स्मार्ट वॉच या फिटनेस बैंड से चेक करे मेटाबॉलिज्म: क्या होता हैं मेटाबॉलिज्म?
Digital News Guru Health Desk:आज के युवा आकर्षक दिखने के साथ-साथ सेहत पर निगरानी के लिए स्मार्ट वियरेबल गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। वो स्मार्ट वॉच, फिटनेस बैंड, ट्रैकिंग डिवाइस जैसे वियरेबल गैजेट्स पहन रहे हैं।
लोग हजारों रूपए के इन स्मार्ट गैजेट्स को हार्ट-बीट्स या बीपी काउंट करने के लिए पहनते हैं, लेकिन इनका कार्य केवल यहीं तक सीमित नहीं होता है। ये कई तरह की बीमारियों के बारे में जानकारी भी दे सकते हैं। जिससे कोई भी समय रहते सचेत हो सकता है।
अमेरिका में सर्च इंजन गूगल ने इसी को लेकर एक हेल्थ स्टडी की है
WEAR-ME नाम की इस स्टडी में फिटनेस बैंड या स्मार्ट वॉच पहनने वाले 21 से 80 साल के 1500 लोगों को शामिल किया गया। स्टडी में पाया गया कि स्मार्ट वॉच, फिटनेस बैंड, ट्रैकिंग डिवाइस जैसे स्मार्ट वियरेबल गैजेट्स मेटाबॉलिज्म रेट में होने वाले बदलावों को ट्रैक कर सकते हैं। जिसकी वजह से कई गंभीर बीमारियों का पता पहले ही लग जाता है।
आज हम बात करेंगे स्मार्ट गैजेट्स या वियरेबल डिवाइस मेटाबॉलिक रेट का पता कैसे लगा पाते हैं और इसके क्या फायदे हैं।
क्या होता है मेटाबॉलिज्म?
शरीर को वर्क करने के लिए एनर्जी की जरूरत होती है। जिस के लिए हम सभी खाना खाते हैं। इस खाने को पचाकर एनर्जी में कन्वर्ट करने की प्रक्रिया ही ‘मेटाबॉलिज्म‘ है। यह कभी रुकती या बंद नहीं होती हैं।
• शरीर के सभी अंगों को किसी भी काम के लिए एनर्जी मेटाबॉलिज्म ही देता है।
• यह उम्र और शारीरिक क्षमता के अनुसार, हर किसी का अलग-अलग होता है। 40 की उम्र के बाद मेटाबॉलिज्म कम होता जाता है।
- बॉडी फंक्शन के लिए कम मात्रा में कैलोरी की आवश्यकता होती है। वह मेटाबॉलिक रेट कहलाता हैं।
बॉडी का मेटाबॉलिज्म कैसे कर रहा काम, सेंसर्स बताते हैं-
स्मार्ट वॉच, फिटनेस बैंड, ट्रैकिंग डिवाइस जैसे सभी वियरेबल गैजेट्स ब्लड प्रेशर मापने के लिए सेंसर और एल्गोरिदम का प्रयोग करते हैं। इन डिवाइस में सेंसर्स कलाई की आर्टरीज में ब्लड फ्लो में होने वाले बदलाव का पता लगाते हैं। ब्लड फ्लो में कमी या इजाफा, दोनों ही स्थितियों में ये शरीर के लिए ठीक नहीं है। ये बताता है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ चल रही है। अब सावधान हो जाना चाहिए या डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए।
ये स्मार्ट गैजेट्स एक्सरसाइज के टाइम पसीने में पाए जाने वाले ग्लूकोज और लैक्टेट को भी ट्रैक करते हैं, जो बताने में हेल्प करता है कि आपका ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है। अगर बॉडी लैक्टेट या ग्लूकोज ज्यादा सोख रही है तो इसका मतलब है कि लिवर और मसल्स को यह नुकसान पहुंचा सकता है।
मेटाबॉलिक रेट बिगड़ने के नुकसान
एक फिजिशियन बताते हैं कि पाचन तंत्र में मौजूद कुछ केमिकल्स और एंजाइम्स हमारे खाने को ग्लूकोज में बदलने का काम करते हैं। शरीर इससे मिलने वाली एनर्जी का या तो तुरंत उपयोग कर लेता है, या फिर फैट के रूप में जमा कर लेता है। ऐसे में मेटाबॉलिज्म के बिगड़ने पर शरीर में कई तरह की बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।
मेटाबॉलिज्म दो तरह के होते हैं-
1. स्लो मेटाबॉलिज्म: खाने में प्रोटीन या कैलोरी की मात्रा कम होने से मेटाबॉलिज्म स्लो हो जाता है, जिससे शरीर सुस्त पड़ने लगता है। इससे ब्लड प्रेशर कम, हाई कोलेस्ट्रॉल, जोड़ों में दर्द या कमजोरी महसूस होती है। साथ ही डिप्रेशन में जाने का खतरा भी रहता है।
2. हाई मेटाबॉलिज्म: हाई मेटाबॉलिक गगर्म मेडिसिन तथा कुछ खास मेडिसिन ट, ब्रेन फंक्शन में बदलाव तथा थायराइड के कारण हो सकता है।
मेटाबॉलिक रेट बिगड़ने से यह हो सकती हैं कई बीमारियां
- डायबिटीज
- मोटापा
- थायराइड
- हाई ब्लड प्रेशर
- किडनी प्रॉब्लम्स
- यूरिक एसिड बढ़ना
मेटाबॉलिज्म की निगरानी जरूरी क्यों है?
आप सभी के शरीर में ग्लूकोज एनर्जी का मुख्य स्रोत है। यदि समय पर मेटाबॉलिज्म की जांच न की जाए तो यह हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड शुगर लेवल, अनहेल्दी कोलेस्ट्रॉल लेवल या बेली फैट जैसी कई समस्याओं को लेकर आता है। वहीं, अगर इनमें से कोई दो बीमारी एक साथ हो जाएं तो यह गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है।
मेटाबॉलिज्म का खाने से है कनेक्शन
एक डायटीशियन का कहना हैं कि सभी लोगो के बॉडी मेटाबॉलिज्म अलग अलग होता हैं।
यह शरीर की पचाने की क्षमता पर निर्भर करता है। ऐसे में शाम के समय हमेशा कम खाना चाहिए और आसानी से पचने वाला भोजन ही करना चाहिए। जो लोग रात में उड़द की दाल, पनीर या नॉनवेज खाते हैं, उन्हें सुबह शरीर में भारीपन लग सकता है। हफ्ते में 4-5 दिन अगर ऐसा खाना खाते हैं तो धीरे-धीरे मेटाबॉलिज्म कम होता जाता है।
बॉडी का मेटाबॉलिज्म सही बनाए रखने के लिए इन पांच बातों को गौर से देखें ताकि आप हेल्दी और फिट रहें।
• पिज्जा, बर्गर, नूडल्स व अन्य जंक फूड कम करे।
• ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं।
• नियमित पानी जरूर पीते रहें।
• हल्की-फुल्की एक्सरसाइज रेगुलर करें।
• सोने और जागने का सही समय तय करें।