Saturday, September 21, 2024

Chandra shekhar azad birth anniversary : एक भारतीय क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे चंद्रशेखर आज़ाद, अपने जीवन मे बहुत सारी गतिविधियों को करा था पूरा

DIGITAL NEWS GURU HISTORICAL DESK:

Chandra shekhar azad birth anniversary : एक भारतीय क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे चंद्रशेखर आज़ाद, अपने जीवन मे बहुत सारी गतिविधियों को करा था पूरा

चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से मशहूर चंद्रशेखर तिवारी ने भारतीय क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल के निधन के बाद पार्टी के तीन अन्य प्रमुख नेताओं – रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और अशफाकउल्ला खान के साथ मिलकर इसका नेतृत्व किया। बदलाव की ज़रूरत को समझते हुए उन्होंने संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया।

भारतीय क्रांतिकारी नेता चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक एक छोटे से गाँव में 23 जुलाई साल 1906 को हुआ था। आजाद के पिता का नाम सीताराम तिवारी और इनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में ही बीता हुआ था। अपने बचपन में ही आजाद ने भील बालकों के साथ मिलकर निशानेबाजी और धनुर्विद्या सिखी ली थी।

13 अप्रैल साल 1919 को हुए ‘जलियांवाला बाग हत्त्या कांड’ ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था आजाद उस समय बनारस में पढ़ाई कर रहे थे। वहीं बालक आजाद को इस खबर ने अंदर से बिल्कुल झकझोर के रख दिया था। उस समय ही उन्होंने यह तय कर लिया कि वह भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेंगे और फिर वह महात्मा गांधी के वर्ष 1921 में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।

लेकिन साल 1922 में ‘चौरी चौरा’ की घटना के तुरंत बाद ही गांधीजी ने अपना ‘असहयोग आंदोलन’ को वापस ले लिया था तभी से आज़ाद का कांग्रेस से मोहभंग भी हो गया था। इसके तुरंत बाद ही आज़ाद, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल और शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेश चन्द्र चटर्जी जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था और वह 1924 में गठित ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) से जुड़ गए।

क्रांतिकारी जीवन

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन

चंद्रशेखर आज़ाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (एचएसआरए) के सक्रिय सदस्य बन गए और 1928 में राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा गठित एचएसआरए के लिए धन इकट्ठा करना शुरू कर दिया । उन्होंने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए सशस्त्र संघर्ष की वकालत की।

काकोरी ट्रेन डकैती में भूमिका

वह 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे, जिसका उद्देश्य HSRA और अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन इकट्ठा करना था। इससे आज़ाद और HSRA सुर्खियों में आ गए, जिससे उन्हें पकड़ने के लिए ब्रिटिश प्रयास तेज़ हो गए।

अन्य क्रांतिकारी गतिविधियाँ

वह लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए 1928 में लाहौर में जॉन पी.सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या करने में शामिल था । 1929 में भारत के वायसराय की ट्रेन को उड़ाने का भी उसने प्रयास किया था।

झांसी में गतिविधियाँ

आज़ाद ने कुछ समय तक झांसी को अपने संगठन का केंद्र बनाया । झांसी से 15 किलोमीटर दूर स्थित ओरछा के जंगल में उन्होंने निशानेबाजी का अभ्यास किया और अपने समूह के अन्य सदस्यों को भी प्रशिक्षण दिया।

उन्होंने पास के गांव धिमारपुरा के बच्चों को पढ़ाया और इस प्रकार स्थानीय निवासियों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में सफल रहे।

सदाशिवराव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायन और भगवान दास माथुर आज़ाद के निकट संपर्क में आये और उनके क्रांतिकारी समूह का अभिन्न अंग बन गये।

अल्फ्रेड पार्क (कंपनी बाग) में मुठभेड़
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ब्रिटिश राज के कानून प्रवर्तन गुट पर आज़ाद का प्रभाव इस बात से स्पष्ट था कि उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए कितनी मेहनत की गई थी। उन्होंने उनके सिर पर 30,000 रुपये का इनाम भी घोषित किया, जिससे आज़ाद के ठिकाने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में , आज़ाद ने बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ बहादुरी से और अकेले ही लड़ाई लड़ी और आत्मसमर्पण करने के बजाय एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में मरना चुना।


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