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History of The Day : आज के ही दिन सिक्किम बना था भारत का हिस्सा ,आजादी के 28 वर्ष बाद भारत मे शामिल हुया था सिक्किम !
16 मई यानी आज ही के दिन भारत सिक्किम दिवस के रूप मे मनाता है। 16 मई के ही दिन ही साल 1975 में सिक्किम भारत में विलय हो गया था। इस तरह सिक्किम भारत का 22वां राज्य भी बन गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में रियासतों के भारत में एकीकरण के कार्य के लगभग दो दशक बाद यह राज्य भारत में कैसे शामिल हुआ? आइए समझते हैं:
आजादी के समय पर सिक्किम एक रियासत हुआ करता था। वहां पर चोग्याल वंश का शासन हुआ करता था। इस वंश का सिक्किम पर 333 साल तक शासन रहा था। सिक्किम की स्थापना सन् 1642 में हुई थी। तीन तिब्बती लामाओं ने फुंटसोंग नामग्याल को सिक्किम का पहला शासक बनाया गया था। सिक्किम का चोग्याल राजवंश तिब्बती मूल का था। 1861 में तुम्लोंग की संधि के माध्यम से अंग्रेजों ने आधिकारिक तौर पर सिक्किम पर नियंत्रण पा लिया। हालांकि सत्ता में चोग्याल वंश के राजा ही रहे।
आजादी के बाद सिक्किम:
रियासतों को भारत मिलाने का काम देख रहे, वल्लभ भाई पटेल और संविधान सभा के सलाहकार बी एन राव सिक्किम का विलय भारत में कराना चाहते थे। लेकिन नेहरू इसके खिलाफ थे। दरअसल, नेहरू को ऐसा लग रहा था कि अगर भारत सिक्किम पर विलय का दबाव नहीं बनाएगा तो चीन तिब्बत पर हमला नहीं करेगा। नेहरू ने 1947 में सिक्किम को विशेष दर्जा दे दिया।
नेहरू की मौत और समझौते में बदलाव की मांग:
साल 1950 में भारत और सिक्किम के बीच मे एक समझौता हो गया था । जिसके तहत यह तय हुआ था कि वहां पर शासन तो राजा का होगा लेकिन विदेश और रक्षा से जुड़े मामले भारत सरकार ही देखेगी। साल 1964 तक तो सिक्किम में इसी समझौते के तहत शासन चलता रहा था। लेकिन नेहरू की मौत के बाद चीजें बदलने लगीं थी। क्योंकि इसी के दौरान सिक्किम के राजा चोग्याल ताशी नामग्याल की भी मौत हो गई थी । और वहाँ के नए राजा कुमार थोंडुप के पास नई योजनाएं थी।
सिक्किम और इंदिरा गांधी:
इंदिरा गांधी अपने पहले कार्यकाल में सिक्किम पर बहुत ध्यान नहीं दे पायीं। लेकिन 1971 में बांग्लादेश बनाने के बाद इंदिरा ने सिक्किम का रुख किया। उन्होंने रॉ के संस्थापक आर एन काव से सिक्किम मामले को सुलझाने के लिए कहा। आर एन काव पर लिखी अपनी किताब में नितिन गोखले ने बताया है कि इंदिरा गांधी के आदेश के बाद चार दिन के भीतर एक योजना बनाई गई।
रॉ का प्लान:
इंदिरा गांधी को प्लान पसंद आया। प्लान के मुताबिक, सिक्किम के राजा को धीरे-धीरे कमजोर करना था। जनता राजशाही के खिलाफ और लोकतंत्र के समर्थन में एकजुट हो ऐसा माहौल बनाया जाए। इसके लिए स्थानीय राजनीतिक दलों से मदद भी लेनी थी। सिक्किम नेशनल कांग्रेस के नेतृत्व में यह काम वहां पहले से चल रहा था। भारत सरकार वहां पर किसी भी तरह बसे एक बार चुनाव करवाना चाहती थी और सिक्किम नेशनल कांग्रेस को सत्ता में लाना चाहती थी।
जनता ने घेरा शाही महल:
एक साल बाद, 1974 में वहाँ पर चुनाव हुए थे जिसमें काज़ी दोरजी के नेतृत्व वाली सिक्किम नेशनल कांग्रेस ने जीत हासिल करी थी। उस वर्ष, एक नया संविधान अपनाया गया, जिसने सम्राट की भूमिका को एक नाममात्र के पद तक सीमित कर दिया गया था । साल 1975 में सिक्किम में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें दो-तिहाई पात्र मतदाताओं ने भाग लिया। यहां पर राजशाही को खत्म कर भारत में शामिल होने के पक्ष में लगभग 59,637 वोट पड़े, थे जबकि इसके खिलाफ सिर्फ 1,496 वोट ही पड़े थे।
एक सप्ताह के भीतर ही लोकसभा में संविधान (छत्तीसवां संशोधन) विधेयक पेश कर दिया गया था । इसे संसद में पारित भी किया गया था और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने द्वारा हस्ताक्षर के बाद 16 मई, साल 1975 को प्रभाव में आया था ।
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