Monday, November 11, 2024

जेसीबी-थ्रेसर से बनाया गया 51 हजार किलो चूरमा प्रसाद, छापाला भैरूजी मंदिर में लक्खी मेले का हुआ आयोजन:

जेसीबी-थ्रेसर से बनाया गया 51 हजार किलो चूरमा प्रसाद, छापाला भैरूजी मंदिर में लक्खी मेले का हुआ आयोजन

Digital News Guru Rajasthan Desk: जेसीबी थ्रेसर से बनाया गया चूरमे का ढेर,जो एक मेले में प्रसाद के लिए बनाया गया है, करीब ढाई लाख लोग यह प्रसादी पाएंगे। जिनके लिए 515 क्विंटल (51 हजार 500 किलो) चूरमा तैयार किया जा रहा है।

30 जनवरी को मेला है लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में चूरमा तैयार करने के लिए तैयारीयां महीने भर पहले से शुरू हो जाती हैं और चूरमा करीब 7 दिन पहले बना शुरू कर दिया जाता है,खास बात ये है कि इसे बनाने के लिए जेसीबी, ट्रैक्टर ट्रॉलियों और थ्रेसर काम में लिए जाते हैं।

प्रदेश में इस मेले को खास अंदाज में बनाए जाने वाले चूरमे के कारण ही जाना जाता है। चूरमा कैसे बनता है और मेले का मैनेजमेंट क्या होता है यह जानकारी प्राप्त करने के लिए चलते हैं जयपुर से करीब 105 किलोमीटर दूर कोटपूतली की और कोटपूतली भी अब जिला मुख्यालय है। इस कस्बे के पास ही छोटा सा गांव है कुहाड़ा। जहां हर साल छापाला भैरूजी मंदिर में लक्खी मेले का आयोजन होता है।पास के ग्रामीण अपने स्तर पर इस मेले का मैनेजमेंट देखरेख करते हैं।

मान्यता है कि यहां भैरूजी को विशेष प्रसादी में चूरमे का भोग लगाया जाता है। पिछली बार यहां 350 क्विंटल का प्रसाद बनाया गया था और इस बार 515 क्विंटल चूरमे का भोग लगाया जाएगा। 23 जनवरी से चूरमा बनाने का काम शुरू हुआ इसके लिए इस बार 50 बीघा से ज्यादा बड़े एरिया में पंडाल तैयार किया गया है।

गांव का हर व्यक्ति देता है सेवा

ग्रामीण सतीश गुर्जर ने बताया- इस बार मेले में 2.5 लाख से ज्यादा भक्तों के आने की संभावना है। इसके लिए 515 क्विंटल प्रसादी तैयार किया गया है। गांव के प्रत्येक घर से एक व्यक्ति रोजाना अपना समय निकालकर यहां अपनी सेवा दे रहा है। एक समय में यहां कम से कम 100 लोगों की टीम हमेशा रहती है।

150 क्विंटल आटा, 80 क्विंटल सूजी और 70 किलो दूध से चूरमे के रोट तैयार किए गए हैं। चूरमा रोट से बनेगा। रोट सेंकने के लिए 200 क्विंटल गोबर के उपलों को काम लिया गया है। 4 दिन तक सेंके गए रोट के लिए रोजाना 140 मीटर लंबा और 20 फीट चौड़ा जगरा तैयार किया गया।

रोट को जगरे से निकालने के बाद कंप्रेसर से इनकी सफाई की जाती हैं ताकि इनमें राख के कण नहीं रहे। रोट सेंकने के बाद पहले इनको ट्रॉलियों में भरा गया।

फिर पीसने के लिए खेती में काम आने वाली थ्रेसर मशीन काम में ली गई। थ्रेसर मशीन को काम में लेने से पहले अच्छे से साफ किया गया। चूरमे को पीसने के बाद इसका ढेर बनाया गया।

रोजाना तैयार किया गया दो ट्रॉली चूरमा

रोट सेंकने का काम 23 जनवरी से शुरू हुआ, रोज दो ट्राली रोट सेंके गए तथा चार ट्रॉली रोट को 24 जनवरी को थ्रेसर की मदद से पीसा गया था। 24 तारीख को ही इसमें जेसीबी की मदद से मेवा और खांड मिलाया गया।

बाद में इसे साफ ट्रालियों में डालकर पॉलिथीन से पैक किया गया। इस तरह 25 जनवरी और 26 जनवरी को 2 दिन रोट पकाए गए हैं और इसे शनिवार यानी कि आज पिसा जाएगा और ड्राई फ्रूट और खांड मिलाई जाएगी।

दोनों बार में कुल 113 क्विंटल खांड, 25 क्विंटल मेवा (काजू, बादाम, किशमिश, मिश्री, खोपरा) जेसीबी की सहायता से मिलाया जाएगा। इसके साथ ही गांव के लोग फावड़ियों से चूरमा मिलाते दिखे।

चूरमा बनाने के लिए जो लोग टीलो पर चढ़े उनके पैरों को भी कपड़ों और पॉलिथीन से ढका गया। ड्राई फ्रूट्स मिलाने के बाद इन्हें ट्रालियों में पैक किया गया।

28 जनवरी को मिलाया जाएगा घी और मावा

28 जनवरी को चूरमें में घी और मावा मिलाया जाएगा। इसके लिए सबसे पहले पूरे चूरमे को साफ जगह पर तिरपाल बिछाकर एक जगह किया जाएगा।

20 क्विंटल घी और 15 क्विंटल मावा का बड़ी-बड़ी कढाई में गर्म किया जाएगा और चूरमे पर डाला जाएगा। इसको मिलाने के लिए एक बार फिर जेसीबी बुलाई जाएगी और लोगों की सहायता से इसे मिलाया जाएगा। 28 जनवरी को चूरमा बनकर तैयार हो जाएगा। चूरमा बनाने के बाद इनको वापस ट्रॉलियों में पैक किया जाएगा।

सारा घी गांव से ही जुटाया

ग्रामीणों ने बताया कि चूरमे में काम में लिया जाने वाला घी गांव से ही इकट्ठा किया हुआ घी है। बाजार से एक किलो घी भी नहीं लाया गया है। कुहाड़ा गांव में 400 घर है। प्रत्येक घर 2 किलो घी देता है।

इसके साथ ही पदमा की ढ़ाणी, कल्याणपुरा कलां और पंवाला गांव के लोग अपनी उपलब्धता के आधार पर घी देकर गए हैं। अगर फिर भी कम पड़ जाता है तो गांवों से और घी खरीदा जाएगा। आयोजन में 2.5 लाख पतल-दोने, 4 लाख कप चाय के लिए, 10 पानी के टैंकर काम में लिए जाएंगे।

50 क्विंटल दाल, 90 क्विंटल दही जमाया जाएगा

चूरमे के अलावा प्रसादी में दाल और दही दिया जाएगा। दाल के लिए 50 क्विंटल दाल, 30 पीपे सरसों का तेल, 5 क्विंटल टमाटर, 2 क्विंटल हरी मिर्च, 1 क्विंटल हरा धनिया, 60 किलो लाल मिर्च, 60 किलो हल्दी, 40 किलो जीरा काम में लिया जाएगा।

दाल बनाने के लिए 8 भट्टियां बनाई गई हैं। जिस पर 30 जनवरी को दाल बनाई जाएगी। इसके अलावा 90 क्विंटल दही जमाया जाएगा। जिसके लिए 29 जनवरी को दूध गर्म कर दही जमाया जाएगा। ये दूध भी गांव से ही इकट्ठा किया जाएगा।

29 जनवरी को निकलेगी कलश यात्रा

मेले के 1 दिन पहले 29 जनवरी को चोटीया मोड से मंदिर परिसर तक लगभग 3 किलोमीटर की कलश यात्रा का आयोजन किया जाएगा। जिसमें 11 हजार महिलाएं सिर पर कलश लेकर चलेगी। इसका ग्रामीणों द्वारा जगह-जगह स्वागत किया जाएगा। कलश यात्रा में ग्रामीण महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में गाजे-बाजे के साथ शामिल होंगी। इस दौरान भक्तों पर मेला प्रशासन कमेटी की ओर से हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा की जाएगी। इस बार मेले में हेलिकॉप्टर के लिए पक्के हेलीपैड का निर्माण भी किया गया है।

8 हजार वॉलिंटियर करेंगे मदद

सतीश गुर्जर ने बताया-मेले में आने वाले हजारों वाहनों के लिए ग्रामीण ही पार्किंग की व्यवस्था संभालते हैं। करीब 8 हजार वॉलिंटियर मेले में मैनेजमेंट संभालते हैं। हेलीपेड से लेकर बाबा के दर्शनों के लिए जगह-जगह ग्रामीण ही वॉलिटिंयर्स के रूप में तैनात होते हैं। थ्रेसर, जेसीबी, और ट्रैक्टर ट्रॉली को पानी, कंप्रेसर से साफ करते हैं। इसकी सुविधा ग्रामीण अपने स्तर ही जुटाते हैं। सबसे पहले साल 2010 में पहले वार्षिकोत्सव में 70 क्विंटल चूरमे की प्रसादी बनाई गई थी। उसके बाद हर वार्षिकोत्सव पर प्रसादी के लिए बनाए गए चूरमे को बढ़ाया गया।

116 सीढ़ियां चढ़कर पहुंच सकते हैं मंदिर

यह मंदिर कोटपूतली-सीकर स्टेट हाईवे पर है। इसके लिए मुख्य सड़क से 2 किलोमीटर अंदर जाना होता है। इन दो किमी में 3 भव्य दरवाजों से गुजरना पड़ता है। इसके बाद तलहटी से एक पहाड़ पर चढ़ना होता है। करीब 116 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर परिसर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर परिसर में प्राचीन भैरव बाबा की मूर्ति स्थापित हैं। इनके साथ ही सवाई भोज, शेड माता और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित हैं। वार्षिकोत्सव पर सवाई माधोपुर, ग्वालियर, झालावाड़, कोटा, पीपलखेड़ा, मुरैना, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली समेत दूर-दराज से श्रद्धालु भैंरू बाबा के दर्शन करने आते हैं।

ऐसे शुरू हुई महाप्रसादी की परंपरा

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक सोनगिरी पोसवाल नाम के व्यक्ति भैरू जी के भक्त थे। वह भैरू बाबा की मूर्ति को ग्राम कुहाडा में स्थापित करवाना चाहते थे। भक्त भैरव बाबा की मूर्ति लाने काशी चले गए। भैरू बाबा ने उसे सपने में दर्शन देकर सोनगिरी से बड़े बेटे की बलि मांगी, जिस पर वह बेटे की बलि देकर भैरूजी की मूर्ति लेकर चल देते हैं।

भैरू बाबा परीक्षा से खुश होकर पुत्र को जीवित कर देते हैं। इसके बाद पंच पीरों के साथ भक्त और उसके बेटे ने गांव वालों के साथ मिलकर मूर्ति की स्थापना विधि विधान से जागरण और भंडारे के साथ की।

आज भी प्राचीन पंचदेव खेजड़ी वृक्ष की पूजा होती है। यहां लगने वाले मेले की खास बात है कि यहां खिलौनों की दुकान, चाट पकौड़ी के ठेले और झूले लगाने की अनुमति नहीं दी जाती है।

प्रतिवर्ष होने वाले लक्खी मेले में लाखों की संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। वहीं, नेता भी बाबा के दरबार में धोक लगाते हैं। इस बार कार्यक्रम में प्रदेश के गृह राज्यमंत्री जवाहर सिंह बेढ़म, यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा, तिजारा विधायक महंत बालकनाथ समेत अन्य जनप्रतिनिधि और नेता शामिल होंगे।

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