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कानपुर की ऐतिहासिकता को बयां करते है , यहां के गंगा घाट ! :
कानपुर में गंगा किनारे कन्नौज से फतेहपुर सीमा तक नानामऊ से नागपुर घाट के बीच कई घाट है। जहां की अलग-अलग अपनी-अपनी ऐतिहासिकता बयां होती हैं। संस्कृत की धारा किनारे मेलों के घाट लोक परंपरा को भी दर्शाते हैं।
जिन्हें हम सब नदी नहीं मां का दर्जा देते हैं और गंगा मइया कहते हैं। गोमुख से गंगासागर तक जिनके तट (घाट) पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, लोक परंपरा और धर्म-अध्यात्म की थाती सहेजे हैं। घाट-घाट पर पानी, रवानी और बानी अलग-अलग हैं।
संस्कृति की इस कल-कल धारा के किनारे मेलों के घाट हैं। कानपुर के कुछ घाटों पर गंगा का पानी थोड़ी दूर पर भले ही चला गया है ,लेकिन आस्था की झलके सामान्य दिनों से लेकर विशेष पर्वो पर लगने वाले मेलों में सभी के दिलों को शांति देती है।
यह सभी तट मुगलों और अंग्रेजों के शासन काल के समय अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र हुआ करते थे , व शिव मंदिरों के साथ पौराणिकता से भरा नामचीन देवस्थान अभी भी यहां है, जहां पर लोग खींचे चले जाते हैं। शाम ढलते ही घाटों पर मंदिरों में बजने वाली घंटियां वातावरण में भक्ति भर देती हैं। इतना ही नहीं, जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर आत्मा से परमात्मा के मिलन वाले मुक्ति स्थल भी इन्हीं तटों पर हैं, जो मुक्ति का मार्ग दिखाते, जीवन की हकीकत समझाते और बताते हैं।
गर्मी की छुट्टी पर कहीं बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो आइए, गंगा के ये तट आपको बुला रहे हैं। यहां घूमिए, अपनी संस्कृति को करीब से जानिए और पौराणिक थाती का खूब आनंद लीजिए। कानपुर में बिल्हौर से गंगा के प्रवेश करते ही सबसे पहले घाट हैं। इसी तरह आखिर में फतेहपुर छोर पर नजफगढ़ और नागापुर घाट हैं।
नजफगढ़ : 200 साल प्राचीन शिव मंदिर आकर्षण एक केंद्र –
कानपुर के रामादेवी चौराहा से जीटी रोड पर फतेहपुर के लिए चलने पर सरसौल कस्बा से बायीं तरफ मुड़कर कमालपुर गांव होकर नजफगढ़ घाट जाने के लिए आठ किलोमीटर लंबा रास्ता है। तट पर पहुंचते ही 200 साल पुराने करीब एक दर्जन शिव मंदिरों का आकर्षण मन मोह लेता है। इनमें कसौटी पत्थर के काले रंग के शिवलिंग, नक्काशी व चित्रकारी बड़ी विशेषता है।
नजफगढ़ के पूर्व प्रधान करुणा शंकर त्रिपाठी बताते हैं, प्राचीन काल में यहां बड़ा बाजार लगता था, जिसमें सुई से लेकर ऊंट, हाथी-घोड़े तक बिकते थे। यह क्षेत्र ज्वैलरी का प्रमुख कारोबारी गढ़ था। जब कानपुर का अस्तित्व नहीं था, तब नजफगढ़ शहर था। भाद्रपद की अमावस्या में यहां मेला लगता है। अंग्रेजों के शासनकाल में नील का व्यापार यहीं से होता था। यह क्षेत्र अब भी समृद्धि की गवाही देता है।
नागापुर घाट : रेतीले गंगा घाटों से है अलग –
सरसौल हाईवे से कमालपुर के साथ ही महुआ गांव और रामपुर होकर 10 किलोमीटर की दूरी पर नागापुर घाट मिलता है। गंगा के ज्यादातर घाट रेतीले हैं, लेकिन नागापुर में किनारा कंक्रीट का है, जिससे यहां कटान नहीं होती। सिद्ध संत खाखी बाबा की महिमा भी प्रसिद्ध है। स्नान, श्मशान व नाव घाट हैं। यहां आने वालों को गंगा की मोहक छवि निहारने का हर अवसर मिलता है। कार्तिक मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं।
बताते हैं, पराशर ऋषि ने यहीं सौ यज्ञ का अनुष्ठान कराया था, लेकिन 99 यज्ञ के बाद कुंड खंडित होने पर वह पूर्ण नहीं हो सका था। नागेश्वर महादेव व सती देवी का मंदिर विशेष आकर्षण है। ग्रामीण करुणा शंकर के मुताबिक वर्ष 1980 में पर्वतारोही एडमंड हिलेरी गोमुख से गंगासागर की यात्रा पर जाते समय यहां आए थे
ड्योढ़ी घाट : सिद्ध हनुमान मंदिर और ब्रह्मचर्य आश्रम –
कानपुर-फतेहपुर हाईवे से सलेमपुर और ऐमा मोड़ से बायीं ओर सात किलोमीटर दूर है गंगा का ड्योढ़ी घाट। यहां प्राचीन सिद्ध हनुमान मंदिर और ब्रह्मचर्य आश्रम स्थित हैं। स्नान और श्मशान दोनों घाट अलग-अलग हैं। गुरु पूर्णिमा उत्सव पर कानपुर, उन्नाव, फतेहपुर, हमीरपुर, बुंदेलखंड आदि से हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं और सिर्फ उसी दिन आश्रम के महंत के चरणों का स्पर्श कर सकते हैं।
हनुमान मंदिर के हवन कुंड में बराबर अग्नि प्रज्वलित होती रहती है। बताते हैं, सूरदास बाबा ने बालू व घी के मिश्रण से दीवार पर हनुमान प्रतिमा स्थापित की थी। घाट के बगल में ही अंतरराष्ट्रीय विपश्यना केंद्र भी है।
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