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Adi Kailash yatra :धारचूला से आदि कैलाश की पूरी तीर्थ यात्रा, जानिए तीर्थ स्थल की गाइड लाइन!
आदि कैलाश (Adi Kailash) उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है, यूं तो इस पूरे विश्व में भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रमुख माना जानें वाला स्थान कैलाश पर्वत माना जाता है। यह पर्वत तिब्बत में स्थित है। इस पर्वत की यात्रा अत्यधिक कठिन मानी जाती है, तथा इस पर्वत मे जाना आम भारतीयों के लिए सरल चीज नहीं होती है। मगर कैलाश पर्वत के रास्ते पर ही भारत की सीमा के भीतर ही एक और कैलाश पर्वत स्थित है , जिसे छोटा कैलाश या आदि कैलाश (Adi Kailash) भी कहा जाता हैं।
आदि कैलाश (Adi Kailash) पर्वत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है यहां जाने के लिए भी लोगों को पहले कई किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी, परन्तु अब उस रास्ते मे सड़क बन जाने के कारण यात्रा में काफी सरलता हो गई है।
यहां जाने के लिए आपको पहले हल्द्वानी, काठगोदाम या टनकपुर पहुंचना पड़ेगा। इन तीनों ही स्थानों से पिथौरागढ़ व धारचूला के लिए बसें व शेयर्ड टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। हल्द्वानी से धारचूला 280 किमी है, जबकि टनकपुर से 240 किमी है। टनकपुर वाला रास्ता छोटा होने के साथ-साथ बेहतर है, चौड़ा है और इससे काफी कम समय में धारचूला पहुंच जाते हैं।
एक सीमावर्ती क्षेत्र है आदि कैलाश (Adi Kailash):
आदि कैलाश (Adi Kailash) एक सीमावर्ती क्षेत्र है और उसके साथ ही ये अत्यधिक ऊंचाई पर भी स्थित है। इसलिए यहां जाने के लिए आप सभी लोगों को शारीरिक रूप से फिट भी रहना जरूरी होता है। इसके लिए धारचूला मे आप सभी कि मेडिकल जांच भी होती है। मेडिकल जांच और पुलिस वेरीफिकेशन के बाद ही आपको आदि कैलाश जाने की अनुमति मिलती है।
धारचूला में अनुमति प्राप्त करने के लिए कम से कम आधा दिन तो लग ही जाता है,कई बार पूरा दिन भी लग जाता है। आगे रास्ते में कई स्थानों पर यह परमिट चेक किया जाता है। धारचूला में मध्यम बजट में बहुत सारे होटल उपलब्ध हैं। धारचूला में काली नदी के दूसरी तरफ नेपाल का दार्चुला कस्बा है। अगर आपके पास समय हो तो आप काली नदी पार करके नेपाल भी घूमने जा सकते हैं।
3200 मीटर की ऊंचाई पर है आदि कैलाश (Adi Kailash):
धारचूला से आदि कैलाश (Adi Kailash) जाने के लिए आप सभी को लोकल टैक्सियां भी मिल जाती हैं। चूंकि आगे रास्ता अत्यधिक खराब होता चला जाता है, इसलिए इन लोकल टैक्सियों से ही जाना ठीक ही रहता है। धारचूला से 70 किमी दूर गुंजी है, लेकिन रास्ता बहुत ज्यादा खराब होने के कारण उसमे 5 से 6 घंटे का समय लग जाता हैं। गुंजी पहुंचकर ऐसा लगता है, जैसे मानो हम लोग लद्दाख पहुंच गए हों।
यहां आकर कई बार माउंटेन सिकनेस भी हो सकती है। अगर आपको माउंटेन सिकनेस हो या फिरया ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही हो और उसके साथ ही, उल्टी जैसा लग रहा हो, और चक्कर आ रहे हों तो यही सुझाव दिया जाता है कि आप गुंजी से आगे बिल्कुल भी मत जाईएगा। गुंजी और इससे लगते सभी गांवों में होमस्टे की सुविधा आप को आसानी से मिल जाती है। ये होमस्टे एकदम बेसिक होते हैं, लेकिन यहां आपको गद्दे-कंबल भी मिल जाते हैं, अच्छा भोजन भी मिल जाता है और आगे के लिए मार्गदर्शन मिल जाता है।
गुंजी से ही आप सभी को लगभग 25 किमी दूर जाकर जोलिंगकोंग नामक एक स्थान आयेगा जोलिंगकोंग ही वह जगह है, जहां से आदि कैलाश के आप सभी को भव्य दर्शन प्राप्त हो जाते है। यहां आकर सड़क पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। इस जगह पर ऑक्सीजन की कमी खूब महसूस होती है। आदि कैलाश (Adi Kailash) पर्वत पर जाने की अनुमति किसी को नहीं होती और वहां जाना आम लोगों के लिए संभव भी नहीं हो पाता है।
जोलिंगकोंग से पार्वती सरोवर सिर्फ 2 किमी ही दूर है। यह काफी बड़ी और सुंदर झील मानी है। मई-जून में भी आप लोगों को यहां खूब बर्फ देखने को मिल जाएगीl। पार्वती सरोवर के किनारे ही भगवान आदि कैलाश का मंदिर बना हुआ है। गौरी कुंड झील भी जोलिंगकोंग से दो ढाई किमी दूर है। यहां जाने के लि आपको पैदल ट्रैक करना पड़ेगा।
ओम पर्वत और काली मंदिर:
गुंजी और नाभिढांग के बीच में एक स्थान आता है जिसका नाम है कालापानी । यहां पर ही एक काली माता का खूब सुंदर सा मन्दिर भी बना हुआ है और यहीं से एक जलधारा भी निकलती रहती है। ऐसा कहा जाता है की यही जलधारा काली नदी का उद्गम है। यही काली नदी आगे टनकपुर तक भारत और नेपाल की सीमा को बनाती है।
यात्रा पर कब जाएं?
आदि कैलाश (Adi Kailash) जाने के सभी रास्ते मई में खुल जाते है। मानसून में भी ये रास्ता खुला रहता है, लेकिन अत्यधिक बारिश और भूस्खलन के कारण यहाँ जाना सुरक्षित नहीं होता है। फिर मानसून के पश्चात सितंबर से नवंबर तक यहाँ जाने लायक मौसम बन जाता है। यदि मौसम विभाग ज्यादा बारिश की चेतावनी देता है, तो यात्रा पर धारचूला के पास ही रोक लगा दी जाती है।YOU MAY ALSO READ :- लोगों को क्यों नहीं मिल पा रही हेल्दी नींद, नींद की कमी बन रही बीमारी का कारण !