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कौन थे बाल गंगाधर तिलक? जानिए उनसे जुड़े कुछ रहस्य के बारे में ..
महाराष्ट्र के रत्नागिरी में बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ। 3 जुलाई साल 1908 को अंग्रेजों ने गंगाधर तिलक को क्रांतिकारियों के पक्ष में लिखने पर गिरफ्तार किया गया था। और तिलक को 6 साल की सजा भी सुनाई गई थी. जेल में रहते – रहते ही तिलक ने अपने 400 पन्नों की एक किताब गीता रहस्य भी पूरी लिख डाली थी ।
बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी पत्रकार और शिक्षक और समाज सुधारक और वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोकप्रिय नेताओं मे से एक माने जाते थे।केशव गंगाधर तिलक, जिन्हें ‘भारतीय अशांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है। वह उन नेताओं में से एक हैं जो भारत में स्वराज या स्व-शासन के लिए हमेशा खड़े हुए थे। इसी कारण महात्मा गांधी ने तिलक को ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ भी कह दिया था।
तिलक की पत्रकार बनने की यात्रा कुछ इस तरह हुई थी शुरू:
साल 1877 में बाल गंगाधर तिलक ने पुणे के दक्कन कॉलेज से गणित में अपनी ग्रेजुएशन की पढाई को पूरा किया था। उसके कानून (एलएलबी) की पढ़ाई के लिए तिलक ने अपना एम.ए. की पढाई को बीच में ही छोड़ दिया था और साल 1879 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक निजी स्कूल में गणित पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद वह पत्रकार बन गए।
जब क्रांतिकारियों के पक्ष में लेख लिखने पर हो गए थे गिरफ्तार:
30 अप्रैल साल 1908 को खुदीराम बोस के साथ मिलकर प्रफुल्ल चंद चाकी ने जज किंग्सफोर्ड को अपना निशाना बना डाला था और एक बम विस्फोट कर दिया था। अग्रेंजों ने फिर खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया था और उनपर मुकदमा भी चलाना शुरू कर दिया था ।
इस गिरफ्तारी के बाद बाल गंगाधर तिलक की जिंदगी ही बदल गई। तिलक ने उन क्रांतिकारियों के पक्ष में अपने एक अखबार ‘केसरी’ में कुछ लेख लिख दिया था। उनके इसी लेख से सभी अंग्रेजों के होश ही उड़ गए थे। 3 जुलाई साल 1908 को अंग्रेजों ने तिलक को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें इसकी 6 साल की सजा मिली। उन्हें बर्मा के मंडले जेल में रखा गया, जहां उन्होंने 400 पन्नों की किताब ‘गीता रहस्य’ लिखा।
इन दो भाषाओं में शुरू किए थे दो अखबार:
बाल गंगाधर तिलक ने एक मराठी अखबार और एक अंग्रेजी अखबार ‘मराठा दर्पण और केसरी’ की शुरुआत भी करी हुई थी । और इन दोनों ही अखबारों में तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ अपनी आवाज को उठाया हुआ था । ये अखबार लोगों द्वारा काफी पसंद भी किया जाने लगा था।
लोकमान्य तिलक की ही मदद से ही पूरे महाराष्ट्र में गणेश जी और शिवाजी का उत्सव भी मनाने लगे थे। और इन सभी त्योहारों के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ सभी ने मिलकर एक जागरुकता भी फैलायी हुई थी ।
जब बाल गंगाधर तिलक पर चला राजद्रोह का मुकदमा:
सन् 1896 और सन् 1897 के बीच महाराष्ट्र में प्लेग नामक एक महामारी फैली हुई थी और इस महामारी से निपटने के लिए एक अधिनियम सन् 1897 के प्रावधानों के खिलाफ तिलक ने एक लेख लिखा हुआ था , जिसके तुरंत बाद तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलने लगा था ।
अपने इस लेखन में तिलक ने कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड को अपना निशाना बनाया हुआ था और तिलक के इसी लेखन से प्रेरित होकर दो युवाओं ने चापेकर बंधुओं ने रैंड की हत्या कर डाली थी ब्रिटिश सरकार ने इस बार भी तिलक को हत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले की सुनवाई और सजा से उन्हें जनता का प्रिय नेता की उपाधि भी मिल चुकी थी।
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