Saturday, September 21, 2024

कानपुर में क्यों खेली जाती है सात दिन की होली? आखिरकार क्या है इस वर्षों पुराने गंगा मेला का महत्व!

DIGITAL NEWS GURU RELIGIOUS DESK:

कानपुर में क्यों खेली जाती है सात दिन की होली? आखिरकार क्या है इस वर्षों पुराने गंगा मेला का महत्व!

होलिका दहन के दिन से ही पूरे देश में होली की धूम मच जाती है. चारों तरफ रंग गुलाल ही उड़ता हुआ नजर आता है. भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के कानपुर में होली के रंग एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे 7 दिन उड़ते हैं. हमारे देश में होली खेलने को लेकर बहुत सारे शहर दुनियाभर में फैमस हैं.

कानपुर में मनाई जाने वाले होली बेहद अनूठी है. जिस प्रकार बरसाने की लड्डू और लठमार होली प्रसिद्ध है, उसी तरह सात दिनों तक खेली जाने वाली कनपुरिया होली भी प्रसिद्ध है. यह होली की रंगपंचमी के दिन से ही हो जाती है . आइए अब इस अनोखी होली के बारे में विस्तार से जानते हैं…

गंगा मेला कब है?

दिनांक 24 मार्च 2024, दिन रविवार को होलिका दहन हुआ. कानपुर की होली पूरे भारत में अलग स्थान रखती है क्योकि कानपुर में होली से लेकर कानपुर हटिया होली मेला तक होली का उल्लास रहता है. इस बार 83वां होली का गंगा मेला दिनांक 30 मार्च, दिन शनिवार अनुराधा नक्षत्र पर प्राचीन परंपरा के अनुसार होगा.

सन् 1942 से निभाई जा रही है गंगा मेला की परंपरा

क्रांतिकारियों का शहर नाम से पुकारे जाने वाले कानपुर में पूरे 7 दिन तक होली खेली जाती है. होली के लगभग 6-7 दिन बाद यहां अनुराधा नक्षत्र के दिन एक खास होली खेली जाती है. सातवें दिन यानी कि अंतिम दिन गंगा मेला आयोजित किया जाता है और फिर पूरी धूमधाम के साथ होली का समापन होता है. इस अनोखी होली की परंपरा सन् 1942 से ही चली आ रही है. इसके पीछे की कहानी यह है कि, जुड़ी हैं सन् 1942 में क्रांतिकारी आंदोलन से उत्तर प्रदेश कानपुर की रंग वाली क्रांति

यह प्रथा सन् 1942 से शुरू हुई. उस समय देश में पूरा ब्रिटिशों का राज था. कानपुर का दिल कहे जाने वाले जाने स्थान हटिया से. हटिया से लोहा, स्टील, कपड़ा और गल्ले का कारोबार होता है. यहां क्रातिकारियों का जमावड़ा लगता था. उस समय होली की धूम पूरे देश में गूंज रही थी. तथा होली वाले दिन हटिया बाजार में रज्जन बाबू पार्क में कुछ नौजवान क्रांतिकारी रंग गुलाल उड़ा कर होली खेल रहे थे और जोर जोर से आजादी के नारे लगा रहे थे.

अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बिना उन्होंने वहां तिरंगा फहरा दिया. इस खबर की भनक जब अंग्रेजों को लगी तो वो कई सैनिकों के साथ घोड़े पर सवार होकर आए और तिरंगे को उतारने लगे. इन सब स्थिति के दौरान क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच में संघर्ष होने लगा.

अंग्रेजी हुकूमत ने लगभग 45 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डालने का आदेश दिया. इसके पश्चात लोग विरोध पर उतर गए. मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी व आम जनता सब ने उनका कार्य करने से इनकार कर दिया और मजदूरों ने भी फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया. लोगों ने चक्का जाम कर सैकड़ों ट्रकों को खड़ा कर दिया. साथ ही सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए.

ऐसे हुई कानपुर गंगा मेला की शुरुआत

वहां की सभी महिलाएं और बच्चे रज्जन बाबू पार्क में धरने पर बैठ गए. ठप्प बाजारों और व्यापार से अंग्रेज परेशान हो गए. इससे परेशान होकर एक अंग्रेजी अफसर को उस पार्क में आना पड़ा जहां 4 घंटे तक लोगों से बातचीत चली. इसके पश्चात क्रांतिकारियों को होली के 6 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र पर रिहा कर दिया गया और क्रांतिकारियों को लेने के लिए जेल के बाहर पूरा शहर इकट्ठा हो गया । लोगो ने उसके बाद क्रांतिवीरों के संग बड़े ही धूमधाम से होली खेली. तब से अब तक कानपुर में सात दिन के बाद होली खेलने की चली आ रही परंपरा को हर साल निभाया जाता है.

अब ऐसे आयोजित होता है गंगा मेला

गंगा मेला के दिन कानपुर में पर भीषण होली खेली जाती है. सुबह ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान किया जाता है. उसके बाद क्रांतिकारियों को नमन करने के बाद रंग का ठेला निकलता है. इसके साथ ही सड़कों पर रंग से भरे ड्रम, ऊंट-घोड़े आदि भी चलते हैं. बिरहाना रोड, जनरल गंज, मूलगंज, चौक, मेस्टन रोड होते हुए कमला टावर आदि स्थान से ठेला गुजरता है.

जहां रास्ते में फूलों की वर्षा होती है. लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं. ठेले पर होली का विशात जुलूस निकाला जाता है जिसमें हजारों लोग इकट्ठा होते हैं. कानपुर के करीब एक दर्जन मोहल्ले में घूमता हुआ यह जुलूस रज्जन बाबू पार्क में आकर समाप्त हो जाता है . इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन होता है, जहां लोग एक-दूसरे को होली की बधाई देते हुए रंग भी खेलते हैं.


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