DIGITAL NEWS GURU DELHI DESK:
78 वां स्वतंत्रता दिवस 2024: जानिए राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ा हुआ इतिहास और पहली बार तिरंगा कहां फहराया गया था?
हर साल की तरह इस साल भी भारत 15 अगस्त 2024 का 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए तैयार है। इस दिन लोग अपने घरों, सोसाइटियों, स्कूलों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपनी देशभक्ति और स्वतंत्रता का प्रदर्शन करते हैं।
लेकिन कुछ लोग स्वतंत्रता दिवस का सेलिब्रेशन तो करते हैं लेकिन भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के विकास के बारे में सही प्रकार से जानते भी नहीं है की भारत के राष्ट्रीय ध्वज के पीछे का इतिहास क्या है?अगर आप भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास अच्छी तरह से जानना चाहते हैं, तो आज हम आपको इस आर्टिकल में राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कुछ रोचक के बारे में बताने जा रहे हैं….
जानिए भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का पूरा इतिहास
भारत का राष्ट्रीय ध्वज, जिसे आम बोलचाल की भाषा या जो मानो की तीन रंगों के कारण में तिरंगा कहा जाता है, एक क्षैतिज आयताकार तिरंगा झंडा है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज हमारा प्यारा तिरंगा जिसमें तीन रंग हैं -(केसरिया, सफ़ेद और हरा)। हमारे इस राष्ट्रीय ध्वज के बीच में गहरे नीले रंग का 24 तीलियों वाला एक चक्र भी है, जिसे अशोक चक्र कहा जाता है।
भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई सन् 1947 को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया और 15 अगस्त सन् 1947 को यह भारतीय संघ का आधिकारिक ध्वज बन गया। ध्वज को भारतीय गणराज्य के ध्वज के रूप में ही रखा गया। भारत में ‘तिरंगा’ शब्द का प्रयोग हमेशा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के लिए होता है।
तिरंगा मुख्य रूप से स्वराज ध्वज पर आधारित है, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज है जिसे पिंगली वेंकैया द्वारा प्रस्तावित डिजाइन में महत्वपूर्ण संशोधन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपनाया था। जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1947 में राष्ट्रीय ध्वज में चरखे की जगह चक्र को शामिल किया था।
शुरुआत में राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) खादी से तैयार किया जाता था, जो की एक खास तरह का हाथ से काता हुआ कपड़ा या रेशम होता था। जिसे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सबसे लोकप्रिय बनाया था । जबकि, साल 2021 में संशोधन के पश्चात पॉलिएस्टर या मशीन से बने झंडों को अनुमति दे दी गई है। नए नियमों के तहत लोगों को हाथ से काते हुए, हाथ से बुने हुए या मशीन से बने सूती/पॉलिएस्टर/ऊनी/रेशम/खादी के झंडे बनाने की अनुमति दी गई है।
भारतीय मानक ब्यूरो ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए सभी विनिर्माण प्रक्रियाओं और विनिर्देशों को साझा किया है। विनिर्माण अधिकार खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग के पास हैं, जो उन्हें क्षेत्रीय समूहों को आवंटित करता है। भारत में राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण के लिए केवल चार इकाइयों को लाइसेंस प्राप्त है। भारतीय ध्वज संहिता ध्वज के समस्त उपयोग को नियंत्रित करती है तथा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय दिवसों को छोड़कर निजी नागरिकों द्वारा ध्वज के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
2002 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिया कि वह कोड में संशोधन करके निजी नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग करने की अनुमति दे। भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कानून में और संशोधन करके सीमित उपयोग की अनुमति दी। साल 2005 में इसमें और संशोधन करके कुछ अतिरिक्त उपयोग की अनुमति दी गई, जिसमें कुछ खास तरह के कपड़ों पर अनुकूलन भी शामिल है।
राष्ट्रीय ध्वज का विकास
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने से पहले कई बार बदला गया है।आपको बता दें, कि पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त, सन् 1906 को कोलकाता के ग्रीन पार्क में फहराया गया था।मैडम कामा और उनके निर्वासित क्रांतिकारियों के दल ने सन् 1907 में दूसरी बार झंडा फहराया। वह राष्ट्रीय ध्वज से काफी मिलता-जुलता था, लेकिन उसमें कमल के स्थान पर सप्तऋषि के प्रतीक तारे बने थे।
ध्वज को तीसरी बार डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने 1917 में फहराया था। यह राष्ट्रीय ध्वज पिछले दो ध्वजों से बहुत अलग था क्योंकि इसमें लाल और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ, सप्तऋषि आकार में सात तारे, एक सफेद अर्धचंद्र और सितारा तथा यूनियन जैक था।
चौथा झंडा सन् 1921 में फहराया गया था जिसे आंध्र प्रदेश के युवाओं ने तैयार किया था और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान महात्मा गांधी के पास ले गए थे।
इसमें लाल और हरा रंग भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। महात्मा गांधी ने शेष समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक सफेद पट्टी और राष्ट्रीय विकास का प्रतीक एक चलता हुआ चरखा जोड़ा।
वर्तमान ध्वज को सन् 1931 में अपनाया गया था और इसे भारतीय राष्ट्रीय सेना के युद्ध ध्वज में इस्तेमाल किया गया था। जिस समय राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था, वह विशेष महत्व रखता है। इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियाँ हैं और बीच में गांधी जी का चलता हुआ चरखा है। बाद में, जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो हमारे झंडे के रंग वही रहे, लेकिन गांधीजी के चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक का धर्म चरखा ले लिया गया।