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महापर्व छठ पर छठी मैया की पूजा :
शास्त्रों में निहित है कि संतान प्राप्ति हेतु माता अदिति ने छठी मैया की पूजा एवं साधना की थीं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में भगवान आदित्य का अवतार हुआ। अतः छठ पूजा का विशेष महत्व है। वैदिक काल से छठ पूजा मनाई जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि वैदिक काल का एकमात्र त्योहार छठ पूजा है।
महापर्व छठ का इतना महत्व क्यों है?
यह लोक आस्था का महापर्व है। मतलब, यह बिहार और पूर्वांचल के लोगों की आस्था का प्रतीक है। आस्था पर न तो सवाल किया जा सकता है और न ही इसका कोई जवाब हो सकता है। जहां तक महत्व का सवाल है तो यह प्रकृति को चलाने वाले सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। यह देवी कात्यायनी से आशीर्वाद मांगने का पर्व है। छठ दिखाता है कि जिसका अंत है, उसका उदय भी होगा।
आखिर क्यों मनाते हैं महापर्व छठ को ?
वास्तविक रूप से इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे सकता। यह बिहार के सनातन हिंदू धर्मावलंबियों के घर-घर में होने वाला पर्व है। जो अपने घर में नहीं करते, वह दूसरों के घर में जाकर करते हैं। जो दूसरों के घर पर नहीं जाते, वह घाट पर जाकर अर्घ्य देते हैं। कोई मनोकामना के साथ करता है, कोई पूरा होने पर करता है तो बहुत सारे लोग यूं ही करते हैं आस्था के कारण। मनोकामना छठी मइया पूरी करती हैं और आस्था सूर्यदेव के प्रति दिखाते हैं।
सूर्यदेव तो ठीक, छठी मइया कौन हैं?
सूर्यदेव तो इस प्रकृति के ऊर्जा स्रोत हैं। छठी मइया देवी कात्यायनी हैं। यह सूर्यदेव की बहन हैं। नवरात्र में भी हम देवी कात्यायनी की पूजा षष्ठी को करते हैं, मतलत नवरात्र के छठे दिन। सनातन हिंदू धर्म में जन्म के छठे दिन भी देवी कात्यायनी की ही पूजा होती है। इन्हें संतान प्राप्ति के लिए भी प्रसन्न किया जाता है। संतान के चिरंजीवी, स्वस्थ और अच्छे जीवन के लिए देवी कात्यायनी को प्रसन्न किया जाता है। छठी मइया यही हैं। इसलिए, यह समझना मुश्किल नहीं। शेष, छठ में सूर्यदेव की पूजा तो घाट पर होती है, खरना पूजा पहले छठी मइया के लिए ही होती है।
उगते सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही लोक आस्था के महापर्व छठ का आज समापन हो गया है। इस शुभ अवसर देशभर में व्रती एवं साधकों ने सूर्य की उपासना की। साथ ही छठी मैया से सुख और समृद्धि की कामना की। शास्त्रों में निहित है कि संतान प्राप्ति हेतु माता अदिति ने छठी मैया की पूजा एवं साधना की थीं।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में भगवान आदित्य का अवतार हुआ। अतः छठ पूजा का विशेष महत्व है। वैदिक काल से छठ पूजा मनाई जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि छठ पूजा वैदिक काल का एकमात्र त्योहार है। आइए, चित्रों के जरिए छठ पूजा का विहंगम दृश्य देखते हैं-
विवाहित एवं नवविवाहित महिलाएं छठ व्रत करती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से नविवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, विवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति हेतु छठ व्रत करती हैं। विशेष काम में शुभ फल की प्राप्ति हेतु छठ पूजा पर सूर्य उपासना करते हैं।
छठ पूजा पर सूप और डगरा में फल, फूल और पकवान रख सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती विधि-विधान से सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं।
शास्त्रों में निहित है कि सर्वप्रथम माता सीता ने छठ पूजा की थी। उस समय से हर वर्ष कार्तिक माह में विवाहित महिलाएं छठ पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं जल्द से जल्द पूरी होती है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर प्रातः काल उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस समय साधक सूर्य देव को गंगाजल या कच्चे दूध से सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।
छठ मैया को प्रसाद में केराव समेत नाना प्रकार के फल और फूल अर्पित किया जाता है। साथ ही गन्ना भी अर्पित किया जाता है। विशेष कामना की पूर्ति हेतु गन्ना अर्पित करते हैं। इसमें एक साथ कई गन्ने को बांधकर सरोवर में खड़ाकर रखा जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद गन्ने को प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपने से बड़ी महिलाओं को पैर छूकर प्रणाम करती हैं। इस अवसर पर व्रती (वृद्ध महिलाएं) सुख और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।
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