Sunday, November 24, 2024

Sumitranandan Pant birth anniversary : ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’थे सुमित्रानंदन पंत , छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से एक माने जाते थे पंत

DIGITAL NEWS GURU UTTAR PRADESH DESK :- 

Sumitranandan Pant Birthday Anniversary : ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’थे सुमित्रानंदन पंत , छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से एक माने जाते थे पंत

Sumitranandan Pant Birthday: सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) हमेशा से हिन्दी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से मजबूत स्तंभों एक रूप मे माने जाते हैं। पंत को हमेशा से सौंदर्य के अप्रतीम कवि और ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी जाना जाता रहा हैं। क्या आप जानते हैं कि सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant)  ने मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में ही काव्य रचनाएँ करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी काव्य धारा में अनुपम रचनाएँ की जिसमें ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘चिदंबरा’, ‘युगांत’ और ‘स्वर्णधूलि’ प्रमुख मानी जाती हैं।

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant ) का आरंभिक जीवन

‘सुमित्रानंदन पंत’ (Sumitranandan Pant) का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी, उत्तराखंड में 20 मई सन् 1900 को हुआ था। लेकिन पंत के जन्म के कुछ घंटो बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया था । जिसके बाद पंत के लालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी उनकी दादी ने पूरी करी थी। बचपन में उनका नाम ‘गुसाईं दत्त’ था लेकिन हाई स्कूल के समय उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant)  रख लिया। वह अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) 1918 में इलाहबाद (वर्तमान प्रयागराज) चले गए थे

पंत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही पूरी करी थी फिर वह वाराणसी आ गए थे और ‘जयनारायण हाईस्कूल’ में
आगे की शिक्षा प्राप्त की थी । इसके बाद सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) वर्ष 1918 में इलाहबाद (वर्तमान प्रयागराज) चले गए और ‘म्योर कॉलेज’ में बाहवीं कक्षा में दाखिला लिया था। बता दें कि ये वो समय था जब संपूर्ण भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहे थे।

साल 1921 में महात्मा गाँधी के द्वारा शुरू किए गए ‘अहसयोग आंदोलन’ में हजारों लोगों ने सरकारी स्कूलों, विश्वविद्यालयों, कार्यालयों और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया। इस आंदोलन में सुमित्रानंदन पंत ने भी अपना कॉलेज छोड़ दिया। जिसके बाद वह हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे।

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) की साहित्यिक यात्रा

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) ने सात वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में हमें प्रकृति का सौन्दर्य चित्रण के साथ-साथ नारी चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता हैं। उनका लेखन इतना शशक्त और प्रभावशाली था जिसकी वजह से वर्ष 1918 में महज 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी। बता दें कि पंत की रचनाकाल वर्ष 1916 से वर्ष 1977 कुल मिलाकर लगभग 60 वर्षों तक रहा था।

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) की साहित्यिक रचनाएं

काव्य रचनाएं
काव्य प्रकाशन वर्ष
वीणा वर्ष 1919
ग्रंथि वर्ष 1920
पल्लव वर्ष 1926
गुंजन वर्ष 1932
युगांत वर्ष 1937
युगवाणी वर्ष 1938
स्वर्णकिरण वर्ष 1947
स्वर्णधूलि वर्ष 1947
उत्तरा वर्ष 1949
युगपथ वर्ष 1949
चिदंबरा वर्ष 1958
कला और बूढ़ा चाँद वर्ष 1959
लोकायतन वर्ष 1964
गीतहंस वर्ष 1969

उपन्यास
उपन्यास प्रकाशन वर्ष
हार वर्ष 1960

कहानियाँ
कहानी संग्रह प्रकाशन वर्ष
पाँच कहानियाँ वर्ष 1938

आत्मकथात्मक संस्मरण
आत्मकथात्मक संस्मरण प्रकाशन वर्ष

साठ वर्ष : एक रेखांकन वर्ष 1963

सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) को मिले ये पुरस्कार व किया गया सम्मानित

साल 1960 में पंत को उनके काव्य संग्रह ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था।
साल 1961 में भारत सरकार ने साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पंत जी को ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से
भी सम्मानित किया जा चुका था।
साल 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया जा चुका था।

77 वर्ष की आयु में सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) का निधन हो गया

आप को बता दें कि 28 दिसंबर सन् 1977 को 77 वर्ष की आयु में (Sumitranandan Pant) का निधन हो गया और इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत भी हो गया था। इसके बाद उनके पैतृक गांव कौसानी में उनके घर को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय में परिणत किया जा चुका है इस संग्रहालय में महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी की एक मूर्ति स्थापित है और यहाँ उनकी व्यक्तिगत चीजें, प्रशस्तिपत्र, विभिन्न संग्रहों की पांडुलिपियों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया है।

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