मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राना का 71 वर्ष की उम्र मे दिल का दौड़ा पड़ने से हुआ निधन
Digital News Guru Uttar Pradesh Desk: मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राना का रविवार (14 जनवरी) को लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे। मुनव्वर राना पिछले कई महीनों से लंबी बीमारी से जूझ रहे थे और पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। इससे पहले वह किडनी और हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
राना की बेटी सुमैया राना ने बताया कि उनके पिता का रविवार देर रात अस्पताल में निधन हो गया और उन्हें सोमवार को सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
राना के बेटे तबरेज राना ने बताया कि ”बीमारी के कारण मुनव्वर राना 14 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें पहले लखनऊ के मेदांता और फिर एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया, जहां रविवार रात करीब 11 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।” शायर के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है।
26 नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्मे राना को उर्दू साहित्य और कविता में उनके योगदान, विशेषकर उनकी ग़ज़लों के लिए व्यापक रूप से पहचाना गया। उनकी काव्य शैली अपनी सरलता के लिए उल्लेखनीय थी, क्योंकि वे फ़ारसी और अरबी से परहेज करते हुए अक्सर हिंदी और अवधी शब्दों को शामिल करते थे, जो उर्दू न जानने वाले भारतीय श्रोताओं को पसंद आते थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध गजल ‘माँ’ थी, जो पारंपरिक ग़ज़ल शैली में माँ के गुणों का जश्न मनाती थी।
अपने पूरे करियर के दौरान, राना को कई पुरस्कार मिले, जिनमें उनकी मशहूर किताब ‘शाहदाबा’ के लिए 2014 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है। हालाँकि, देश में बढ़ती नफरत और असहिष्णुता की वजह से उन्होंने लगभग एक साल बाद पुरस्कार लौटा दिया था।
राना ने अपना अधिकांश जीवन कोलकाता में बिताया और भारत और विदेशों दोनों में मुशायरों में उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति थी। कवि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम में भी सक्रिय थे। उनकी बेटी सुमैया अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्य हैं। राना अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहते रहे हैं।
71 वर्षीय शायर को तालिबान का पक्ष लेने और उसकी तुलना महर्षि वाल्मिकी से करने के साथ-साथ सैमुअल पैटी की हत्या का समर्थन करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था, जो 2020 में पेरिस में पैगंबर मोहम्मद के बारे में विवाद के कारण मारा गया था। वो शाहीनबाग आंदोलन के मंच पर भी पहुंचे थे।