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लोकसभा चुनाव में उतरी अखिलेश यादव की बेटी, मां डिंपल यादव के साथ प्रचार में नजर आई अदिति यादव!
डिंपल यादव मैनपुरी से चुनावी क्षेत्र में हैं। भाजपा-बसपा ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। इस सीट को सपा का दुर्ग माना जाता है। कारण यह है कि 28 साल से सीट पर सपा का हक़ है। मोदी लहर में बीजेपी इस गढ़ को भेद नहीं पाई। मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के पश्चात साल 2022 में यहां उपचुनाव हुआ था।
डिंपल 2.88 लाख वोट से चुनाव जीतीं। इतनी बड़ी जीत के बाद सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया कि नेताजी की सहानुभूति में उन्हें लोगों ने वोट दिया। लेकिन, अब सहानुभूति की लहर नहीं है। डिंपल यादव भी सहानुभूति से जीत का मोहर हटाना चाहती हैं। इसके साथ ही मैनपुरी की जनता के साथ जुड़ना चाहती हैं। उनके सामने सपा के रिकॉर्ड को मेंटेन रखने का भी चैलेंज है।
यही वजह है कि डिंपल गांव-गांव जा रही हैं। एक-एक लोगों से बात कर रही हैं। चर्चा है कि उन्होंने 2 महीने में डेरा डाला है। वह अकेले प्रचार कर रही हैं। उनके साथ पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं रहता है। चाहे वो अखिलेश यादव हों या धर्मेंद्र या तेज प्रताप। सिर्फ बेटी अदिति उनके साथ नजर आती हैं। डिंपल की कैंपेनिंग को “एकला चलो” पॉलिटिक्स कहा जा रहा है।पहले आपको बताते हैं मैनपुरी और मुलायम का नाता
मैनपुरी सीट को पहले मैनपुरी जिला पूर्व के नाम से जाना जाता था। 1951-52 के चुनाव के बाद नाम बदलकर मैनपुरी लोकसभा सीट कर दिया गया। साल 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ। 1996 में मुलायम सिंह पहली बार चुनाव लड़ें और जीत हासिल की, तब से लेकर सपा की यह पारंपरिक सीट मानी जाने लगी।
इस सीट पर उपचुनाव सहित 10 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। हर बार समाजवादी पार्टी ने ही चुनाव जीता। खुद मुलायम सिंह यादव ने इस सीट पर 5 बार चुनाव लड़ा और हर चुनाव जीता। उनके निधन के बाद उनकी बहू डिंपल यादव उपचुनाव जीतकर सांसद बनीं।अब जानते हैं डिंपल और उनके राजनीतिक सफर के बारे में…
डिंपल यादव ने 2009 में सियासत में अपना पहला कदम रखा था। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के फिरोजाबाद सीट छोड़ने के चलते उपचुनाव में डिंपल सपा प्रत्याशी थीं। हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2012 में कन्नौज सीट से उनके पति अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव में वो निर्विरोध जीत गई थीं।
दरअसल, हुआ ऐसा कि कांग्रेस और बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा। भाजपा प्रत्याशी नामांकन करने से चूक गईं। ऐसे में पहली बार डिंपल निर्विरोध जीतकर संसद तक पहुंचीं। इस जीत ने उन्हें यूपी की पहली निर्विरोध महिला सांसद भी बना दिया। इसके बाद डिंपल ने 2014 में मोदी लहर के बीच कन्नौज से चुनावी मैदान में उतरीं और सांसद बनीं।
फिर 2019 में कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरी थीं, लेकिन हार गईं। नेताजी के निधन के बाद उन्होंने मैनपुरी से 2022 में लोकसभा उपचुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की।
नेताजी का नाम… लेकिन अपनी अलग पहचान
साल 2022 में नेताजी की मृत्यु के बाद सपा ने डिंपल को मैदान में पॉलिटिक्स में उतारा था। इस चुनाव में डिंपल ने करीब सवा दो लाख वोटों से बड़ी जीत हासिल की थी। राजनीतिक विश्लेषकों ने इस जीत को नेताजी की सहानुभूति की जीत बताया था। ऐसे में डिंपल यादव पर एक ठप्पा लगा है कि नेताजी के चलते ही उन्हें इतनी बड़ी जीत मिली।
मगर, साल 2024 के इलेक्शन में मैनपुरी से फिर मैदान में उतरी डिंपल यादव अपनी अलग पहचान बनाने में जुटी हैंवरिष्ठ पत्रकार दिलीप शर्मा बताते हैं, “चुनाव की घोषणा होने से पहले ही डिंपल क्षेत्र मे सक्रिय हो गईं। फरवरी की शुरुआत से ही उन्होंने गांवों में जाकर मिलना-जुलना शुरू कर दिया। दो महीने से वो क्षेत्र में सक्रिय हैं। वो जिससे भी मिलती हैं, कहती हैं कि जैसे आपने नेताजी का साथ दिया, वैसे ही उनका साथ दें।
समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने का कार्य करेंगी। नेताजी के नाम के साथ वो अपनी अलग पहचान बनाने का ट्राई कर रही हैं। वो महिलाओं से बहुत आत्मीयता मेल से मिलती हैं। युवतियों से बात करती हैं, उनके साथ मिलकर सेल्फी और फोटो कराती हैं।”