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क्या आप जानते हैं भोलेनाथ की नगरी उज्जैन के इतिहास बारे में…उज्जैन के ही कुंभ को क्यों कहा जाता है सिंहस्थ कुंभ!
मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन का नाम तो हर किसी ने सुना होगा। अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए मशहूर यह शहर पूरी दुनिया में दो चीजों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। पहला यहां स्थित बाबा महाकाल का मंदिर और दूसरा यहां होने वाला कुंभ। प्राचीन नगरी उज्जैन में मौजूद महाकाल मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से है।
कालों के काल बाबा महाकाल के इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। हम सभी ने भगवान शिव के इस मंदिर की पौराणिक कथा तो कई बार सुनी है, लेकिन वैज्ञानिक महत्व शायद ही आप मे से कोई जानता होगा।
पृथ्वी का केंद्र है उज्जैन:
हम सभी ने बचपन एक चीज तो जरूर पढ़ी है कि हमारी पृथ्वी गोलाकार है, लेकिन जब भी पृथ्वी के केंद्र बिंदु की बात आती है, तो सभी लोग अक्सर सोच में पड़ जाते हैं। ऐसे में अगर हम आपसे यह कहे कि मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है, तो क्या आप इस पर यकीन करेंगे। दरअसल, ऐसा हम नहीं बल्कि खुद खगोल शास्त्री मानते हैं। खगोल शास्त्रियों के मुताबिक मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है। यहां तक कि शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है।
इसलिए महादेव कहलाए महाकाल:
भोलेनाथ की नगरी उज्जैन हमेशा से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी एवं महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। देश के नक्शे में यह शहर 23.9 डिग्री उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व कि रेखांश पर ही है। इसके अलावा उज्जैन एक ऐसा शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को सीधे काट रही है।
इस प्राचीन नगरी की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रख काल-गणना, पंचांग निर्माण और साधना के लिए उज्जैन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यही वजह है कि प्राचीन समय से ज्योतिषाचार्य यहीं से भारत की काल गणना करते आए हैं। काल की गणना की वजह से ही यहां के आराध्य भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल:
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का एक पौराणिक महत्व भी है। इस मंदिर को लेकर कुछ ऐसी मान्यता भी है कि भगवान शंकर ने यहां एक दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने सभी भक्तों की रक्षा करी थी, जिसके बाद सभी भक्तों के निवेदन के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हो गए थे यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग भी है। इसकी खास बात यह है कि यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है।
उज्जैन से मिला विक्रम संवत कैलेंडर:
काल गणना के अलावा उज्जैन शहर अपने राजा विक्रमादित्य की वजह से भी काफी जाना जाता है। दरअसल, प्राचीनकाल में इस नगरी में राज करने वाले राजा विक्रमादित्य ने हिंदुओं के लिए एक ऐतिहासिक कैलेंडर विक्रम संवत निर्माण कराया था, जो वर्तमान में एक प्रचलित हिन्दू पंचांग है।
इसी पंचांग के आधार पर भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इतना ही नहीं इस संवत को नेपाल में भी मान्यता मिली हुई है। विक्रम संवत से पहले देश में युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत और सप्तर्षि संवत भी प्रचलित रह चुके हैं।
उज्जैन के ही कुंभ को क्यों कहा जाता है सिंहस्थ कुंभ:
उज्जैन शहर का हिंदू धर्म में अपना एक अलग ही महत्व है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी पूरे देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक मानी जाती है। यहां हर 12 साल में पूर्ण कुंभ तथा हर 6 साल में अर्द्धकुंभ मेला भी लगता है।
हालांकि, उज्जैन में होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। दरअसल, सिंहस्थ का संबंध सीधे सिंह राशि से होता है। जब भी सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश हो जाता है, तो उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है जिसे सिंहस्थ के नाम से भी जाना जाता है।
कुछ इन प्रमुख नामों से भी जाना जाता है उज्जैन:
क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को शिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यह प्राचीन नगरी संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है। वहीं, बात करें इसके प्राचीन नामों की, तो उज्जैन को पहले अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।
यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से है, जो अपनी धार्मिक मान्यातों के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है। महाकालेश्वर मंदिर के अलावा यहां गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, गोपाल मंदिर, मंगलनाथ मंदिर,काल भैरव मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है।
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