DIGITAL NEWS GURU POLITICAL DESK :- नाना साहेब (Nana Saheb)
Nana Saheb birth anniversary : नाना साहेब को बालाजी बाजीराव के नाम से भी जानते है लोग, अंग्रेज़ो को भारत से खदेड़ने में भी रहा है इनका महत्वपूर्ण योगदान !
Nana Saheb Birth Anniversary: नाना साहेब ( Nana Saheb) का जन्म 19 मई सन् 1824 को महाराष्ट्र में बिठूर जिले के वेणुग्राम में हुआ था । उनका मूल नाम ‘धोंडूपंत’ हुआ करता था। इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के सगोत्र भाई भी थे । पेशवा ने बचपन से ही बालक नानाराव को अपना दत्तक पुत्र के रूप मे स्वीकार कर लिया था ।
इसके साथ ही उन्होंने ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का भी ध्यान रखा था । बचपन में ही उन्होंने हाथी, घोड़े की सवारी, तलवार चलाना भी सिख लिया था । इसके अलावा उन्होंने कई भाषाएँ भी सिख ली थी । सन् 1851 मे पेशवा का स्वर्गवास हो गया था ।
इसके बाद नाना साहेब ( Nana Saheb) ने ब्रिटिश सरकार के पास पेशवाई पेंशन के चालू कराने की माँग भी करी थी । लेकिन कई सारे प्रयासों के बाद भी उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया गया था । इसी कारण से उनके मन में अंग्रेज़ो के खिलाफ काफी द्वेष पैदा हो चूका था । और वह अंग्रेज़ो को भारत से भगाने केलिए राजनीतियाँ रचने लगे थे ।
नाना साहेब (Nana Saheb) ने “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लेप्स” की नीति को लागू किया था:
नाना साहेब ( Nana Saheb) अंग्रेज़ो के भारत में बढ़ते वर्चस्व के कारण काफी परेशान रहने लगे थे । लार्ड डलहौजी ने भी भारत देश के ज्यादातर हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के लिए “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लेप्स” की नीति को लागू कर दिया था ।
जिसके अंतर्गत किसी भी भारतीय शासकों के अपने दत्तक पुत्र को उनका उतराधिकारी किसी भी कीमत मे नही माना जायेगा ,और वहाँ पर अंग्रेजों का शासन मानने का आदेश भी दिया गया । इस तरह से ही ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बहुत से राज्य हडप लिए थे जिनमें झांसी,अवध और नागपुर जैसे राज्य शामिल थे ।
नाना साहेब (Nana Saheb) को अंग्रेज आठ लाख रुपये पेंशन के रूप में देते थे
नाना साहेब ( Nana Saheb) को अंग्रेज लोग आठ लाख रुपये पेंशन के रूप में देते थे लेकिन, जब उनकी मृत्यु हो गयी थी तब बाद में अंग्रेज़ो ने उनके परिवार को यह पेंशन देना पूरी तरह से बंद कर दिया था । इतना ही नहीं अंग्रेजों ने नाना साहब Nana Saheb को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी पूरी तरह से इंकार कर दिया था ।
यह बात नाना साहेब ( Nana Saheb) को बिल्कुल बर्दाश नहीं हुई थी और उसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया था । 4 जून सन् 1857 को कानपुर में सैन्य विद्रोह हुआ था । कानपुर को अंग्रेजों से जीतने के बादनाना साहेब ( Nana Saheb) ने खुदको ही कानपूर का पेशवा घोषित कर दिया था ।
नाना साहेब (Nana Saheb) ने अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा था:
सन् 1857 की क्रान्ति में कानपुर में अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा लिया गया था, यह क्रांतिकारियों का अंग्रेजों के खिलाफ लिया गया और ये सबसे बड़ा सफल विद्रोह था । लेकिन, 16 जुलाई सन् 1857 को जनरल हेवलॉक ने कानपुर को वापस कब्जे में ले लिया था ।
नाना साहेब (Nana Saheb) की 81 साल मे हो गयी थी मृत्यु :
नाना साहेब ( Nana Saheb) के मृत्यु का अभी तक भी कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है । लेकिन एक मत के अनुसार नाना साहिब की मृत्यु 81 साल मे हो गयी थी । वही अगर दूसरे मत के अनुसार अजीमउल्लाह खान की एक डायरी मिली थी जिसके अनुसार उनकी मृत्यु 102 साल की उम्र में गोमती नदी के किनारे हुई थी ।
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