Sunday, September 22, 2024

अद्भुत: ढाई बीघा की बंजर ज़मीन में तैयार कर डाले लगभग 20 हजार किलो अंगूर के पौधे !

अद्भुत: ढाई बीघा की बंजर ज़मीन में तैयार कर डाले लगभग 20 हजार किलो अंगूर के पौधे !

Digital News Guru Rajasthan Desk:  विजय कुमार कई शहरों में बिजनेस और नौकरी में हाथ आजमाने के बाद वापस गांव लौटे बंजर जमीन पर अंगूर उगाकर सबको चौंका दिया। दोस्त ने शर्त लगाई थी कि इस जमीन पर अंगूर नहीं हो सकते, लेकिन उसने अपने दोस्त को गलत साबित कर दिया। करीब दो साल की मेहनत के बाद पहली फसल पूरी तरह से तैयार है।

पाली जिले के बूसी गांव में तैयार अंगूर का यह बगीचा लोगों के बीच चर्चा में है। बंजर जमीन पर अंगूर की बेलें स्थानीय किसानों के साथ बड़े मंडी व्यापारियों को भी अट्रैक्ट कर रही हैं। वहीं, चर्चा है किसान विजय कुमार चौधरी की , जिन्होंने अपनी मेहनत, मॉर्डन टेक्नीक, बिजनेस स्किल्स से यह संभव किया।

काम की तलाश में पहुंचे थे मुंबई

1993 में विजय के पिता मगाराम का निधन हुआ तो वे काम की तलाश में मुंबई पहुंचे। यहां अलग-अलग नौकरी करने और कुछ छोटा बिजनेस करने के बाद वे पुणे शिफ्ट हो गए। यहां उन्होंने मिठाई की दुकान खोली। एक दिन अपने पैतृक गांव बूसी (पाली, राजस्थान) की याद आई तो दुकान बेटे को सौंपकर विजय अपने गांव लौट आए। गांव में विजय की 100 बीघा जमीन बंजर थी।

उन्होंने अंगूर उगाने का विचार किया। लेकिन एक दोस्त ने कहा कि इस जमीन पर अंगूर नहीं हो सकते। दोनों दोस्तों में शर्त लग गई और विजय ने यहां अंगूर उगाने की ठान ली। इसके बाद विजय ने अपने गांव में कैप्सूल अंगूर की 1 हजार बेलें लगाईं। कैप्लूस क्वालिटी का अंगूर मीठा, रसदार और कैप्सूल की तरह लंबा होता है। मार्केट में इसकी कीमत और डिमांड भी अच्छी रहती है। अब फसल पककर तैयार है। फरवरी के आखिर से पैकिंग और सप्लाई का काम शुरू हो जाएगा।

ऐसे हुई अंगूर की खेती की शुरुआत

किसान ने बताया कि मैंने 2019-2020 में महाराष्ट्र के नासिक, पंडलरपुर, जूनण गांव में अंगूर के कई बगीचे देखे। वहां की हवा मिट्टी पानी और मौसम का रिसर्च किया। बागवानी करने वाले किसानों से टिप्स लिए। फिर 2022 में नासिक के आडगांव (पंचवटी) के रहने वाले अपने दोस्त के पास गया। वे नासिक में अंगूर की खेती करते हैं।

वहां उसने सोनाका (कैप्सूल अंगूर) की प्रजाति के 1000 पौधे दिला दिए। वर्ष 2022 में दोस्त की गाइडेंस और सलाह से बूसी गांव में जमीन को तैयार कराया और ढाई बीघा जमीन पर अंगूर की बेलें लगा दीं।

अब अंगूर की फसल तैयार है। बेलों पर अंगूर के गुच्छे लगे हैं। पहली खेप तैयार होने को है। पहली ही बार में 15 से 20 हजार किलो अंगूर की फसल मिलेगी। अब साथी किसान भी हैरान हैं और तारीफ कर रहे हैं। कहते हैं कि जो हमने सोचा नहीं, वह तुमने कर दिखाया।

शुरुआत में 6 लाख का खर्च

चौधरी ने बताया कि अंगूर की फसल पाने के लिए 5 से 6 लाख रुपए खर्च करने पड़े। नासिक से अंगूर का एक पौधा 150 रुपए में खरीदा थे। पौधों को नासिक से पाली लाने में 25 से 30 हजार रुपए परिवहन खर्च आया। इसके बाद खेतों में अंगूर के पौधे लगवाने में 50 से 55 हजार रुपए खर्च हो गए।

अंगूर की बेलों को चढ़ने के लिए खास स्ट्रक्चर की जरूरत होती है। इसलिए ढाई बीघा में इस तरह का स्ट्रक्चर तैयार करने में 4 लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए। इसके अलावा बेलों की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम लगवाया, उसका खर्च अलग से आया। अंगूर के बगीचे की देखभाल के लिए 2 कर्मचारी भी रखे। इस तरह शुरुआत में अंगूर की खेती में करीब-करीब 6 लाख रुपए खर्च हो गए।

पहली बार में तैयार 20 हजार किलो अंगूर

किसान विजयराज ने बताया- अंगूर की बेल में 2 साल में फल आने लगते हैं। 2022 में पौधे लगाने के बाद पहली फसल तैयार है। 15 फरवरी के बाद बेलों से अंगूर की तुड़ाई शुरू हो जाएगी। ढाई बीघा के बगीचे में लगभग 20 हजार किलो अंगूर तैयार है। साल दर साल इसका उत्पादन बढ़ेगा।

यह कंकरीली, रेतीली, चिकनी, उथली और गहरी मिट्टी में खूब पनपता है। लेकिन रेतीली दोमट मिट्टी जहां पानी का अच्छा निकास हो वहां अगूर की खेती अच्छी हो सकती है। चिकनी मिट्टी में अंगूर का पनपना मुश्किल है, लवण युक्त मिट्टी में भी यह अंगूर जड़ें जमा लेता है। बूसी गांव में बलुई दोमट मिट्टी है। जैविक खाद का अच्छा ट्रीटमेंट मिला तो अंगूर पनप गए।

सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम, बढ़ने के लिए पंडाल विधि

अंगूर में नवंबर-दिसंबर में सिंचाई की जरूरत नहीं होती। मार्च से मई तक सिंचाई की जाती है। फल पकने लगे तो पानी बंद कर देना चाहिए। फल तुड़ाई के बाद भी एक सिंचाई जरूरी है। अंगूर के पकते वक्त बादल या बारिश नहीं होनी चाहिए। इससे दाना फट जाता है और गुणवत्ता खराब हो जाती है।

अंगूर की बेल को साधने के लिए विजय ने पंडाल पद्धति को अपनाया, इसके लिए ढाई बीघा में लोहे और बांस के पोल के सहारे स्ट्रक्चर तैयार कर दिया, जिन्हें आपस में तारों के जाल से अटैच कर दिया।

विजय चौधरी ने बताया कि अंगूर की फसल पाने के लिए दो फीट गहरे गड्ढे खुदवाए। इनमें खुद का तैयार किया खाद और गोबर डालकर 15 दिन के लिए छोड़ दिया। मिट्टी का ट्रीटमेंट किया और पौधों की जड़ में ड्रिप से पानी पहुंचाने का सिस्टम डवलप किया। इन अंगर की बेलों से उन्हें 15 से 20 साल तक प्रोडक्शन
मिलेगा।

खाद भी खुद बनाते हैं

विजय कुमार जैविक खाद का उपयोग करते हैं। ये खाद वे खुद तैयार करते हैं। बागों में यूरिया आदि का उपयोग नहीं करते। खाद तैयार करने के लिए 10 लीटर गौ मूत्र, 10 किलो गोबर, 2 किलो सड़ा हुआ गुड़, 1 किलो खेजड़ी की मिट्टी, डेढ़ किलो बेसन आदि का इस्तेमाल करते हैं। इसे 15 दिन के लिए छोड़ देते हैं। फिर उसमें 200 लीटर पानी डालते हैं। यह तैयार खाद बेर के झाड़ की जड़ में डालते।

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