Sunday, September 22, 2024

Asaram Bapu Birthday special: प्रसिद्ध भारतीय संत आशाराम बापू के जन्मदिन पर जानें बापू की कुछ अनसुनी बातें!

Asaram Bapu Birthday special: प्रसिद्ध भारतीय संत आशाराम बापू के जन्मदिन पर जानें बापू की कुछ अनसुनी बातें!

आसाराम अथवा आसाराम बापू (Asaram Bapu) एक भारतीय आत्मज्ञानी संत, कथावाचक एवं आध्यात्मिक गुरु हैं। आसाराम का वास्तविक नाम ‘आसुमल थाऊमल सिरूमलानी’ है। आसाराम सामान्यतः आपराधिक मामलों में उनके ख़िलाफ़ दायर याचिकाएँ, उनके आश्रम द्वारा अतिक्रमण, 2012 दिल्ली दुष्कर्म पर उनकी टिप्पणी एवं 2013 में नाबालिग लड़की का कथित यौन शोषण जैसे विवादों से जुड़े रहे हैं। उन पर लगे आरोपों की आँच उनके बेटे नारायण साईं तक पहुँच चुकी है। न्यायालय ने उन्हें न्यायिक हिरासत में रखने का निर्णय लिया है। वर्तमान में आसाराम जोधपुर जेल की सलाखों के पीछे कैद हैं।

आसाराम बापू (Asaram Bapu) का जीवन परिचय:

आसाराम बापू (Asaram Bapu) का जन्म सिंध प्रान्त के नवाबशाह ज़िले में 17 अप्रैल 1941 को हुआ था। इनकी माता का नाम महँगीबा था। उस समय नामकरण संस्कार के दौरान आसाराम का नाम आसुमल रखा गया था।

आसाराम बापू (Asaram Bapu) की बाल्यावस्था:

आसाराम बापू (Asaram Bapu) का बाल्यकाल संघर्षों की लंबी कहानी हैं। विभाजन के समय अपनी सारी सम्पत्ति को छोड़कर आसाराम का परिवार अहमदाबाद शहर में साल 1947 में आ पहुँचा था। इनके पिता थाऊमल द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से इनकी आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा था। तत्पश्चात् उन लोगों ने शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ कर दिया गया था ।

आसाराम बापू (Asaram Bapu) की शिक्षा:

आसाराम बापू (Asaram Bapu) की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से शुरू हुई थी। तदनन्तर सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए इन्हें ‘जयहिन्द हाईस्कूल’, मणिनगर, (अहमदाबाद) में प्रवेश दिलवाया गया। अपनी विलक्षण स्मरणशक्ति के प्रभाव से ये शिक्षकों द्वारा सुनाई जाने वाली कविता, गीत या अन्य अध्याय तत्क्षण पूरी की पूरी हू-ब-हू सुना देते थे।

विद्यालय में जब भी मध्यान्ह की विश्रान्ति होती, बालक आसुमल खेलने-कूदने या गप्पेबाजी में समय न गँवाकर एकांत में किसी वृक्ष के नीचे ईश्वर के ध्यान में बैठ जाते थे। चित्त की एकाग्रता, बुद्धि की तीव्रता, नम्रता, सहनशीलता आदि गुणों के कारण बालक का व्यक्तित्व पूरे विद्यालय में मोहक बन गया था। अपने पिता के आसाराम लाड़ले संतान थे।

अतः पाठशाला जाते समय पिताश्री इनकी जेब में पिश्ता, बादाम, काजू, अखरोट आदि भर देते थे जिसे आसुमल स्वयं भी खाते एवं प्राणिमात्र में इनका मित्रभाव होने से ये परिचित-अपरिचित सभी को भी खिलाते थे। पढ़ने में ये बड़े मेधावी थे तथा प्रतिवर्ष प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे, फिर भी इस सामान्य विद्या का आकर्षण इन्हें कभी नहीं रहा। लौकिक विद्या, योग विद्या और आत्म विद्या ये तीन विद्याएँ हैं, लेकिन इनका पूरा झुकाव योग विद्या पर ही रहा।

 

आसाराम बापू (Asaram Bapu) का विवाह:

तरुणाई के प्रवेश के साथ ही घरवालों ने इनकी शादी करने की तैयारी की। वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फँसना चाहते थे इसलिए विवाह के आठ दिन पूर्व ही वे चुपके से घर छोड़ कर निकल पड़े। काफ़ी खोजबीन के बाद घरवालों नें उन्हें भरूच के एक आश्रम में पा लिया।

“चूँकि पूर्व में सगाई निश्चित हो चुकी है, अतः संबंध तोड़ना परिवार की प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाना होगा। सभी परिवारजनों के बार-बार इस आग्रह के वशीभूत होकर तथा तीव्रतम प्रारब्ध के कारण उनका विवाह हो गया, किन्तु आसुमल उस स्वर्णबंधन में रुके नहीं। अपनी सुशील एवं पवित्र धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी को समझाकर अपने परम लक्ष्य ‘आत्म-साक्षात्कार’ की प्राप्ति तक संयमी जीवन जीने का आदेश दिया। और उन्होंने साधनामय जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर लिया था।

 

गुरु की प्राप्ति:

स्वामी लीलाशाहजी महाराज आसाराम बापू (Asaram Bapu) के गुरु थे। एक तड़पता यह परम वीर पुरुष सारी-की-सारी कसौटियाँ पार करके सदगुरुदेव का कृपाप्रसाद पाने का अधिकारी बन गया था। सदगुरुदेव ने साधना-पथ के रहस्यों को समझाते हुए आसुमल उर्फ आसाराम को अपना लिया था।

आध्यात्मिक मार्ग के इस पिपासु-जिज्ञासु साधक की आधी साधना तो उसी दिन पूर्ण हो गई जब सदगुरु ने अपना लिया। परम दयालु सदगुरु साईं लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को घर में ही ध्यान भजन करने का आदेश देकर 70 दिन तक वापस अहमदाबाद भेज दिया।

आश्रम की स्थापना:

साबरमती नदी के किनारे पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में 29 जनवरी साल 1972 को एक कच्ची कुटिया तैयार करी गयी थी ।इस स्थान के चारों तरफ सिर्फ कंटीली झाड़ियाँ व बीहड़ जंगल था, जहाँ दिन में भी आने पर लोगों को चोर-डाकुओं का एक डर बना रहता था। लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहाँ का भयावह एवं दूषित वातावरण एकदम बदल गया था । वर्तमान में इस आश्रमरूपी विशाल वृक्ष की शाखाएँ भारत में ही नहीं, विश्व के अनेक देशों तक पहुँच चुकी हैं।

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