DIGITAL NEWS GURU NATIONAL DESK :-
Saahir ludhianvi birthday special : साहिर लुधियानवी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी एक कविता के चक्कर मे लाहौर छोड़ने पर मजबूर हो गए थे !
मशहूर गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) के निजी और साहित्यकि व फिल्मी जीवन को लेकर ‘साहिर समग्र’ नामक एक पुस्तक राजकमल प्रकाशन से आई है। इस पुस्तक का लिप्यांतरण और संपादन आशा प्रभात ने किया था ।साहिर समग्र’ किताब साहिर लुधियानवी की रचनाओं का ही समग्र है । अभी तक साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) कि उपलब्ध तमाम गज़लों, नज़्मों और गीतों को इसमें इकट्ठा करने की कोशिश करी गयी थी । पुस्तक में साहिर लुधियानवी के निजी जीवन से जुड़े कुछ किस्से भी लिखे हुए हैं।
साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) का जन्म आज ही के दिन यानी 8 मार्च, साल 1921 को लुधियाना में हुआ था । साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) का असली नाम अब्दुल हुआ करता था । इनके पिता काफी गुस्सैल और अय्याश किस्म के थे । इनके पिता का नाम चौधरी फजल मुहम्मद था । इनके पिता चौधरी फजल मुहम्मद जागीरदार एक हुआ करते थे। साहिर लुधियानवी की मां का नाम सरदार बेगम था ।
अपने पति की अय्याशी तथा अत्याचारों से दुखी होकर नाबालिग बेटे साहिर के साथ उन्होंने अपने पति का घर छोड़ दिया था ।सरदार बेगम वर्षों तक तंगहाली से अपना जीवन बसर कर रही थी, और साथ ही साहिर की परवरिश कर रही थी तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए लगातार संघर्ष भी करती रहती थी ।
त्रासदी की वजह से साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) बने थे शायर! :
साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) कोई वंशानुगत शायर नहीं थे। बल्कि उनके पूरे ख़ानदान में दूर-दूर तक कोई भी शायर नही हुआ था । पिता के खानदान में और न ही मां की तरफ कोई शायर हुआ था बल्कि हालात से उपजी त्रासदी की वजह ने उनके अन्दर शायरी की कोंपले फूटने लगी थी और शायरी करने का नशा उन पर चढ़ गया था ।
साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) जब ही कोई कुछ उर्दू और फारसी मे गलजे लिखते और जा कर ज अपने सभी सहपाठियों को सुनाया करते थे। जिनमें ज्यादातर मीर तकी मीर, मिर्जा ग़ालिब, मिर्ज़ा मुहम्मद रफी सौदा, इक़बाल आदि की शायरी हुआ करती थी। और पन्द्रह-सोलह साल की उम्र में साहिर लुधियानवी खुद अच्छी खासी शायरी लिखने लगे थे ।
गुरुवाणी कंठस्थ थी साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) को:
उस समय लुधियाना काफी छोटा-सा शहर हुआ करता था. वहां सिखों और हिन्दुओं की तुलना में मुसलमानों की तादाद कम हुआ करती थी । वहां ज्यादातर लोग सिर्फ पंजाबी भाषा ही बोला करते थे । जो उस वक़्त एक समय मे फारसी लिपि में लिखी जाती थी । साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) की मातृभाषा पंजाबी हो गयी थी। और इसी भाषा मे उन्होंने पूरी गुरुवाणी कंठस्थ कर ली थी ।
उनके ज्यादतर दोस्त में सिख और हिन्दू हुआ करते थे। उसी दौरान उन्होंने ‘ताजमहल’नामक एक नज्म लिखी थी । जिसने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर ला कर खड़ा कर दिया था । इस नज्म को उन्होंने पहली बार अमृतसर के एक मुशायरे में पढ़ा था । तो सभी श्रोताओं पर इस नज्म का जादू- सा छा गया था । फिर तो अब ऐसा होने लगा था कि साहिर के बिना कोई भी मुशायरा अधूरा माना जाने लगा था।
एक कविता के कारण लाहौर छोड़ने पर मजबूर हुए थे साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ):
स्वतंत्रता के बाद साहिर भारत में ही बस गए थे और बॉलीवुड कि फिल्मों के लिए गाने लिखने लगे थे। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। 25 अक्टूबर साल 1980 को मुंबई में उनका निधन हो गया था।
साल 1949 में, लाहौर में रहते हुए, साहिर लुधियानवी ने एक क्रांतिकारी कविता, ‘आवाज़-ए-आदम’ (द वॉयस ऑफ मैन) लिखी थी, जिसमें ‘हम भी देखेंगे’ एक यादगार लाइन बन गई थी। पाकिस्तान पहले से ही अमेरिका को यह विश्वास दिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था कि वह उसकी साम्यवाद विरोधी नीति में मदद करेगा। पाकिस्तान खुद को बस साबित करने में लगा हुआ था।
और फिर कभी भारत से नहीं लौटे साहिर लुधियानवी ( Saahir ludhianvi ) :
लेकिन साहिर की ये कविता प्रकाशित होने के बाद से उन्हें ख़ुफ़िया एजेंसियों से धमकीयां मिलने लगी थी । और मजबूर होकर शाहिर को भारत आना पड़ा था। उसके बाद साहिर ने ‘हम भी देखेंगे’ एक कविता लिखी थी, जो उनकी पाकिस्तान से विदाई के रूप में याद की जाती है। उन्होंने यह कविता साल 1949 में लाहौर की एक सभा में पढ़ी और कुछ दिनों बाद भारत आ गए लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटे।YOU MAY ALSO READ :- Harmanpreet Kaur birthday special: जाने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सबसे दमदार खिलाड़ी हरमनप्रीत कौर के बारे मे कुछ अनसुनी बातें!