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Rabindranath Tagore birth anniversary : राष्ट्रगान के रचयिता और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय !
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने काफी कविताएं लघु कथाएं उपन्यास लिखे हुए थे। टैगोर ने हमेशा अपनी रचनाओं में सामाजिक बुराइयां जैसे कि बाल विवाह और दहेज प्रथा को बन्द करने के लिए काफी जोर दिया था । रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाली साहित्य और संगीत के साथ-साथ भारतीय कला को फिर जिंदा करने का काम किया।
उन्हें 1913 में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे इसे हासिल करने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले गीतकार थे। टैगोर को गुरुदेव, कोबीगुरु, बिस्वकोबी जैसे उपनामों से भी जाना जाता था।टैगोर की रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान भी बनीं थी । जिसमें ‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान बना हुआ है तो वही दूसरी ओर ‘आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना हुआ है ।
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का कोलकाता में हुआ था जन्म:
टैगोर (Rabindranath Tagore) का जन्म 7 मई साल 1861 को कोलकाता में हुआ था। टैगोर अपने माता पिता की आखिरी संतान थे। टैगोर के 12 भाई बहन थे । बचपन में टैगोर को सभी लोग बड़े प्यार से ‘रबी’ बुलाया करते थे। टैगोर बेहद कम उम्र में अपनी मां को खो दिया था। उनके पिता एक यात्री थे इसलिए, उनका पालन-पोषण घर की देखभाल करने वाले लोगों ने ही किया। एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे टैगोर ने सिर्फ 8 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता को लिख डाला था। टैगोर कि पहली कविता संग्रह सिर्फ 16 साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था।
टैगोर ने कालजयी रचना गीतांजलि भी लिखी थी। साल 1913 में टैगोर साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले एशियाई बन कर सामने आये थे। टैगोर की गीतांजलि, चोखेर बाली, गोरा, काबुलीवाला, चार अध्याय और घरे बाइरे सहित ढेरों बेहद चर्चित रचनाएं हैं। उनकी कई रचनाओं पर फिल्में भी बनीं।
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की शिक्षा:
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए साल 1878 में बैरिस्टर की पढ़ाई को करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे । टैगोर ने बाद में कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला ले लिया था, लेकिन इसकी जगह उनकी रुचि शेक्सपियर को पढ़ने में ज्यादा रही थी ।इसी दौरान उन्होंने अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार भी सीखा। फिर वह भारत लौट आए और मृणालिनी देवी से विवाह कर लिया था ।
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने रखी थी शांति निकेतन की नींव:
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के पिता ने आश्रम के लिए एक विशाल भूमि खरीदी । उन्होंने 1863 में इस ‘आश्रम’ की स्थापना की। 1901 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने एक ओपन-एयर स्कूल की स्थापना की। यह संगमरमर के फर्श वाला एक प्रार्थना कक्ष था और इसे ‘मंदिर’ का नाम दिया गया था। इसका नाम ‘पाठ भवन’ भी रखा गया था और केवल पांच छात्रों के साथ यह ‘पाठ भवन’ शुरू किया गया था। यहां कक्षाएं पेड़ों के नीचे होती थी और पारंपरिक गुरु-शिष्य पद्धति का पालन किया जाता था।
उसी दौरान ही रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की पत्नी और उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई थे अब वे अकेले रह गए थे। साल 1913 में, उन्हें काफी बड़ी कामयाबी मिली। उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और वे एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता बने थे। अब, शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल का एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय शहर है।
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने 1941 में दुनिया को कहा अलविदा:
इसमें कोई शक नहीं है कि टैगोर ने बंगाली साहित्य के आयाम को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। कई देशों ने इस महान लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी प्रतिमाएं भी बनाई थी । 7 अगस्त साल 1941 को जोरासांको हवेली (कोलकाता) में ही टैगोर का निधन हो गया था। यह वही जगह थी जहां पर उनका बचपन बीता था।YOU MAY ALSO READ :- “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” के एक्टर गुरुचरण सिंह 22 अप्रैल से हैं लापता ,पुलिस की ओर से भी नही प्राप्त हो रही कोई जानकारी !