History of Memorial Well: जानिए-क्या है ? मेमोरियल वेल की हिस्ट्री, जब अंग्रेजों ने पूरे कानपुर पर लगाया दिया था जुर्माना
History of Memorial Well: सन् 1857 स्वतंत्रता आंदोलन के समय मे ब्रिटिश अंग्रेजो के द्वारा महिलाओं और उनके बच्चों काे मारकर कुएं में दफना दिया जाता था। इसी कारण अंग्रेजों ने कानपुर (Kanpur) के लोगों पर सामूहिक जुर्माना लगाकर वसूल की गई धनराशि से मेमोरियल वेल का निर्माण कराया था। हम सभी लोग सुबह की सैर करने जाते है या फिर कानपुर के कुछ ऐतिहासिक स्थलों को देखने वाले, रोजाना टाइम मिलते कभी कभी कानपुर (Kanpur) के नानाराव पार्क जाते रहते हैं और वहां पर ही एक संरक्षित मेमोरियल वेल देखकर लौट भी जाते हैं।
लेकिन, शायद इस मेमोरियल वेल को देखने वालों को उसका जरा सा भी इतिहास न पता होगा। जब शहर में मेट्रो प्रबंधन ने खोदाई के लिए पुरातत्व विभाग से अनुमति मांगी थी तब एक बार फिर मेमोरियल वेल की यादें ताजा हो गई हैं। इस मेमोरियल वेल का इतिहास (History of Memorial Well) सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में छह दिसंबर से जुड़ा है, उस समय यह दिन कानपुर (Kanpur) के लोगों के लिए अच्छा नहीं था।
चार जून की आधी रात को कानपुर (Kanpur) में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया
सन् 1857 स्वतंत्रता आंदोलन के समय कानपुर (Kanpur) में अंग्रेजों की बड़ी छावनी थी। यहां तीन हजार भारतीय सिपाही और 300 अंग्रेज सैन्य अफसर थे। 21 मई को कुछ सैनिकों ने विद्रोह किया तो उन्हें फांसी दे दी गई। चार जून की आधी रात को कानपुर (Kanpur) में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने नवाबगंज में रखा अंग्रेजों का खजाना लूट लिया। छह जून को नाना साहब के नेतृत्व में अंग्रेजों के अस्थाई किले पर हमला कर दिया गया था।
25 जून को ह्वीलर ने आत्म समर्पण कर दिया था
25 जून को ह्वीलर ने आत्म समर्पण कर दिया। 40 नावों की व्यवस्था कर 27 जून को अंग्रेजों के इलाहाबाद जाने की व्यवस्था नाना साहब ने कराई। नाव चलीं तो मल्लाह नावों से गंगा में कूद गए। अंग्रेजों ने मल्लाहों पर गोलियां चलाईं तो जवाब में घाट पर खड़े सिपाहियों ने अंग्रेजों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। यहां पर ज्यादातर अंग्रेज मारे गए थे।
बीबीघर में बंद और अंग्रेजों को उतार दिया था मौत के घाट
15 जुलाई सन् 1857 को जनरल हैवलाक इलाहाबाद से अपनी सेना को लेकर चला था इसके साथ ही उसने सोचा था कि बीबीघर में रखे गए अंग्रेजों को मार देगा । यह निर्णय तब किसका था, इसको लेकर कई नाम चर्चित हुए हैं लेकिन उसी शाम को बीबीघर में बंद सभी अंग्रेजों को मार दिया गया। अगले दिन सुबह उन सभी की लाशें वहीं लान में बने कुएं में डाल दी गईं। 16 जुलाई की शाम को महाराजपुर के पास जनरल हैवलाक और तात्या टोपे के नेतृत्व में देशी सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। 17 जुलाई को कानपुर (Kanpur) अंग्रेजों के कब्जे में दोबारा आ गया। 20 जुलाई को ब्रिगेडियर नील कानपुर आया और 25 जुलाई को हैवलाॅक कानपुर (Kanpur) की कमान उसे सौंप कर चला गया।
छह दिसंबर को अंग्रेजों ने नाना साहब को किया पराजित
तात्या टोपे ग्वालियर से अपनी कुछ फौज लेकर फिर कानपुर (Kanpur) पहुंच गए थे । 27 नवंबर की सुबह ही अंग्रेजों को हरा कर उन्होंने फिर कानपुर (Kanpur) पर अपना पूरा कब्जा कर लिया था। ब्रिटिश फौज फिर से किले के भीतर कैद हो गई थी। इसके बाद छह दिसंबर सन् 1857 को कमांडर इन चीफ कोलिन कैंपबेल की तात्या टोपे की फौज से मुठभेड़ हुई थी। 15 हजार सिपाही होने के बाद भी तत्या टोपे की सेना पराजित हो गई थी। नाना साहब और तात्या टोपे बिठूर चले गए और अंग्रेजों के हाथ में कानपुर (Kanpur) एक बार फिर आ गया था।
आजादी के बाद तात्या टोपे की प्रतिमा को भी लगाया गया था
अंग्रेज अफसर ने बीबीघर के नरसंहार और नाना साहब का शासन मानने के लिए पूरे शहर पर सामूहिक जुर्माना लगाया। जुर्माना की जबरन वसूली करने के बाद धनराशि से बीबीघर के कुएं पर मेमोरियल वेल बनवा दिया था। इसमें डेढ़ सौ से अधिक अंग्रेजों में महिलाओं और बच्चाें को मार कर डाला दिया गया था। यहां पत्थर के नक्काशीदार पर्दे लगे और एंजिल की प्रतिमा भी लगी थी लेकिन अब कुछ नहीं है। आजादी के बाद तात्या टोपे की प्रतिमा को भी लगाया गया था।