Saturday, September 21, 2024

Suryakant Tripathi Nirala : हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

DIGITAL NEWS GURU NATIONAL DESK :- 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जन्मदिन विशेष  (Suryakant Tripathi Nirala birthday special ) :

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) का जन्म वसंत पंचमी रविवार 21 फरवरी 1896 के दिन हुआ था, अपना जन्मदिन वसंत पंचमी को ही मानते थे। उनकी एक कहानी ‘ लिली’ 21 फरवरी साल 1899 उनके जन्म तिथि पर ही प्रकाशित हुई थी। रविवार को इनका जन्म होने के कारण वह सूर्ज कुमार के नाम से भी जाने जाते थे। निराला जी जब v3 साल के ही थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी उसके बाद उनके पिता ने ही उनकी पूरी देखभाल करी थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) की शिक्षा:

उनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल हाई स्कूल से हुई थी परंतु उन्हें वह इसमे बिल्कुल भी रुचि नहीं ले रहे थे। फिर इनकी शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू करवाई गयी थी। हाई स्कूल तक की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन शुरू कर दिया था।जिसके बाद वह लखनऊ आ गए थे शुरुआत के समय से ही उन्हें रामचरितमानस को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) का विवाह:

सूर्यकांत त्रिपाठी जी जब सिर्फ 15 साल के थे तभी उनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया था। मनोरमा देवी रायबरेली जिले के प. राम दयाल जी की पुत्री थी मनोरमा देवी बहुत ही शिक्षित महिला थी। परंतु 20 वर्ष की आयु में ही मनोरमा देवी की मृत्यु हो गई थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) की पारिवारिक विपत्तियां:

निराला जी के जीवन में 16 – 17 साल की उम्र से ही विपत्तियां आनी शुरू हो गई थी। उन्हें कई सारी प्रकार की सामाजिक संगोष्ठी से गुजरना पड़ा था ।परंतु आखिर तक उन्होंने अपने लक्ष्य को छोड़ा नहीं था। जब वह सिर्फ 3 साल के ही थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। और सामाजिक रूप से उनका पिताजी का निधन भी हो गया था साथ ही 20 साल की उम्र में उनकी पत्नी की मृत्यु भी हो गई थी। पत्नी की मृत्यु के बाद निराला जी बहुत टूट से गए थे

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) का कार्य क्षेत्र:

 

निराला जी कि पहली नौकरी महिषादल राज्य में लगी थी निराला जी ने साल 1918 से साल 1922 तक यहां पर नौकरी करी थी। इस दौरान ही उन्होंने और भी कई सारे कार्य भी कर डाले थे, साल 1923 अगस्त से निराला जी मतवाला संपादक मंडल में भी कार्य करने लगे, फिर उन्होंने लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में मासिक पत्रिका सुधा मध्य के साथ काफी दिनों तक संबंध में रहे थे। साल 1942 से मृत्यु तक कुछ समय उन्होंने लखनऊ में ही बिताया था

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) की रचनाएँ:

साल 1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लिखने का कार्य शुरू कर दिया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत जन्म भूमि पर लिखी गई थी। साल1916 ई मैं निराला जी द्वारा लिखी गई ‘ जूही की कली ‘ बहुत ही लंबे समय तक का प्रसिद्ध रही थी और साल 1922 ई मैं यह प्रकाशित हुई थी

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) के उपन्यास:

अप्सरा (1931)
अलका (1933)
प्रभावती (1936)
निरुपमा (1936)
कुल्ली भाट (1938-39)
बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
चोटी की पकड़ (1946)
काले कारनामे (1950)
चमेली
इन्दुलेखा
कहानी संग्रह
लिली (1934)
सखी (1935)
सुकुल की बीवी (1941)
चतुरी चमार (1945)
देवी (1948)

 

 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) के निबंध:

 

रवीन्द्र कविता कानन (1929)
प्रबंध पद्म (1934)
प्रबंध प्रतिमा (1940)
चाबुक (1942)
चयन (1957)
संग्रह (1963)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) के कहानी संग्रह:

लिली (1934)
सखी (1935)
सुकुल की बीवी (1941)
चतुरी चमार (1945)
देवी (1948)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Surykant Tripathi Nirala) की कविताएँ:

 

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं

 

मौन:

बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।

किशोरी, रंग भरी किस अंग भरी हो
रंगभरी किस अंग भरी हो?
गातहरी किस हाथ बरी हो?
जीवन के जागरण-शयन की,
श्याम-अरुण-सित-तरुण-नयन की,
गन्ध-कुसुम-शोभा उपवन की,
मानस-मानस में उतरी हो;
जोबन-जोबन से संवरी हो।\
जैसे मैं बाजार में बिका
कौड़ी मोल; पूर्ण शून्य दिखा;
बाँह पकड़ने की साहसिका,
सागर से उर्त्तीण तरी हो;
अल्पमूल्य की वृद्धिकर

भारती वन्दना:

भारति, जय, विजय करे
कनक-शस्य-कमल धरे!
लंका पदतल-शतदल
गर्जितोर्मि सागर-जल
धोता शुचि चरण-युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!
तरु-तण वन-लता-वसन
अंचल में खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल-कण
धवल-धार हार लगे!
मुकुट शुभ्र हिम-तुषार
प्राण प्रणव ओंकार
ध्वनित दिशाएँ उदार
शतमुख-शतरव-मुखरे!

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