Sunday, September 22, 2024

86 साल के हुए रतन टाटा, एक अपमान ने बदल दी रतन टाटा की तकदीर, ये रतन टाटा की सफलता की कहानी

86 साल के हुए रतन टाटा, एक अपमान ने बदल दी रतन टाटा की तकदीर, ये रतन टाटा की सफलता की कहानी

Digital News Guru Birthday Special: देश के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का आज 86वां जन्मदिन है, रतन टाटा एक ऐसी हस्ती है जिसने अपने अपमान का बदला ताव में आकर नहीं बल्कि सफलता के झंडे गाड़ कर लिया है।

कहते हैं कि अक्सर आम लोग अपमान का बदला तुरंत ले लेते हैं, लेकिन महान लोग उसे अपनी ही सफलता की सीढ़ी बना लेते हैं। टाटा कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले रतन टाटा पर ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। टाटा संस में 100 से ज्यादा कंपनियां आती हैं। इन कंपनियों में सुई से लेकर स्टील, चाय से लेकर 5 स्टार होटल तक और नैनो से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ मिलता है। यहां हम रतन टाटा के जीवन की एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जो सभी के लिए प्रेरणादायक है।

टाटा ग्रुप (Tata Group) को कई बुलंदियों तक पहुंचाने के पीछे रतन टाटा का बड़ा योगदान है। आज देश-विदेश में टाटा ग्रुप ने काफी नाम कमाया है। रतन टाटा ने भले ही टाटा ग्रुप को दुनिया में एक नाम दिया पर आज भी वह जमीन से जुड़े हैं। आज भले ही दुनिया में रतना टाटा को एक सफल बिजनेसमैन के तौर पर जाना जाता है पर कई लोग नहीं जानते हैं कि रतन टाटा ने अपनी करियर की शुरुवात कर्मचारी के तौर पर करी थी।

कैसे ज्वाइन किया टाटा ग्रुप?

रतन टाटा ने आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री ल कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ली है, डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में ही नौकरी करने का मन बना लिया था, लेकिन उनकी दादी नवजबाई की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें भारत वापस आना पड़ा था यहां आकर उन्होंने आईबीएम ज्वाइन कर लिया था।

पूर्व टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा

माना जाता है कि उस समय टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा (JRD Tata) को जब रतन टाटा की नौकरी के बारे पता चला तो वह काफी नाराज हुए। उन्होंने रतन टाटा को फोन करके बायोडाटा शेयर करने के लिए कहा। रतन टाटा के पास उस समय बायोडाटा नहीं था। उन्होंने आईबीएम में ही टाइपराइटर्स पर टाइपव करके अपना बायोडाटा बनाया था।

इसके बाद उन्होंने जेआरडी टाटा को अपना बायोडाटा शेयर किया था।वर्ष 1962 में टाटा इंडस्ट्रीज में उनकी नौकरी लग गई थी, अनुभव लेने के बाद कंपनी के सर्वोच्च पद पर पहुंचे थे। वर्ष 1991 में उन्होंने टाटा संस (Tata Sons) और टाटा ग्रुप के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला था। इसके बाद 21 वर्षों तक उन्होंने कंपनी का नेतृत्व किया और कंपनी को कई बुलंदियों तक पहुंचाने में मदद की।2012 में वह रिटायर हो गए है, रतन टाटा ने कंपनी की वैल्यू 50 गुना बढ़ा दी। वो फैसले लेते गए और उन्हें सही साबित करते गए थे।

इस तरह शुरू हुई बदला लेने की शुरुआत

ये बात है साल 1998 की, जब टाटा मोटर ने अपनी पहली पैसेंजर कार इंडिका बाजार में उतारी थी। दरअसल ये रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था , ये बात है साल 1998 की, जब टाटा मोटर ने अपनी पहली पैसेंजर कार इंडिका बाजार में उतारी थी। दरअसल ये रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट थाये बात है साल 1998 की, जब टाटा मोटर ने अपनी पहली पैसेंजर कार इंडिका बाजार में उतारी थी।

दरअसल ये रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन इस कार को बाजार से उतना अच्छा रेस्पोंस नहीं मिल पाया, जितना उन्होंने सोचा था। इस वजह से टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी थी, कंपनी से जुड़े लोगों ने घाटे को देखते हुए रतन टाटा को इसे बेचने का सुझाव दिया और न चाहते हुए भी रतन टाटा को इस फैसले को स्वीकार करना पड़ा।

इसके बाद वो अपनी कंपनी बेचने के लिए अमेरिका की कंपनी फोर्ड के पास गए। मीटिंग के दौरान बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया और कहा कि जिस व्यापार के बारे में आपको जानकारी नहीं है उसमें इतना पैसा क्यों लगा दिया। ये कंपनी खरीदकर हम आप पर एहसान कर रहे हैं।

ये शब्द बिल फोर्ड के थे लेकिन रतन टाटा के दिल और दिमाग पर छप गए। वे वहां से अपमान का घूंट पीकर इस डील को कैंसल कर चले आए।बिल फोर्ड का ये वाक्य उन्हें लगातार बेचैन कर रहा था और उनकी रातों की नींद उड़ी पड़ी थी। बस इसके बाद रतन टाटा ने निश्चय कर लिया कि वो अब इस कंपनी को किसी को नहीं बेचेंगे और लग गए कंपनी को ऊंचाईयों पर पहुंचाने के काम में।

इसके बाद की कहानी सभी को पता है कि भारतीय बाजार के साथ-साथ विदेशों में भी टाटा इंडिका ने सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ। तो वहीं इस घटना के बाद से फोर्ड कंपनी का पतन शुरू हो गया। साल 2008 तक आते-आते फोर्ड कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई थी। मौके की नजाकत को समझते हुए रतन टाटा ने फोर्ड की लक्जरी कार लैंड रोवर और जैगुआर बनाने वाली कंपनी जेएलआर को खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसको फोर्ड ने स्वीकार भी कर लिया। इसके बाद मीटिंग के लिए फोर्ड के अधिकारी भारत आए और बॉम्बे हाउस में मीटिंग फिक्स हुई।

इसके बाद ये सौदा लगभग 2.3 अरब डॉलर में हुआ। तब बिल फोर्ड ने रतन टाटा से वही बात दोहराई जो उन्होंने रतन टाटा से कही थी, लेकिन इस बार थोड़ा बदलाव था।उस समय बिल फोर्ड के शब्द थे- आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं।आज जेएलआर कंपनी टाटा ग्रुप का हिस्सा है।

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