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जानिए 1700 साल पुराने कानपुर के बारा देवी मंदिर का इतिहास, बहुत ही ख़ास है 12 बहनों से जुड़ी कहानी, नवरात्रि में उमड़ती है भारी भीड़!
1700 साल पुराना एक अनोखा ऐतिहासिक मंदिर जो कानपुर के दक्षिण इलाके में स्थित है, जिसे बारा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि कानपुर नगर और देहात में 50 से अधिक देवी के मंदिर प्रसिद्ध हैं। सभी का इतिहास और सिद्धांत अलग-अलग हैं। लेकिन दक्षिण क्षेत्र में स्थित बारा देवी का मंदिर भी दोस्ती में से एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर परिसर में भक्तों का जनसैलाब हर दिन दिखता है। मंदिर का इतिहास भी अद्भुत है। मान्यता है कि जो भी भक्त बारादेवी के दर पर आता है उसका हर मन पवित्र होता है।
नवरात्रि में बारा देवी में बालाजी भक्तों का सालाब। बारा के एक दिन में मंदिरों के बाहर सुबह से ही भक्त लाइन में लगे भक्तों को कोई परेशानी नहीं हुई, इसके लिए पुलिस-प्रशासन की ओर से पहले से ही व्यवस्था की गई थी, एक अनुमान के अनुसार अष्टमी के दिन करीब तीन से चार लाख भक्त आ सकते हैं। है.
बारा देवी मंदिर का इतिहास:
बारा देवी मंदिर के इतिहास को लेकर कई कथाएँ सामने आई हैं। बारा देवी मंदिर प्राचीनतम मंदिर में से एक है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि सैकड़ों साल पहले कानपुर के निवासी किसान के घर 12 पुत्रियों का जन्म हुआ था। किसी वजह से वश 12 आदिवासियों का विवाद उनके पिता से हो गया और सभी घर से अलग हो गए।
पुजारियों के अनुसार ये 12 बहनें किदवई नगर में स्थापित हुई थीं। पत्थर बनी बहनें कई वर्षों बाद बारादेवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुई। पुजारियों का कहना है कि आदिवासियों के पिता को पत्थर मार दिया गया था। पुजारियों के मुताबिक कुछ साल पहले अल्लाह की टीम ने इस मंदिर का सर्वेक्षण किया था जिसमें पता चला कि मंदिर की मूर्तियां करीब 15 से 17 साल पुरानी हैं।
बारा देवी मंदिर मे भक्त चढाते हैं चुनरी:
माँ बारा देवी के दरबार में नवरात्रि के अवसर पर प्रतिदिन लगभग एक से दो लाख भक्त दर्शन करने आते हैं और माता रानी को माँ की गोद में बिठाकर अपने मंतव्य की पूर्णाहुति की चुनौती देते हैं। यह भी सिद्ध है कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव से माँ के दरबार पर ज्ञान माथा टेकता है, उसकी हर मुक़द्दमा पूरी होती है। इसके अतिरिक्त बहुत से लोग यहां पर मां का श्रृंगार भी बड़े ही प्यार से करते हैं। मंदिर से जुड़े लोगों ने बताया कि पहले नवरात्रि पर्व पर भक्त अपने मुंह में नुकीली अरोबैजा को आर-पार कर माता रानी के मंदिर में जाते थे।
माँ बारा देवी की बरसती है कृपा :
मंदिर की मान्यता है कि जिन दंपत्ति को संत का सुख नहीं मिलता है, माता रानी के दरवार में वह भगवान भोलेनाथ हैं। पूजा- बाद में वह अपने मन को धारण करते हुए बारा देवी को चुनरी बांधते हैं। मां की कृपा से उनके घर में किल आक्रांता की गूंज अंकित है।
और फिर अगली नवरात्रि पर दंपत्ति अपने बच्चे को लेकर माता के दरबार में आते हैं। मंदिर परिसर पर पूरी विधि-विधान से संतान का मुंडन करवाते हैं। मुंडन के बाद दंपत्ति चुनरी खोलते हैं।
अष्टमी के दिन भक्त मां बारा देवी का जवारा निकलते है :
चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। चैत्र नवरात्रि की अष्टमी की तिथि पर भक्त मां बारा देवी को जवारा मनाते हैं। सुबह से सैकड़ों की संख्या में भक्त चॉकलेट शुरू कर देते हैं। इस दौरान मां काली और भगवान शिव के तांडव नृत्य को देखकर लोग रूंगटे हो जाते हैं।
बारादेवी को आकर्षक बनाने के लिए रहस्यमयी खतरनाक करतब भी दिखाए गए हैं। अगर कोई आग से खेलता है तो कोई अपने गॉल के आरपार नुकीली मेटल पार कर स्वामी है। नाचते पर्यटकों का जगह-जगह स्वागत कर फूल बरसाए जाते हैं, बड़ों ही नहीं बच्चों और महिलाओं ने भी संग लगाया।
हर भक्त की पूरी होती है मनोकामना :
मंदिर के पुजारी ज्ञानचंद पेंडेज़ के अनुसार, कानपुर का बड़ा देवी मंदिर सबसे प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। पुजारी के अनुसार, मंदिर में 12 मूर्तियां सैकड़ों साल की हैं। कहा जाता है, इस मंदिर में 12 बहनें देवी स्वरूप में हैं। रात्रिरात्रि पर हरदिन भक्तों का तांता लगा रहता है।
ऐसे में पहले से ही प्रशासन के सहयोग से पूरी तैयारी कर ली गई है। जगह-जगह रोबोटिक कैमरे लगाए गए हैं। पुजारी कहते हैं कि यह मंदिर बेहद प्राचीन और प्रसिद्ध है, यहां आने वाले हर भक्त की भावना पूरी होती है।
राजनेता,अभिनेता सभी लोग लगते है मां बारा देवी के दरबार में हाजिरी:
मां बारा देवी के दर पर आमभक्तों के साथ-साथ राजनेता, अभिनेता, बिजनेसमैन से लेकर गरीब और अमीर अमीरी मिलती है। बीजेपी के नेता सुरेंद्र मैथानी के सहयोगी पिछले कई वर्षों से माता रानी के दर पर अनुयायी माथा टेकते हैं। मथानी विद्यार्थी हैं कि माता रानी की कृपा से वह जनता के सेवक बने।
जबकि पूर्व सलाहकार कैथेड्रल बोर्ड के कर्मचारी हैं, उनके घर ही मंदिर के पास ही बना है। बचपन से माता रानी की कृपा उन पर बरसती रहती है। वहीं हास्य कलाकर वैज्ञानिक भी बारादेवी के भक्त थे। जब भी आन्ध्रप्रदेश कानपुर आये, तब वह सबसे पहले मंदिर के पुजारी माँ के दर पर माथा टेकते थे।
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