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रतन जी टाटा जन्मदिन विशेष (Ratan ji tata birthday special) :
रतन जी टाटा (Ratan ji tata) ने सन् 1912-13 में पाटलीपुत्र को खोजने के लिए आर्थिक मदद का जिम्मा अपने कंधे मे उठाया था. इसी अभियान के तहत मौर्य समाज के महान सम्राट अशोक के सिंहासन कक्ष के खंभे मिले थे. मानवता के प्रति उनके सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने टाटा को सर की उपाधि से नवाज दिया था.
भारत के विकास में टाटा समूह के योगदान को न तो कोई नकार सकता है और न ही कोई भी उसे अनदेखा कर सकता है. जब भी जरूरत पड़ी टाटा समूह हमेशा देश के साथ खड़ा रहा है.ऐसा ही एक वक्त आया था अंग्रेजों के शासनकाल में, जब मौर्य वंश का इतिहास और उसकी राजधानी पाटलीपुत्र को खोजा जा रहा था.
तभी अचानक अंग्रेजों ने हाथ खड़े कर दिए तो सामने आए टाटा समूह के संस्थापक सर जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे सर रतन जमशेदजी टाटा. उन्होंने सारा जिम्मा खुद उठा लिया था और आज मौर्य वंश का इतिहास लोगों के सामने ले आये थे . 20 जनवरी को जन्मे सर रतनजी टाटा की जयंती पर जान लेते हैं, उनसे जुड़े कुछ खास किस्से.
रतन जी टाटा (Ratan ji tata) को अंग्रेजों ने दी थी उन्हे “सर” की उपाधि :
रतन जी टाटा (Ratan ji tata) का जन्म 20 जनवरी साल 1871 को हुआ था. वह अपने पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए वह अंग्रेजी शासनकाल में भी देश और समाज की सेवा में लगातार लगे रहते थे. पिता के निधन के बाद रतन जी टाटा (Ratan ji tata) ने अपने भाई के साथ मिलकर कंपनी की बागडोर संभाली और लगातार कंपनी को आगे बढ़ाते रहे. साल 1892 में उनकी शादी हो गई. मानवता के प्रति रतनजी टाटा के सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें सर की उपाधि से नवाजा और तभी से वह सर रतनजी टाटा कहे जाने लगे थे.
रतन जी टाटा (Ratan ji tata) हमेशा सबकी मदद के लिए खड़े रहते थे:
अमीर खानदान में पैदा होने के बावजूद भी रतन जी टाटा (Ratan ji tata) को देश के विकास की सोच के साथ – साथ समाज के अभावग्रस्त लोगों के जीवन स्तर में सुधार पर हमेशा उनका जोर बना रहता था. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी जी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया था तो वही दूसरी तरफ गोपालकृष्ण गोखले की सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी के लिए भी जी भरकर हाथ खोले थे . वही अगर कही दैवीय आपदा हो, पब्लिक मेमोरियल या फिर स्कूल और हॉस्पिटल, सबके लिए रतनजी टाटा हमेशा आगे खड़े रहते थे.
जब रतन जी टाटा (Ratan ji tata) के लिए अंग्रेजों ने खड़े कर दिए थे हाथ:
एक ओर रतन जी टाटा (Ratan ji tata) अपनी कंपनी के जरिए देश के विकास और सुधार में लगे रहते थे, तो वही दूसरी ओर मौर्य साम्राज्य की राजधानी रही पाटलीपुत्र और आज के समय के पटना में संबंध जोड़ने की कोशिश लगातार हो रही थी. इसके लिए खुदाई भी करी जानी थी फिर साल 1900 से पहले पाटलीपुत्र को खोजने के लिए थोड़ी-बहुत खुदाई भी शुरू हो गई थी.
लेकिन इसमें कोई खास सफलता अंग्रेजी सरकार को नहीं मिल पायी थी. साल 1903 तक तो अंग्रेज सरकार ने इस काम में रुचि भी ली थी, लेकिन बाद में ब्रिटिश सरकार ने पाटलीपुत्र की खोज के लिए और अधिक धन देने से मना कर दिया था. और रुचि भी कम कर दी थी.
साल 1912-13 में पाटलीपुत्र खुदाई को मिला रतन जी टाटा (Ratan ji tata) का साथ:
जब रतनजी टाटा तक यह बात पहुंची तो उन्होंने साल 1912-13 में पाटलीपुत्र को खोजने के लिए आर्थिक मदद का जिम्मा खुद अपने कंधो पर उठा लिया था. तब के पुरातत्व महानिदेशक को उन्होंने बुलाकर पूरे मसले पर बातचीत शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने उनसे वादा किया था कि पाटलीपुत्र के बारे में जब तक पता नहीं चल जाता है, वह हर साल उन लोगो 20 हजार रुपये देते रहेंगे. इसके बाद तो जैसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पंख लग गए.
रतन जी टाटा (Ratan ji tata) को 1913 में मिली थी बड़ी सफलता:
आर्थिक दिक्कत दूर होने के बाद पुरातत्वविद् ने 1912-13 की सर्दी के दौरान दोबारा पाटलीपुत्र की खोज शुरू कर दी थी. तब इस खुदाई की शुरुआत आज के पटना में स्थित कुमराहार से शुरू हुई थी. धीरे-धीरे इसमें सफलता मिलने लगी थी और सबसे पहले जमीन के 10 फुट नीचे ईंटों की एक पुरानी दीवार खोजने में पुरातत्व विभाग को कामयाबी मिली. आखिरकार 7 फरवरी साल, 1913 को एक बड़ी सफलता हाथ लग गयी थी .
पूरी दुनिया को पता चला था सम्राट अशोक का वैभव:
सात फरवरी को जब खुदाई हो रही थी उस दौरान मौर्य वंश के महान सम्राट अशोक के सिंहासन कक्ष के खंभे मिल गए थे.इससे यह अंदाजा लगाने में काफी मदद मिली कि सम्राट अशोक के दरबार शोभा कितनी अद्भुत और सुंदर रही होगी, क्योंकि तब खुदाई के दौरान अशोक के दरबार के 100 खंभे मिले थे.
यानी दरबार काफी वैभवशाली और विशाल रहा होगा. इसके बाद भी खुदाई काफी समय तक चलती रही और इस खुदाई के दौरान कई सिक्के, पट्टिकाएं और टेराकोटा की मूर्तियां भी बरामद की गईं. लगातार चार साल तक खुदाई में पाटलीपुत्र का इतिहास लोगों के सामने आता रहा था.
सर रतन जी टाटा (Ratan ji tata) जीवन भर परोपकार के साथ ही आम लोगों के संघर्षों से भी जुड़े रहे थे. 6 सितंबर साल 1918 को लंदन में उनका निधन हो गया था.इसके बाद उनकी इच्छा के अनुसार साल 1919 में सर रतन टाटा ट्रस्ट की शुरुआत करी गयी थी.
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