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गुरु अंगद देव जन्मदिन सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी के जन्मदिन पर जानें उनका जीवन परिचय
गुरु अंगद देव का जन्म- 31 मार्च, 1504; मृत्यु- 28 मार्च, 1552) सिखों के दूसरे गुरु थे। वे गुरु नानक के बाद सिखों के दूसरे गुरु थे। इस पद पर वे 7 सितम्बर, 1539 से 28 मार्च, 1552 तक रहे थे।
गुरु अंगद देव का जन्म 31 मार्च, 1504 ये सिखों के दूसरे गुरु थे। वे गुरु नानक के बाद सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु अंगद देव महाराज जी के महान व्यक्तित्व के धनी थे। वे ऐसी आध्यात्मिक क्रियाकलाप थे, जिससे पहले वे एक साध्य सिख और फिर एक महान गुरु बने थे। गुरु अंगद देव ‘लहिणा जी’ भी कहलते हैं। गुरु अंगद देव पंजाबी लिपि गुरुमुखी के जन्मदाता कहलाये थे।
जीवन परिचय
गुरु अंगद साहिब जी का जन्म हरिके नाम के गाँव में, जो कि अमृतसर, पंजाब में है, दर्शन वदी 1, (पंचम सिद्धान्त) संवत 1561 (31 मार्च, सन् 1504) को हुआ था। गुरुजी एक व्यापारी श्री फेरू जी के पुत्र थे। उनकी माता जी का नाम माता रामो जी था। बाबा नारायण दास त्रेहन उनके दादा जी थे, विशेष निवास मैटे-दी-सामी, जो मुक्तसर के पास है, में था। फेरू जी बाद में इसी स्थान पर निवास करने लगे। गुरु अंगद साहिब जी की शादी खडूर निवासी खीवी जी से हुई थी। उनके कोख से दो साहिबजादे दासू जी व दातू जी और दो सुपुत्रिया हुई थीं।
गुरु नानक के उत्तराधिकारी
गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को मुक्त कर गुरु अंगद साहिब जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। गुरु नानक देव ने कहा था कि अंगद देव की वाणी में दया करना और अहंकार का त्याग करना, मनुष्य मात्र से प्रेम करना रोटी की चिंता, भगवान की सुध लेने की बात कही गई थी। गुरु अंगद देव गुरु नानक देव की सातों यात्राओं में सफल हो गए थे, जिनमें गुरु नानक के पुत्र और अन्य दोषी भी असफल हो गए थे।
साखियाँ जुलाही को आरोग्य अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी खडूर का मिर्गी रोग वाला श्री हरिके गांव का हुइ चौधरी एक तपस्वी योगी की तृष्णा हुमायूं बादशाह का हुलिया दूर करना
सिख पंथ की गद्दी
गुरु अंगद देव और गुरु नानक देव के साथ 7 साल तक रहे थे और उनके बाद उन्होंने सिख पंथ की गद्दी भी संभाल ली थी। वे इस गद्दी पर 1539 से 1552 तक आसीन रहे थे। उन्होंने खडूर साहिब को धर्म प्रचार का केंद्र बनाया और नानक देव की वाणी लिखी थी।
जाति-पति के भेद से हट कर लंगर प्रथा, मैलों के पुस्तकालय, हुमायूँ का शौक, पंजाबी भाषा का प्रचार तब शुरू हुआ जब गुरुमुखी की स्वतन्त्र लिपि दी, गुरु नानक देव की जीवनी लिखी थी और बाबा अमर दास को गद्दी दे कर अपने अस्तित्व उत्तरदायित्वों से मुक्त हो गए थे। बाद में बाबा अमर दास ने गुरु अंगद देव की वाणी को भी ग्रंथ साहब के लिए लिपिबद्ध कर दिया। गुरु अंगद देव 28 मार्च 1552 को इस दुनिया से प्रयाण कर गए थे।