DIGITAL NEWS GURU POLITICAL DESK :-
Jagannath Temple: बेहटा बुजुर्ग गांव का जगन्नाथ मंदिर समेटे हुए है अनेक रहस्य ; बौद्ध स्तूप जैसा दिखता है मंदिर,उड़ीसा शैली से ही जुड़ा हुआ है ये जगन्नाथ मंदिर:
Jagannath Temple: शहर से ही करीब 50 किमी. दूर और इसके साथ ही भीतरगांव ब्लाक मुख्यालय से सिर्फ तीन किमी. दूर बेहटा बुजुर्ग गांव का जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) अनेक रहस्य समेटे हुए है। विशेष धार्मिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों से परिपूर्ण यह मंदिर 21वीं सदी के विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल की टपकती बूंदों की तरह इस मंदिर से टपकने वाली बूंदों में भी कई रहस्य छिपे हैं।
उड़ीसा शैली से ही जुड़ा हुआ है ये जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)
उड़ीसा शैली के आधार पर सारे जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में भगवान जगन्नाथ के साथ साथ उनके भाई बलदाऊ और साथ मे ही बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं हमेशा होती हैं। लेकिन भीतरगांव का यह मंदिर इससे अलग बना हुआ है। यहां पर काले सुंदर से पत्थर से बनी भगवान जगन्नाथ जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) की प्रतिमा के साथ केवल उनके अग्रज बलराम की ही छोटी प्रतिमा है। उसके पीछे पत्थरों पर भगवान के दशावतार उकेरे गए हैं। इन दशावतारों में महात्मा बुद्ध के स्थान पर बलराम का चित्र उकेरा गया है।
मानसून आने की दस्तक देता है ये जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)
इस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से टपकने वाली सारी पानी की बूंदों का एक रहस्य अनोखा ही है। ज्यादा भीषण गर्मी में इस मन्दिर के गुंबद की शिलाओं से इन पानी की बूंदों का टपकना और बरसात के आते ही सूख जाना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं होता है। इस मन्दिर मे 15 दिन पहले ही टपकने वाली पानी बूंदों का टपकना मानसून आने का पूरा संकेत दे देता है। अगर बुजुर्गों की मानें तो इन पानी की बूंदों का आकार ही बताता है कि मानसून अच्छा रहेगा या फिर कमजोर रहेगा।
बौद्ध स्तूप जैसा दिखता है जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)
ये जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) बाहर से भी बौद्ध स्तूप जैसा नज़र आता है। लेकिन इस वैष्णव मंदिर के भीतर एक भगवान जगन्नाथ की मुख्य प्रतिमा बनी हुई है और शिल्पकला नागरशैली भी बनी हुई हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि करीब 11वीं या 12वीं सदी में बना ये मंदिर खुद ही ध्वस्त हो गया होगा।
इसलिए किसी स्थानीय जमींदार ने इसकी मरम्मत करवाई होगी। युवा कल्याण विभाग के उप निदेशक और इतिहास-पुरातत्व के जानकार अजय त्रिवेदी कहते हैं कि ध्वस्त मंदिर के स्तंभों पर ही किसी स्थानीय जमींदार ने करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व चूने-मिट्टी से मंदिर का वाह्य आकार तैयार कराया है। मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं। अणुवृत्त आकार के मंदिर का भीतरी हिस्सा करीब 700 वर्ग फीट है। पूर्व मुखी द्वार के सामने प्राचीन कुंआ और तालाब भी है।
निर्माण काल पर असमंजस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर के निर्माण काल पर इतिहासकार एकमत नही हैं। कुछ इतिहासकार इसे दूसरी से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य का मानते हैं। लेकिन गर्भगृह के भीतर व बाहर का चित्रांकन दूसरी से चौथी शताब्दी का होने की गवाही भी देता है। इसके साथ ही वीएसएसडी कालेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल मिश्रा मंदिर के बहारी ओर निॢमत एक मोर व एक चक्र के निशान देख मंदिर के ही चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल का होने की पुष्टि भी करते हैं।
मंदिर के द्वार पर स्थापित अयाग पट्ट को देख कुछ इतिहासकार इसे 2000 ईसा पूर्व की संस्कृति से ही जोड़ते हैं। जबकि इतिहास के जानकार अजय त्रिवेदी कहते हैं कि मंदिर का निर्माण गूर्जर-प्रतिहार या गहरवाल राजाओं के कार्यकाल का लगता है। इसलिए संभवत: यह 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच बना होगा।
बूंदों का वैज्ञानिक मत
आइआइटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. डीपी मिश्रा इस मंदिर के विशेष डिजाइन को ही इसकी पूरी वजह ही मानते हैं। इस मंदिर का इतिहास बताता है की इस मन्दिर मे ऐसा डिजाइन को ऐसा बनाया गया है कि जब भी यहाँ मानसून आने वाला होता है तो काफी तेज गर्मी के साथ साथ वाष्प के कारण यहां पानी भी निकलने लगता है।