Sunday, November 24, 2024

एक ऐसी मिठाई जिसमें छुपा है सैकड़ो साल पुराना जायका, इस मिठाई को बनाने में लगता है मैथ्स का फार्मूला !

Digital News Guru Rajasthan Desk:

एक ऐसी मिठाई जिसमें छुपा है सैकड़ो साल पुराना जायका !:

राजस्थान में हर पर्व-त्योहार के साथ अलग-अलग व्यंजनों और मिठाई  की भी परंपरा है। जैसे तीज-गणगौर पर पूरे राजस्थान में घेवर मिठाई बनाए जाते हैं, और इसे  बेटियों के घर शगुन के तौर पर भेजे जाते हैं।ऐसे ही प्रसिद्ध मिठाई है सांभर की फीणी, जो खासतौर से मकर संक्रांति के मौके पर बनाई जाती है। जयपुर से लगभग 80 किमी दूर सांभर की पहचान केवल नमक तथा खारे पानी की झील से नहीं बल्कि इस वाली मिठाई से भी है।

सांभर की फीणी सैकड़ों साल पुराना जायका है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शादी में शाही भोजन के दौरान मेहमानों को यही मिठाई परोसी गई थी। इसे बनाने में मैथ्स का एक फॉर्मूला भी लगता है, तभी जाकर एक फीणी में 1296 महीन तार बनते हैं।

पतली-पतली तारों जैसी बनने वाली ये फीणी एक खास क्लाइमेट में हीं तैयार होती है। तो चलिए मकर संक्रांति स्पेशल में इस बार आपको भी लेकर चलते हैं सांभर...

100-150 साल पुरानी दुकानें :

 

सांभर कस्बा आज भी पुराने तरीके से बसा हुआ है। यहां 8वीं शताब्दी में स्थापित प्रसिद्ध शाकंभरी माता मंदिर है। बाजार की कई दुकानें तो 100-150 साल से भी पुरानी हैं, जहां बनने वाली फीणी का स्वाद पूरे राजस्थान में चखा जाता है।

सांभर कस्बे में प्रवेश करते ही आपको पृथ्वीराज सर्किल आता है। यहीं से आपको फीणी की सौंधी खुशबू आनी शुरू हो जाएगी। गोल बाजार और कटला बाजार में 50 से 60 दुकानें ऐसी हैं, जहां फीणी मिलती है। लेकिन कुछ ही दुकानों पर पारंपरिक तरीके से देसी घी में बनी फीणी मिलती है। कटला बाजार में कई दुकानें फीणी के लिए प्रसिद्ध हैं।

तहसील के सामने 100 साल से भी अधिक पुरानी शर्मा मिष्ठान भंडार के ओनर सुरेश चंद शर्मा ने बताया कि सांभर कस्बा एक जमाने में जयपुर और जोधपुर राजघराने की राजधानी हुआ करती थी। इसे पृथ्वीराज चौहान ने बसाया था। इसी कारण सांभर को पृथ्वीराज नगर भी कहा जाता है।

सुरेश चंद शर्मा की उम्र 75 साल है। उन्होंने बताया कि यह दुकान कितनी पुरानी है, यह बता पाना मुश्किल है। मैंने मेरे पिताजी को इस दुकान पर काम करते देखा। तब भी हमारी दुकान आज जैसी ही दिखती थी। मैंने भी इसे बनाना मेरे पिताजी से सीखा था।

 

सबसे पतली तारों वाली है सांभर की ” फीणी ” :

फीणी एक तरह से मैदा में तैयार पतली सेवइयों जैसी दिखती है। ये धागे जितनी महीन होती है, जिसका लच्छा बनाकर तेल/घी में डीप फ्राई कर तैयार किया जाता है। लच्छे के तार जितने महीन होंगे उतना ही ये जायकेदार बनती है।

यूं तो राजस्थान के कई जगहों पर फीणी बनती है। लेकिन सांभर जैसा स्वाद कहीं और नहीं आता। हलवाई सुरेशचंद बताते हैं कि इस मिठाई को मां शाकंभरी का आशीर्वाद प्राप्त है। इस कस्बे के पास में ही खारे पानी की झील है, जिसके चलते यहां की क्लाइमेट खास बन जाती है। फीणी में इससे सुनहरा रंग आता है ये तार कितना पतला हो पाता है।

सांभर की एक फीणी में होते हैं 1296 तार :

सांभर की फीणी धागे जैसी महीन बनावट के चलते काफी फेमस है। एक फीणी 20 ग्राम की होती है। इसे बनाने में तैयार मैदे को 6 फेटे (लच्छे) लगाए जाते हैं। इसे 6-6 के राउंड में 216 फेटे लगाए जाते हैं, जिससे एक फीणी में 1296 तार बनते हैं। गणित का यह फॉर्मूला पुराने समय से चला आ रहा है।

यह गणित केवल सांभर की ही फीणी में मिलेगा। दूसरी जगह पर बनने वाली फीणी के तार काफी मोटे होते हैं। इतनी बारीक तार सांभर के इस वातावरण में ही बन पाते हैं।

3 दिन लगते हैं बनाने में, केवल रात में होती है तैयार :

कारीगर सोहनलाल स्वामी बताते हैं कि फीणी कोई चुटकियों में तैयार होने वाला जायका नहीं, इसे बनाने की प्रोसेस तीन दिन लंबी होती है। ये दिन मे नहीं रात में ही तैयार हो पाते हैं। पूरा काम हाथ से होता है।

पहले दिन :

फीणी बनाने के लिए शाम 4 बजे से तैयारी करते हैं। फीणी बनाने के लिए मैदा से दोगुना घी लेते हैं। घी और मैदा को रात के समय खुले आसमान के नीचे मिलाते हैं। इसे मिक्स करने में कई घंटे लगते हैं। इसे पूरे 24 घंटे के लिए जमने के लिए छोड़ दिया जाता है।

 

दूसरे दिन :

अगले दिन इसके लोए तैयार करते हैं। उसे खींचकर लंबा करते जाते हैं और माला की शेप में बना लेते हैं। एक माला में 216 फेटे लगाते हैं, जिससे उसमें तार बन जाते हैं। इस तरह से छह लोए जोड़कर 1296 तार की एक माला बन जाती है।

तीसरे दिन :

 

तैयार लोई को तीसरे दिन लकड़ी की भट्टी पर गरम घी की कड़ाही में डालकर सेकते हैं। तीसरे दिन यह फीणी काम में ली जाती है। इसे फिका और मीठा दोनों ले सकते हैं।

घुटने से करते हैं मैदा तैयार:

कारीगर सोहनलाल स्वामी ने बताया कि फीणी बनाने के लिए मैदा लगाने में घुटने का इस्तेमाल करना पड़ता है। क्योंकि हाथ से इसे मिला पाना मुश्किल होता है।

अन्न को पैर नहीं लगा सकते इसलिए मैदा के ऊपर पन्नी बिछाकर इसे घुटने से रौंदते हैं, ताकि शरीर के बाल उसमें नहीं चिपके। अब कई मशीनें भी आ चुकी हैं,लेकिन मशीन से मैदा सही से मिल नहीं पाता। इसलिए पुराने तरीके से तैयार फीणी ही सर्वश्रेष्ठ होती है, जो यहां की पहचान है।

फीणी के लिए 10 किमी रेडियस का वातावरण ही सही जयपुरिया मिष्ठान भंडार के मालिक राजेश शर्मा ने बताया कि वे मूल रूप से जयपुर के रहने वाले हैं। दादाजी पहले असम रहते थे। लगभग 80 साल दादाजी हमारे रिश्तेदार के पास सांभर घूमने आए। फिर यहीं रहने का मन बना लिया और फीणी का बिजनेस शुरू किया।

यह फीणी सांभर झील के 10 किमी के रेडियस में ही बनाई जा सकती है। क्योंकि यहां का क्लाइमेट ही फीणी को अलग पहचान देता है। खारे पानी की झील से उठने वाली हवा से ही फीणी का आटा सेट होता है। इसके साथ ही रात में हवा में मौजूद नमी के कारण ही फीणी का स्वाद बढ़ता है।

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