दूसरा भी करता है, और हसीन लोगों से मिलने से ऐतराज न कर, ये जुर्म तो वो भी करते हैं जो शादी-शुदा हैं।
हॉस्पिटल से निकले तो दुबई में शो करने पहुंच गए
2011 में मुनव्वर राणा बीमार थे और हॉस्पिटल में भर्ती थे। ठीक हुए तो डॉक्टर ने आराम करने को कहा लेकिन वह नहीं माने। दुबई के शेख राशिद ऑडिटोरियम में राहत इंदौरी, कुमार विश्वास जैसे मशहूर शायरों का मुशायरा था। मुनव्वर राणा भी पहुंच गए। राहत इंदौरी को लेकर मजे लेते हुए कहते हैं, यह मेरा दोस्त है, अव्वल तो यह मुझे मिलता नहीं, मिलता है तो होती है लगी हुई। इसके बाद ऑडिटोरियम हंसी से झूम उठा। उस वक्त मां पर कही एक शायरी मशहूर हो गई।
भारत-पाकिस्तान क्रिकेट में बेटा पाकिस्तान का प्रशंसक होता
मुनव्वर राणा क्रिकेट के बहुत शौकीन थे। जब भी मैच आता जरूर देखते। भारत-पाकिस्तान के बीच मैच हो तो पूरा घर बैठकर देखता था। खुद मुनव्वर और उनकी पत्नी भारतीय टीम का समर्थन करते और उनका बेटा व छोटी बेटी पाकिस्तान का समर्थन करते। बल्लेबाजी करते हुए अगर सचिन आउट हो जाते तो बेटा कहता था, मां का बेटा आउट हो गया, आंसू पोछने के लिए रुमाल लाई जाए। इसके बाद घर में ही झगड़े शुरू हो जाते थे। कई बार तो टीवी बंद करने की नौबत आ जाती थी। मां अपने ही बेटे को खाना नहीं देती थी।
मुनव्वर बताते थे, “मां को चिढ़ाने के लिए बेटा पटाखे फोड़ता और कहता, अब जब घर से निकाल ही दिया है तो फिर जो मन में आएगा वही करूंगा, इससे मेरी पत्नीका गुस्सा और बढ़ जाता। आखिर में मुझे ही समझौता करवाना पड़ता और मैं दोनों को डांटकर घर से बाहर निकल जाता था।”
विवादों में भी रहा मुनव्वर राणा का नाम
2015 तक मुनव्वर राणा का विवादों से कोई नाता नहीं रहा। 2016 में दादरी में उपद्रवी भीड़ ने अखलाख को पीटकर मार दिया। इसके बाद मुनव्वर राणा ने सरकार की तरफ से मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया और कहा कि जब तक देश में हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक मैं कोई भी सरकारी पुरस्कार नहीं लूंगा। उस वक्त उनका एक शेर चर्चा में आया था- लगाया था जो पेड़ भक्तों ने कभी, वो फल देने लग गए, मुबारक हो हिन्दुस्तान में अफवाहों पर कत्ल होने लगे।
फ्रांच में पैगंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून मामले में हुई कार्टूनिस्ट की हत्या पर मुनव्वर ने कहा था कि मैं होता तो मैं भी हत्या ही करता। इसके अलावा अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे का भी उन्होंने समर्थन किया। योगी के दोबारा सीएम बनने पर यूपी छोड़ने की बात कही थी। हालांकि वह कहीं नहीं गए।
फिलहाल मुनव्वर राणा को हमेशा एक शानदार और जिंदादिल शायर के रूप में जाना जाएगा। मां के प्रेम को लेकर उन्होंने शायरी के जरिए जो लकीर खींची उसे लंबी करने की जिम्मेदारी नए शायरों पर है।
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