Friday, November 29, 2024

महान शख्सियत: महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय, राहुल सांकृत्यायन को था घुमक्कड़ी का काफी शौक

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महान शख्सियत: महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय, राहुल सांकृत्यायन को था घुमक्कड़ी का काफी शौक

भारतीय डाक-तार विभाग की ओर से राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में साल 1993 को उनकी जन्मशती के अवसर पर सौ पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया था । इसके साथ ही पटना में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संस्थान की स्थापना भी करी गई थी ।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य की अद्वितीय विभूति हैं। राहुलजी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा नामक ग्राम में हुआ था। राहुल के बचपन का नाम केदारनाथ रखा गया था। इनका सांकृत्य गोत्र होने के कारण वे सांकृत्यायन कहलाए जाते थे । बौद्ध धर्म में आस्था रखने के कारण इन्होंने अपना नाम बदल कर राहुल रख लिया था और फिर ये राहुल सांकृत्यायन नाम से ही विख्यात हुए थे। रानी की सराय और निजामाबाद में अनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई थी। उन्होंने 1907 में उर्दू मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करी थी। उसके बाद उन्होंने कभी विधिवत शिक्षा ग्रहण नहीं की। अपने घूमने के अनुभव के आधार पर ही उन्होंने साहित्य का सृजन किया।

’राहुल को साहित्य रचने की प्रेरणा, और पालि और संस्कृत के अध्ययन से ही प्राप्त हुई थी। राहुल ने तिब्बत, श्रीलंका, रूस, जापान, चीन, आदि देशों की यात्रा की और बौद्ध साहित्य का गहन अध्ययन भी किया था । उन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, यात्रावृत्त, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, साहित्यालोचन, राजनीति और इतिहास आदि विषयों पर लगभग डेढ़ सौ ग्रंथों की रचना करी थी ।

विवाह और संन्यास

राहुल जी का विवाह बचपन में ही कर दिया गया। इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया। अपनी जिज्ञासु और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के चलते घर-बार त्याग कर साधु वेषधारी संन्यासी से लेकर वेदांती, आर्यसमाजी, किसान नेता और बौद्ध भिक्षु से लेकर साम्यवादी चिंतक तक का लंबा सफर तय किया। 1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए। राहुल कि अद्भुत अनुपम ज्ञान भंडार को देख कर काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित की उपाधि दे डाली थी ।

घुमक्कड़ी का शौक

राहुल सांकृत्यायन सदा घुमक्कड़ रहे। 1929 से उनकी विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर इसका अंत उनके जीवन के साथ ही हुआ। ज्ञानार्जन के उद्देश्य से प्रेरित उनकी इन यात्राओं में श्रीलंका, तिब्बत, जापान और रूस की यात्राएं विशेष उल्लेखनीय हैं। वे चार बार तिब्बत पहुंचे। वहां लंबे समय तक रहे और भारत की उस विरासत का उद्धार किया था ।

अध्ययन

अनुसंधान के साथ वे वहां से प्रभूत सामग्री लेकर लौटे, जिसके कारण हिंदी भाषा एवं साहित्य की इतिहास संबंधी कई पूर्व निर्धारित मान्यताओं और निष्कर्षों में परिवर्तन हुआ। इससे शोध एवं अध्ययन के नए क्षितिज खुले।

सम्मान और पुरस्कार

राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से साल 1993 में उनकी जन्मशती के अवसर पर सौ पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी कर दिया गया था। पटना में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संस्थान की स्थापना भी करी गई थी। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गांव में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संग्रहालय की स्थापना की गई है, जहां उनका जन्म हुआ था। उन्हें 1958 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा 1963 में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया था।


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