कौन थीं गौरी लंकेश, जिनके एक रिपोर्ट ने मचा दिया कोहराम और फिर खो दिए उन्होंने अपने प्राण
Digital News Guru Birthday Special : कलम चलाने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश का कसूर था कि वो लिखती थीं, बोलती थीं। लेकिन कुछ लोगों को उनका लिखना रास नहीं आया। लिहाजा कलम चलाने का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा था। 55 साल की दुबली पतली गौरी की शाम अपने ही घर में थी। जब हत्यारों ने उन पर गोलियां बरसा दी। सात गोलियां चली जिनमें से तीन गोलियां गौरी को लगी और कलम चलाने वाले हाथ कि जुंबिश खत्म हो गई।
पिता की मृत्यु के बाद पुरा कार्यभार संभाला
साल 1962 में जन्मीं गौरी लंकेश कन्नड़ पत्रकार, वह कन्नड़ साप्ताहिक टैबलॉयड ‘लंकेश पत्रिका’ के संस्थापक पी. लंकेश की बेटी थीं। उनकी बहन कविता और भाई इंद्रजीत लंकेश फिल्म और थियेटर में काम करते हैं। पत्रकारिता से जुड़ी होने के कारण गौरी की कन्नड़ और अंग्रेजी भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘संडे’ मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम करने के बाद उन्होंने बेंगलूरू में रहकर मुख्यतः कन्नड़ में पत्रकारिता करने का निर्णय किया।
साल 2000 में जब इनके पिता पी. लंकेश की मृत्यु हो गयी तो उन्होंने अपने भाई इंद्रजीत के साथ मिलकर, पिता की पत्रिका ‘लंकेश पत्रिका’ का पुरा कार्यभार संभाल लिया था। जल्द ही इस मैग्जीन से जुड़े काफी विवाद भी सामने आने लगे थे।
आखिर क्यों हुई उनकी हत्या
गौरी लंकेश की फेसबुक वाल पर पांच सितंबर 2017 को एक कार्टून पोस्ट किया था। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजा के कपड़े पहने शख्स एक ब्राहम्ण को कूड़ेदान में डालने जा रहा है। साथ में एक लाइन भी ऊपर लिखी है- स्वच्छ केरल, हैप्पी ओनम।
जिसके बाद ये कहा जाने लगा कि गौरी केरल में आरएसएस के लोगों के साथ हुई हिंसा का माखौल उड़ा रही थीं और असवंदेनशीलता बरत रही थीं और संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या पर ‘स्वच्छ केरल’ का संदेश प्रसारित कर रही थी। लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद बेंगलुरु में आधी रात को ‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी। उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई।
गौरी लंकेश और नक्सली कनेक्शन
कहा ये जाता है कि साल 2015 और 2016 में चार से अधिक बार गौरी लंकेश बस्तर के जंगलों में दिखाई दी थीं। वहां वह किनसे मिलती थी अभी इसकी पुष्ट जानकारी नहीं है। हालांकि गौरी लंकेश आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार और मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर बस्तर गई थीं। बताया जा रहा है कि गौरी लंकेश आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में नक्सलियों से मिलने के लिए हमेशा बस्तर जाती थीं। हर दौरे पर गौरी लंकेश तीन से चार दिन जंगल के भीतर ही बिताया करती थी।
इस दौरान वह स्थानीय पुलिस और सामाजिक कार्यकार्ताओं से भी दूरी बना के रखती दूर थीं आत्मसमर्पण को लेकर नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी ने कई बार गौरी लंकेश से इस बारे मे चर्चा भी करी थी। लेकिन कई नक्सली नेताओं को शक था कि गौरी लंकेश नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए उकसाती है, बल्कि पुलिस और नक्सलियों के बीच आत्मसमर्पण को लेकर एक पुरा माहौल भी तैयार करती थीं। तेलंगाना के गठन के बाद आधा दर्जन से ज्यादा नक्सलियों के आत्मसमर्पण को लेकर नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी गौरी लंकेश से नाराज चल रही थे ऐसी भी खबर थी।
गौरी लंकेश को कर्नाटक में पत्रकारिता में साहस की आवाज माना जाता था। खुलकर अपनी कलम चलाने वाली लंकेश की मौत से पत्रकारिता जगत सन्न रह गया। उनकी हत्या के विरोध में पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सभी पत्रकार सरकार पर आ गए। देशभर के पत्रकारों के जुबान पर बस यही बात थी कि गौरी लंकेश कीकी हत्या अभिव्यक्ति की आजादी पर सीधा-सीधा हमला है।
कब क्या हुआ…
- 5 सितंबर साल 2017 को गौरी लंकेश की हत्या के बाद सिद्धरमैया सरकार ने इस मामले की पूरी जानकारी के लिए उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए और एसआईटी का गठन भी किया।
- तेजतर्रार पुलिस अधिकारी अतिरिक्त पुलिस आयुक्त बीके सिंह और उपायुक्त एमएन अनुचेत को इस हत्याकांड की जांच का पुरा जिम्मा सौंपा गया था। उन्होंने नक्सल और दक्षिणपंथी हिंदुत्व वाले एंगल पर मामले की जांच की।
- फरवरी 2018 में गौरी के केस में पहला सुराग मिला था। पुलिस ने नवीन कुमार उर्फ हॉटी नामक एक बदमाश को गिरफ्तार कर लिया था। पूछताछ के बाद उसने गौरी लंकेश के हत्यारों की मदद करने की बात कुबूल कर ली थी|
- साल 2019 में कर्नाटक सरकार ने गौरी लंकेश जांच से जुड़ी एसआईटी को उम्दा जांच के लिए 25 लाख रुपए का सम्मान दिया था।
- 10 जनवरी साल 2020 को गौरी लंकेश की हत्या के एक और आरोपी ऋषिकेश देवडीकर को झारखंड से गिरफ्तार कर लिया गया था।