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क्या आप जानते हैं श्री खाटू वाले श्याम बाबा का दूसरा नाम ? और आखिर क्या फल मिलता है खाटू श्याम बाबा के सिर्फ दर्शन मात्र से!
हिंदू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम बाबा जी कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के ही रूप हैं, भगवान श्री कृष्ण से ये श्रृंगार प्राप्त हुआ था कि वे कलयुग में उनका नाम श्याम से पूजे जाएंगे। वास्तव में, यह प्रमाणित है कि श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से प्रभावित हो गए थे और उन्हें यह पुष्पांजलि दी गई थी कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होता रहेगा वैसे ही तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे।
शिष्यों का एकमात्र निशान नाम का साधु दिल से उच्चारण मात्रा से ही उनका स्थान होगा। यदि सभी भक्त-मित्र मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगे तो उनके सभी मन भर जाएंगे और उनके सभी कार्य सफल होंगे।
बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे:
श्री श्याम बाबा पहले बर्बरीक के नाम से जाने गए थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे। बाल्यकाल से ही बहुत वीर और एक महान योद्धा कहलाये थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ और श्री कृष्ण से सीखी थी। भगवान शंकर की घोर तपस्या करके उन्हें तीन अमोघ बाण प्राप्त हुए; इस प्रकार तीन दुकानदारों के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त हुआ।
अग्निदेव ने उन्हें धनुर्विद्या प्रदान की, जो उन्हें त्रिलोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।महाभारत के युद्ध में कौरवों और पाण्डवों की मध्यकालीन जिज्ञासा हो गई थी, यह समाचार वीरांगना को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे तब माँ को खोए हुए पक्ष का वचन दिया जाता था। वे अपने नीले रंग के घोड़ों पर सवार तीन बाण और धनुराम के साथ रणभूमि की ओर चल पड़े थे।
कृष्ण ‘परीक्षा’ में सफल हुए बर्बरीक:
भगवान कृष्ण बरबीक एक पीपल के पेड़ के नीचे थे। तब श्री कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी थी कि इस वृक्ष के सभी शिष्यों को वे आमंत्रित कर सकते हैं, तब श्रीकृष्ण ने चुनौती दी थी और अपने ट्यूनियर से एक बान संस्थान और ईश्वर को स्मरण कर बान वृक्ष के शिष्यों की ओर से आमंत्रित किया था।
बाण ने क्षण भर में पेड़ के सभी पुतलों को वेध लगा दिया था और बाण ने श्री कृष्ण के पैर के अपार्टमेंट-गिर में चक्कर लगाया था क्योंकि एक पत्ता श्री कृष्ण ने अपने पैर के नीचे छिपा लिया था; बार्बिक ने कहा कि महाराज आप अपना पैर हटा लें अन्यथा ये आपके पैर को भी वेध डाल देंगे।
जब माँगा गया तो शीशा दान:
ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा वाणी कारी थी। बार्बिक ने उन्हें वचन दिया और दान के लिए कहा। तो ब्राह्मण के रूप में धरे गए श्री कृष्ण ने आंख मूंदकर दान मांगा। वीर बर्बीक क्षण भर के लिए अचंभित हो गए, लेकिन उनके वचनों से कोई लाभ नहीं हो सका। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान तो कभी नहीं मांग सकता।
कृष्ण ने दर्शन:
ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में थे। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान की आहुति देने का कारण यह भी बताया कि युद्ध की शुरुआत पूर्व युद्ध से हो रही है। इसलिए ऐसा करने के लिए वे काफी सुपरस्टार थे। बार्बीक ने अपनी प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध को पूरा होते हुए देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने अपनी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।
श्री कृष्ण ने इस बलिदान को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया था। उनकी झलक युद्धभूमि की पृष्ठभूमि में ही एक पहाड़ी पर सुशोभित की गई थी जहां से बर्बरीक के संपूर्ण युद्ध को देखा जा सकता था। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने चश्मे का दान दिया था और इस प्रकार वे शीशों का दानी कहलाये थे।
बर्बरीक बने ‘निर्नायक’:
महाभारत युद्ध का अंत पांडवों में ही हुआ था सामुद्रिक विवाद युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है?श्री कृष्ण ने कहा था कि बर्बरीक का संपूर्ण युद्ध का साक्षी हो सकता है, इसलिए वह सबसे अच्छा व्यक्ति कौन है? इस बात से सभी सहमत हो गए और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहां प्रवेश पर बार्बिक के नमूने दिए गए थे कि श्री कृष्ण ने युद्ध में उत्तर की ओर विजय प्राप्त की थी, सबसे महान पात्र प्राप्त हुए, उनकी शिक्षा, उपस्थिति, युद्धनीति ही लड़ गई था। उन्हें युद्धभूमि में केवल उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखाई दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। और श्री कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के ख़ून पीलों का स्वयं सेवन कर रही थीं।
श्री कृष्ण ने दिया श्रृंगार:
श्री कृष्ण भगवान बारिक के महान पवित्र स्थान से बहुत प्रसन्न थे जब श्री कृष्ण ने कलयुग में आपको खाटू श्याम बाबा के नाम से जाना था, उस युग में श्री कृष्ण ने आशीर्वाद दिया था, क्योंकि उस युग में खोए हुए का साथ देने वाला था वही श्याम नाम धारण करने में समर्थ था।
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