Sunday, September 22, 2024

आज है चौधरी चरण सिंह जी की जयंती, आईए जानते है उनके किसान से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

आज है चौधरी चरण सिंह जी की जयंती, आईए जानते है उनके किसान से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

Digital News Guru Birthday Special: चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री थे। चरण सिंह किसानों की आवाज उठाने वाले मजबूत नेता माने जाते थे। प्रधानमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह का कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक ही रहा था।

चौधरी चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह

वह समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की मदद से देश के प्रधानमंत्री बने थे। इसके अलावा चौधरी चरण सिंह भारत के गृह मंत्री कार्यकाल-24 मार्च 1977-1 जुलाई 1978 तक रहे थे। वही वह उप प्रधानमंत्री कार्यकाल- 24 मार्च 1977-28 जुलाई 1979 भी रहे थे और दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने थे।

प्रारंभिक जीवन- चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में हुआ था इनका जन्म एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। इनका पुरा परिवार जाट पृष्ठभूमि का था। उनके पूर्वज महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रांति में विशेष योगदान दिया था। महाराजा नाहर सिंह वल्लभगढ़ के निवासी थे, जो वर्तमान में हरियाणा में रहने लगे थे।

महाराजा नाहर सिंह को ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली के चाँदनी चौक पर फाँसी दे दी थी। तब अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की ज्वाला को अक्षुण्ण रखने के लिए उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के पूर्व क्षेत्र में महाराजा नाहर सिंह के समर्थकों और चौधरी चरण सिंह के दादा का सफाया कर दिया गया था।

चौधरी चरण सिंह

प्रारंभिक शिक्षा- चौधरी चरण सिंह को अपने परिवार में शैक्षिक वातावरण प्राप्त हुआ। उनका स्वयं भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान था। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि उनका बेटा पढ़-लिखकर देश की सेवा करे। चौधरी चरण सिंह की प्राथमिक शिक्षा नूरपुर गांव में पूरी हुई, जबकि मैट्रिक के लिए उन्हें मेरठ सरकारी हाई स्कूल से पूरी करी थी। 1923 में मात्र 21 वर्ष की आयु में उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी। दो वर्ष बाद 1925 में चौधरी चरण सिंह ने मास्टर ऑफ आर्ट्स की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाजियाबाद में वकालत शुरू कर दी थी।

राजनीतिक जीवन- एक बार राजनीति में आने के बाद चौधरी चरण सिंह का इससे कभी मोहभंग नहीं हुआ। उन दिनों पढ़े-लिखे लोगों की कोई कमी नहीं थी जो देश की सेवा के लिए कांग्रेस में शामिल हो रहे थे। आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए फिर से चुने गए। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी उनकी क्षमता से प्रभावित था। इसके परिणामस्वरूप उन्हें पंडित गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में ‘संसदीय सचिव पद’ भी मिला। चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य 1951 में आकार लेना शुरू हुआ, जब उन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद मिला।

चौधरी चरण सिंह

उन्होंने न्याय और सूचना विभाग संभाला। 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व एवं कृषि विभाग का प्रभार मिला। वह जमीन से जुड़े नेता थे और उन्हें कृषि विभाग से विशेष लगाव था। चरण सिंह भी स्वभाव से किसान थे। वे किसानों के हितों के लिए प्रयासरत रहे। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह और कृषि मंत्रालय दिया गया। वह उत्तर प्रदेश की जनता के बीच बहुत लोकप्रिय थे।

ऐसे बने प्रधानमंत्री- 1977 में चुनाव के बाद जब जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में आई तो जयप्रकाश नारायण की मदद से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया। इसके बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच मतभेद उजागर हो गये। इस प्रकार 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस की मदद से प्रधान मंत्री बनने में सफल रहे। स्पष्ट है कि यदि चौधरी चरण सिंह को इंदिरा गांधी का समर्थन नहीं मिलता तो वे किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बन पाते।

प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा

इंदिरा गांधी को पता था कि मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के बीच रिश्ते खराब हो गए हैं। यदि चरण सिंह को समर्थन देने की बात कहकर विद्रोह के लिए मना लिया गया तो जनता पार्टी बिखरने लगेगी। इसलिए इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रोत्साहित किया। चरण सिंह इंदिरा गांधी से सहमत थे। वे 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बने। लेकिन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने स्पष्ट कर दिया कि वह 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित कर देंगे।

इस प्रकार उन्हें विश्वास मत हासिल करने के लिए केवल 13 दिन का समय दिया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त 1979 को बिना किसी स्पष्टीकरण के समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। अब कोई सवाल ही नहीं था कि चौधरी साहब को किसी भी तरह से विश्वास मत मिल जायेगा। वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असंभव था। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए एक शर्त रखी थी।

उनके मुताबिक, जनता पार्टी सरकार द्वारा इंदिरा गांधी के खिलाफ दायर किए गए मामले वापस लिए जाने चाहिए। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थे। चरण सिंह को इस प्रकार का गलत कार्य स्वीकार नहीं था। इसलिए ही चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया था।

चरण सिंह जी का व्यक्तित्व

चौधरी चरण सिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती व्यक्ति की थी जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था। इस कारण उनकी पोशाक में एक किसान की सादगी झलकती थी। एक प्रशासक के रूप में उन्हें अत्यधिक सिद्धांतवादी और अनुशासित माना जाता था। वह लालफीताशाही और सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के कट्टर विरोधी थे। चरण सिंह सामाजिक न्याय और जनसेवा की भावना से ओत-प्रोत थे। चरण सिंह एक राजनेता थे।

चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति थे। वह अपने समकालीनों की तरह गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करते थे। आजादी के बाद कई बड़े नेताओं ने गांधी टोपी का त्याग कर दिया लेकिन चौधरी चरण सिंह ने जीवनपर्यंत इसे पहनना जारी रखा।

” 84 साल की उम्र मे साल 1987 को चरण सिंह का निधन हो गया था”

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