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Mohammed Shahabuddin : जाने खूंखार डॉन मोहम्मद शहाबुद्दीन की जन्म से जेल तक की पूरी दास्तान !
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) को तो आप सभी जानते ही होगी जी हाँ जिन्हें बिहार के सिवान की जनता ‘साहब’ के नाम से जाना करती थी उनके दबंग वज़ूद से लोग हमेशा चुप रहना ही मुनासिब समझते थे ।
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) का जन्म 10 मई साल 1967 बिहार के सीवान जिले के एक गाँव प्रतापपुर में हुआ था। शहाबुद्दीन ने अपनी पूरी शिक्षा बिहार से ही पूरी करी थी। एमए की पढाई और फिर पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी करी थी।
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) के एक बेटा और दो बेटीयाँ हैं। शहाबुद्दीन ने अपने कॉलेज के समय से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में अपना कदम रख दिया था। किसी फिल्मी किरदार से दिखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) की कहानी भी किसी फिल्म की तरह ही लगती है। शहाबुद्दीन ने कुछ ही वर्षों में अपराध और राजनीति में अपना काफी नाम कमा लिया था ।
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) के खिलाफ उसका पहला आपराधिक मुकदमा 1986 मे हुआ था दर्ज:
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) के खिलाफ उसका पहला आपराधिक मुकदमा साल 1986 को दर्ज किया गया था । इसके बाद से ही शहाबुद्दीन नाम एक के बाद एक और भी कई मुकदमे लिखे गए थे। छोटी सी उम्र में ही अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन एक जाना माना नाम बन चुका था। राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का नाम उस वक्त काफी चर्चाओं में आया था जब शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में जनता दल की युवा इकाई में अपना पहला कदम रखा था।
राजनीति में मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) के सितारे काफी बुलंद थे। पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का पूरा फायदा मिल गया था। पार्टी ने साल 1990 में विधान सभा का उनको टिकट दिया था। और शहाबुद्दीन ने इस टिकट से जीत भी हासिल करी थी । उसके बाद फिर से साल 1995 में शहाबुद्दीन ने चुनाव जीत लिया था ।
इस दौरान मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) का कद पार्टी मे और बढ़ गया था। इसी ताकत को देखते हुए पार्टी ने फिर साल 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दे दिया था और फिर से शहाबुद्दीन की जीत हुई थी । साल 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।
उस समय शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर फैल चुका था कि किसी ने भी उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत नहीं करी थी। सीवान जिले को शहाबुद्दीन अपनी जागीर समझने लगे थे। जहां उनकी इजाजत के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था।
मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) की थी अपनी एक अदालत:
साल 2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक तरह की समानांतर सरकार को चला रहे थे। उनकी एक अपनी एक अदालत हुआ करती थी। जहां पर शहाबुद्दीन कई लोगों के फैसले करा करता था। शहाबुद्दीन खुद ही सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और इसके साथ भूमि विवादों का निपटारा भी करवा देता था। आलम तो ये था कि यहां के जिले के डॉक्टरों की परामर्श फीस भी खुद शहाबुद्दीन तय किया करते थे।
कई लोगों के घरों के वैवाहिक विवाद भी वह अपने तरीके से ही निपटाते थे। साल 2004 के चुनाव के बाद से ही शहाबुद्दीन का एक बुरा वक्त शुरू हो चुका था। साल 2004 मे ही शहाबुद्दीन के खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज किए जा चुके थे। इसके साथ इनकी राजनीतिक रंजिश भी काफी बढ़ चुकी थी।
कोविड से हुई थी मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammed Shahabuddin) की मौत:
शहाबुद्दीन की 1 मई साल 2021 दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) अस्पताल में सीओवीआईडी -19 से मृत्यु हो गई थी।
9 दिसंबर, 2015 को बिहार के सीवान में एक विशेष न्यायाधीश ने शहाबुद्दीन और उसके सहयोगियों को 2004 के दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी
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